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३२६ जैनहितैषी।
[भाग १५ उनके जीवनका उद्देश्य यह है कि हिन्दू बलीयसी" के सिद्धान्तको मानते हुए धर्मशास्त्र एकत्र होकर कोडके रूपमें यह असम्भव सा है कि भारतवर्षीय धाराबद्ध हो जाय। डाकृर. एच. एस. समस्त जातियों और धम्मौके वास्ते एक गौरने इसका समर्थन किया और राय हिन्दू कोड बन सके। सर पी. एस.शिवबहादुर पण्डित जवाहरलाल भार्गव स्वामी अय्यरकी सम्मतिमें भी ऐसा एक (पंजाब) ने भी समर्थन किया। बाबू जे. कोड बनाना कष्टसाध्य प्रतीत हुआ। उन्होंने एन. मुकरजी (बंगाल) इस प्रस्तावके कहा कि अभी ऐसा समय नहीं पाया है विरोधमें खड़े हुए । आपने यह दिखलाते कि कोई नया मनु सर्व हिन्दू कानूनको हुए कि हिन्दू धर्मशास्त्र हिन्दू धर्मका बनाकर तय्यार कर दे । बल्कि खटका अवयव है, ऋषिप्रणीत है, और यह बात इस बातका है कि शीघ्रगामी सुधारक हिन्दू धर्मके दृढ़ श्रद्धानीके लिए हृदयविदा- दल कहीं हिन्दू धर्म शास्त्रको ही उलट रक होती है कि, मनुस्मृति, याज्ञवल्क्यीय, पुलट न कर दे। हाँ, यह सम्भव है कि मिताक्षरा, दाय भाग, मयूख, भादि जिन विषयों में मत भेद नहीं है, उनका ऋषिप्रणीत .प्राचीन धर्मग्रन्थों पर ऐक बना दिया जाय । इन सात कुठाराघात करके, हिन्दू धर्म-शास्त्र भाषणोंके पश्चात् डाकृर तेज बहादुर सपू अंग्रेजी भाषामें, इस कौन्सिलके भिन्न भिन्न (सरकारी मेम्बर कानूनी) ने कहा कि धर्मके अनुयायी सदस्योंकी सम्मतिसे ऐसी दशामें सरकार यह उचित समझती बनाया जाय, यह भी कहा कि यदि हमारे है कि प्रान्तीय शासकों, हाई कोर्टी, विद्वत् मुसलमान भाइयोंसे यह कहा जाय कि परिषदों, वकीलोंकी लाइब्रेरियों और "आपके-कानूनको बने हुए बहुत वर्ष हो सभाओं आदिकी सम्मतियाँ इस विषयमें गए । जो कुछ कि कुरान या हदीसमें प्राप्त की जायँ कि उनकी सम्मतिमें सारे लिखा है, अब उसका अंग्रेज़ी कोड रूपमें या किसी विशेष विषय-सम्बन्धी हिन्दू बना डालना उचित है” तो उनके हृदयकी कानूनका कोड बनाना समयानुकूल क्या दशा होगी। इन शब्दोंके सुनते ही होगा अथवा नहीं, और यदि होगा तो मिस्टर अमजद अली बोले कि कुरानकी क्योंकर काम किया जाय । और इस पर बात और है। इस पर बाबू जे. एन. मिस्टर के. जी. वाग्देने अपना प्रस्ताव मुकरजी ने कहा कि "यदि यह कल्पना वापस ले लिया। कर लें कि कोई ऐसा प्रस्ताव करे, तो क्या जैन-धर्म या जैन रीति-रिवाज अथवा आप उसको एक क्षण भर भी सह धर्म नीतिक सम्बन्धमें एक अक्षर भी सकेंगे?" मिस्टर अमजद अली बोले कि उक्त अधिवेशनमें नहीं कहा गया। यह "हम एक क्षण भरके वास्ते भी ऐसी भी खयालमें नहीं आता कि जैन समाजके कल्पना नहीं कर सकते ।" बाबू जे. एन. प्रतिष्ठित व्यक्तियों, उसकी संस्थाओं और मुकरजी ने कहा कि जैला हृदयोद्वार पंचायतीयोंको अपने अपने विचारोंके हमारे माननीय मित्रने प्रकट किया, वैसा प्रकट करनेका अवसर दिये बिना कोई ही उद्वेग हिन्दू जातिमें बहुधा करके इस कानून जैनियों के विरुद्ध पास हो जाय । प्रस्ताव से फैल रहा है। बम्बई के मिस्टर, अब रही गौर साहबके "हिन्दू कोड" एन. एम. समर्थ ने भी प्रस्तावका की बात। यह पुस्तक सन् १६१६ की छपी विरोध किया और कहा “शास्त्रात् रुढ़ि- हुई है। आश्चर्य है कि अब तक किसी
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