SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३२ जैनहितैषी। . [भाग १५ इन व्यर्थकी शंकाओंके विपरित यदि. सकता है । आश्चर्य है कि जिस थालीको इस बात पर विचार करिये कि इस पार करके सूर्य की धूप और चन्द्रमाकी माकर्षणके नियमको जान लेनेके कारण चांदनी नहीं जा सकती, उसी थालीकी ज्योतिष शास्त्र के नियम कितने सरल हो आड़से चुम्बक अपना कार्य खूब सरलगये हैं, और इस पृथ्वी पर होनेवाले ताले कर लेता है ! क्या इस उदाहरणसे कार्योंके समझने में विज्ञानको कितनी यह स्पष्ट नहीं होता कि वैज्ञानिक विषयोसहायता मिली है तब अवश्य ही इसके में तनिक सा अनभव तकिये के सहारे बैठे अविस्कर्ता न्यूटनके प्रति श्रद्धा और पाद- बैठे ज़मीन पासमानके कुलाबे मिलानेसे रका भाव उत्पन्न होता है। कहीं अधिक लाभदायक होता है। आकर्षण शक्ति पर आक्षेप करने के लिये एक और अद्भुतं युक्तिका प्रयोग ___चन्द्रमा सम्बन्धी कुछ प्रश्न । भूगोल भ्रमण मीमांसामें किया गया है। चन्द्रमाके सम्बन्धमें एक बड़ी शंका पहले तो एक बिलकुल नई कल्पना की यह उत्पन्न हुई है कि वैज्ञानिक लोग गई है कि उत्तर और दक्षिणमें दो ध्रुव तारे उसे प्रकशहीन बतलाते हैं और उसकी हैं जिनमें चुम्बककी शक्ति है। और कुतुब- चांदनी को सूर्य ही की रोशनी कहते हैं । उमाकी सुई इन्हीं तारोंकी शक्ति से उत्तर- इस शंकाके जो कारण बतलाये गये हैं। दक्षिणकी ओर अपना मुख रखती है। उनमें सूर्यका अन्य तारों और ग्रहोंके तब शंका की गई है कि यदि ऐसा है तो प्रकाशका तिरस्कार करनेवाले होने रात्रिमें और कमरेके भीतर कुतुबनुमा और इस कारण उसका अपने विरोधीको अपना कार्य नहीं कर सकता; क्योंकि प्रकाश न दे सकने की जो बात है वह : आकर्षण शक्ति दीवारकोअथवा पृथ्वीको अवश्य कवित्वपूर्ण है। किन्तु दुर्भाग्यवश पार कर कैसे जा सकती है। सूर्य की धूप कविताकी कल्पनाओंका विज्ञानसे बहुत भी तो मकानमें प्रवेश नहीं कर सकती। ही थोड़ा सम्बन्ध है। फोटोके केमरेके यह समझमें न आया कि यह युक्ति पृथ्वी काँच पर जो प्रकाश ( तस्वीर ) दिखलाई ही की आकर्षण शक्तिके विषयमें क्यों न देता है वह भी सूर्य ही का प्रकाश तो है। लगाई गई। क्योंकि तब कमरेके अन्दरकी किन्तु सूर्य उसका भी तिरस्कार करता वस्तुओं पर उसका असर होता ही नहीं है। उसे देखने के लिये काले कपड़ेसे और आकर्षण शक्ति जड़से ही कट जाती। सिरको और केमरेको ढक लेना पड़ता विचित्र तारोंकी बात तो जाने दीजिये, है ताकि सूर्यको वहाँ तक पहुँचनेका और किन्तु खेद इतना ही है कि कुछ साधारण तिरस्कार करनेका अवसर ही न मिले । परीक्षा द्वारा भी यह न देखा गया कि दूसरी बात यह है कि जब सूर्य, ग्रह, उपग्रह चुम्बक अन्य वस्तुओंकी पाड़मेंसे भी और तारे सभी अपने अपने प्रकाशसे लोहेको वास्तवमें खींच सकता है। काफी प्रकाशमान हैं, तब बेचारे चन्द्रमा ही ने मोटी पीतल की थाली में एक सुई रख कर क्या अपराध किया है कि जो उसका थालीके नीचे चुम्बक रखनेसे सुई चुम्ब- मैंह काला समझा जाय? इसके उत्तरमें ककी तरफ खिंच जाती है। उस समय निवेदन यह है कि प्रथम तो ग्रह . और थालीको उलट देने पर भी सुई गिर नहीं उपग्रह भी स्वयं प्रकाशमान नहीं हैं। वे पड़ती । यह प्रत्येक मनुष्य अपने आप देख भी सूर्यकी ही कृपासे प्रकाशित हैं । हाँ, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522893
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy