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श्रीवर्द्धमानाय नमः।
भाग १५
• अंक ११
जैनहितैषी
भाद्रपद सं० २४४७ । सितम्बर सन् १६२१
विषय-सूची।
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३२९ ३३५
१. डाक्टर गौर और जैनसमाज लेखक-बाबू अजित प्रसादजी २. भूभ्रमण सिद्धान्त और जैनधर्म-लेखक बाबू निहालकरणजी सेठी ... ३. पुरानी बातोंकी खोज ... ... ४. जैनहितैषी पर विद्वानों के विचार ... ५. आधुनिक भूगोल और भारतवर्ष के प्राचीन ज्योतिषी ... ६. 'मेरीभावना'की लोकप्रियता ... ... ... .
३४५ ३५३
गतांक का संशोधन ।
पिछले अंक नं. ६-१० में, असावधानीसे. जहाँ प्रथम पृष्ठपर महीनोंके नाम छापनेमें ही भूल हुई है-वे टाइटिल पेजके समान नहीं छापे गये वहाँ कई ऐतिहासिक लेखोंके छपने में भी कुछ अशुद्धियाँ हो गई हैं जिनका हमें खेद है। साधारण
अशुद्धियाँको छोड़कर दं। एकका संशोधन नीचे दिया जाता है। पाठकोंको चाहिये • कि वे अपने अंकोंमें उनका सुधार कर लें
पृष्ठ २५६ की ६ठी पंक्तिके शुरूमें 'संकृत' की जगह 'प्राकृत' पढ़ना चाहिये। पृष्ठ २६१ के दितीय कालमकी १५वीं पंक्तिमें 'पद्यसेन' की जगह 'पद्मसेन' समझना चाहिये । और पृष्ठ ३११ के द्वितीय कालमकी १६वीं पंक्तिमें 'नवकोटि विशुद्ध के बाद "न होकर षट कोटिविशुद्ध" ये अक्षर और बढ़ा लेने चाहिये। इसके सिवाय पृष्ठ ३१८ में 'उपमंत्री के पहले 'भूनपूर्व' शब्द और जोड़ लीजिये; परंतु यह प्रसकी भूल न होकर स्वयं उपमंत्री साहबकी ही लिखनेकी भूल है। उन्हीं की प्रेरणासे अब यह संशोधन किया जाता है।
सम्पादक, बाबू जुगुलकिशोर मुख्तार ।
श्रीलक्ष्मीनारायण प्रेस, काशीर COMSO
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