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________________ ३८ जैनहितैषी। [भाग १५ और रोटी व्यवहार होने लगा। उसके हैं, उनसे हमारी एक प्रार्थना और है कि वाद अब यह बेटी-व्यवहारकी चर्चा उठी वे अपनी इस होनहार महासभामें गोला है, जो उसके आगेकी सीढ़ी है। प्राशा पूरब, गोलालारे, पचबिसे, सभैया आदि है कि कुछ समयमें बेटी-व्यवहार होने अपनी पड़ोसी जातियोंके बिनकैयोंको भी लग जायगा। उक्त प्रान्तमें छोटी छोटी सादर सम्मिलित करे-उन्हें जुदा न संख्यावाली जातियोंकी संख्या सबसे छोड़ देवें। क्योंकि उनको परिस्थितियाँ अधिक है और इस कारण वहाँवालो- भी करीब करीब आप ही जैसी हैं। आप को माज नहीं तो कल, अपना अस्तित्व के सहारेसे वे भी अपना कल्याण करने में बनाये रखने के लिए यह प्रस्ताव अमलमें समर्थ हो सकेंगी। लाना ही पड़ेगा। ४-हिन्दू धर्म परिषद्के निर्णय । ३-बिनैकया-जैन-महासभा । सागर, गत ४, ५ और ६ दिसम्बरको नागपुरमें बीना आदि स्थानोंके कुछ बिनैकया महाराष्ट्रीय हिन्दू धर्म परिषद्का दूसरा सजन अपनी जातिकी एक सभा स्थापित अधिवेशन करवीरमठके शंकराचार्यकी करनेका उद्योग कर रहे हैं, जो बहुत अध्यक्षतामें बड़ी धूमधामसे हुआ । महाही प्रशंसनीय है। परवार जातिके नये राष्ट्रके बड़े बड़े महामहोपाध्याय, शास्त्री और पुराने बिनैकया भाइयों की संख्या और अन्यान्य विद्वान् इस अधिवे. थोड़ी नहीं है। परवार भाइयोंका व्यव शनमें उपस्थित हुए थे। अधिवेशनकी हार इनके साथ बहुत ही बुरा है और रिपोर्ट पढ़नेसे यह स्पष्ट प्रतीत होता कहीं कहीं तो वह सहनशीलताकी भी है कि अब पुराण-मतवादी हिन्दू भी सीमाको उल्लंघन कर जाता है। ऐसे इस बातको समझने लगे हैं कि देश सैकडो स्थान है जहाँ परवार भाई इन्हें और कालकी परिस्थितियोंके अनुसार सीनियर अपने मन्दिरोंमें दर्शन करनेके लिए भी हमें अपने प्राचारों और व्यवहारों में नहीं जाने देते हैं । भोजन आदिका संशोधन और परिवर्तन अवश्य करना सम्बन्ध तो बहुत बड़ी बात है। इस व्यव- होगा। परिषद ने अपने कई निर्णय बड़े द्वारसे यह जाति इतनी दब गई है कि ही महत्वके प्रकाशित किये हैं। एक तो स्वयं भी अपनेको बहुत ही छोटा समझने यह कि कलियुगमें भी क्षत्रियों और लगी है और किसी जातिके उत्थानमें यह सबसे बड़ा विघ्न है कि वह दूसरोक कर वैश्योंका अस्तिख है। बंगाल और दक्षि. नेसे अपने आपको छोटा समझने लगी एके ब्राह्मण ग्रन्थकारोंने यह विश्वास हो। यदि इस जातिके उद्योगी पुरुष प्रयत्न दिला रक्खा है कि कलियुगमें ब्राह्मण करके अपनी एक सभा बना सके और शुद्र ये दो ही वर्ण रहेंगे और इसी वि. उसकी छत्र छायामें एकत्र होकर अपनी श्वासका यह फल है कि अन्य प्रान्तोंके उन्नतिके लिए उद्योग करें और अन्य जाति- ब्राह्मण अपने सिवाय अन्य सब जातियोंयोके समान अपनी जातिमें शानवृद्धिकी, को शुद्र गिनते हैं। धर्म परिषदने यह कुरीतियोंके संशोधनकी और सदाचारके निर्णय उक्त विश्वासको बदल डालनेके प्रचारकी चेष्टा करें तो बहुत लाभ हो। लिए दिया है। दूसरा निर्णय यह किया जो सजन इस विषयमें उद्योग कर रहे है कि जो लोग जबर्दस्ती या अत्या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522894
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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