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________________ पन्द्रहवाँ भाग अंक ११ ran हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः । Jain Education International जैनहितैषी स डाक्टर गौर और जैन समाज | Rese (ले० -श्रीयुत बाबू अजितप्रसादजी वकील लखनऊ । ) गत माससे डाकूर गौरका नाम जैन • समाजमे सब ओर फैल गया है और उसके साथ ही एक खलबली तथा उद्विग्नता भारत जैन समाजमें व्याप गई है । डाकर गौर भारतवर्षीय मध्य प्रान्त के बैरिस्टर हैं । आपने कानूनकी कितनी ही पुस्तकें टीका-टिप्पणी रूपमें लिखी हैं, और उनका बहुत ही प्रचार हुआ है । कानून इन्तकाल जायदाद पर आपने तीन जिल्दोंकी मोटी पुस्तक रची है, और पिनल कोड पर भी एक बृहद् भाग्य लिखा है | अगस्त १६१६ में आपने “हिन्दू कोड" नामकी एक पुस्तक प्रकाशित की जिसमें, आपका कथन है कि, सम्पूर्ण न हो पक्षपाती बतावे सुमार्ग, डरे ना किसीसे कहे सत्यवाणी । बने है विनोदी भले आशयोंसे, सभी जैनियोंका हितैषी 'हितैषी' ।। भाद्रपद २४४७ सितंबर १६२९ Sicer wa S हिन्दू धर्म शास्त्र संकोच तथा विस्तार करके रख दिया गया है । यह भी पक भारी पुस्तक है और इसमें आपने हिन्दू धर्म शास्त्रको धारा प्रणालीसे लिखा है । For Personal & Private Use Only नये रिफ़ार्म ऐकृके अनुसार जो लेजिस्लेटिव असेम्बली ( कानून बनानेवाली सभा) संगठित हुई, उसके आप मध्य प्रान्तकी ओरसे सदस्य निर्वाचित हुए हैं। उस सभा के प्रथम अधिवेशन में ही, २६ मार्च १६२१ को, दिल्लीमें, मिस्टर के. जी. बागदे ने यह प्रस्ताव उपस्थित किया कि, हिन्दू धर्म शास्त्र को धाराप्रणाली रूप एक कोड बनानेके विषयमें विचार करने और यदि हो सके तो बना डालने के वास्ते एक कमेटी नियत की जाय । मिस्टर टी. वी. शेषगिरि अय्यरने इस प्रस्तावका अनुमोदन करते हुए कहा कि उनके कौन्सिल में सम्मिलित होने और मदरास से दिल्ली तक आनेका, बल्कि यो कहिये कि www.jainelibrary.org
SR No.522893
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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