SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अङ्क ११] भूभ्रमणसिद्धान्त और जैनधर्म । जिसकी संख्या लिखने के लिये १ के पीछे तो दुसरे प्रकारकी शक्ति लगाकर वस्तुओं२३ बिन्दियाँ लगानी पड़ती हैं। इसीसे को पृथ्वीसे ऊपर खींच लेता है। अन्दाज़ा कर लीजिये कि उसी सेर भर (२) “खींचना, घूमना, चलना ये धर्म वस्तुको एक मनका टुकड़ा कितने बलसे विरुद्ध हैं। अर्थात् ये कार्य एक साथ स्त्रींचेगा। दरी आदिका हिसाब लगानेसे नहीं हो सकते। जैसे चुम्बक लोहेको ज्ञात होता है कि यदि दोनों वस्तुओंमें अपनी तरफ खींच तो लेता है, परन्तु वह एक फुटका फासला हो तो यह बल प्रायः खुद या सुईको घुमाता चलाता नहीं है। एक रत्ती के ४०.१०वे भागके बराबर भतः पृथ्वीमें आकर्षण शक्ति और उसका होगा। इसको नापना कितना कठिन है, घूमना चलना एक साथ नहीं माने जा यह प्रकट है। फिर यह कैसे आशा की सकते।" ऐसा लिखना केवल अनुभवकी जा सकती है कि साधारण तौर पर हम कमीको जतलाता है। चुम्बकको घूमते लोग इस आकर्षण शक्तिका अनुभव और चलते बहुतोंने देखा होगा। यदि न कर सकें? देखा हो तो. लकड़ीके एक टुकड़े पर इस वास्तविक कठिनाईके अतिरिक्त रखके चुम्बकको पानी में तैराने पर आकर्षण शक्तिका कार्य समझने में कोई प्रासानीसे देख सकते हैं । लोहे के टुकड़ेको विशेष कठिनाई नहीं है । प्रायः जितने चुम्बकके समीप लाने पर वह तैरता, दूसरे आक्षेप हैं, उनमें केवल पक्षपातके हुआ चुम्बक स्वयं लोहेकी ओर चलेगा। अतिरिक्त कोई बात नहीं समझमें चुम्बकके लिये आकर्षण और चलना ये पाती । इसके कुछ उदाहरण नीचे दिये धर्म विरोधी नहीं हैं । घोड़ा जब गाडीको : जाते हैं। खींचता है तब चलता भी है। खींचना १-"चुम्बक पत्थरकी पटिया छतमें और चलना ये कार्य किसी प्रकार । लगा देते हैं तब लोहेकी सुई आकाशमें विरोधी नहीं माने जा सकते। ठहरी रहती है। यदि इंट पत्थर आदिमें (३) “हवाई जहाजको यन्त्रसे हवा तभी यह थक्ति होती तो कमरेकी छत ही भर कर आकाशमें चलाते हैं। तब जाने बिना चुम्बककी सहायताके उसे खींच आकर्षणकी ताकत कि हवा निकाल लेने लेती।" इसका उत्तर सरल है। छत तो पर उसे एक घंटे भी आकाशमें ठहरा सुईको अवश्य खींच लेती, परन्तु नीचेकी सकें।" पंडितजीके इस लिखने में पहले धरती क्या करती ? उसको आकर्षण शक्ति तो यही गलत है कि एयरोप्लेन आदि जो छतसे करोड़ों गुणा बलवान है, वह हवा भर कर चलाये जाते हैं । खैर, इससे कहाँ चली जाती? चुम्बक भी उस सुईको हमें यहाँ कुछ मतलब नहीं। परन्तु बेचारी भी खींच सकता है जब उसका बल पृथ्वीकी आकर्षण शक्तिसे यह आशा पृथ्वीको आकर्षण शक्तिसे अधिक हो। क्यों की जाती है कि वह जहाजको आकाश अन्यथा चुम्बक होनेपर भी वस्तु भूमिपर में ठहरा रक्खे ? आकर्षण शक्तिका कार्य गिर पड़ती है। यदि आप कहें कि छोटे पृथ्वीकी ओर खीचनेका है या आकाशकी से चुम्बकमें पृथ्वीसे अधिक बल कहाँसे मोर उठानेका ? आकर्षण शक्ति तो आया, तो उसका उत्तर यह है कि चुम्बक- अपना कार्य पूरा करती है। ज्यों ही की शक्ति गुरुत्वाकर्षण नहीं है। वह दूसरे जहाज़के इंजिनका बल घटा कि इस प्रकारकी शक्ति है । छोटा सा मनुष्य भी शक्तिके प्रभाषसे जहाज़ गिरा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522893
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy