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जैनहितैषी ।
[ भाग. १५
का यशोगान करके उन्हें आशीर्वाद दिया के यशोका ताराओंके प्रकाशके सदृश
गया है *
संहार करके जगत्सृष्टाने गुर्जर-नरेन्द्र के महान् यशको फैलने और प्रकाशित होनेका अवसर दिया है । और भी सम्पूर्ण राजाओंसे बढ़कर क्षीर समुद्रके फेन (भाग) की तरह गुर्जर-नरेन्द्रकी शुभ्र कीर्ति, इस लोक में, चन्द्र-तःराओकी * स्थिति पर्यन्त स्थिर रहे ।
गुर्जरनरेन्द्र कीर्तेरन्तः
पतिता शशांक शुभ्रायाः । गुप्तैव गुप्तनृपतेः
शकस्य मशकायते कीर्तिः ||७|| गुर्जरयशः पयोब्वौ
निमज्जतीन्दौ विलक्षणं लक्ष्म । कृतम लिलिनं मन्ये
धात्रा, हरिणापदेशेन ॥८॥ भरतसगरादि नरपतियशांसि तारानिभेव संहृत्य | गुर्जर यशसो महतः
कृतावकाशो जगत्सृजानूनम् ॥९॥ इत्यादि सकल नृपतीनातिशय्य पयः पयोधिफेनेत्था । गुर्ज नरेन्द्र कीर्तिः स्थेयादा चन्द्रतारमिह भुवने ॥१०॥
इन पद्योंमें यह बतलाया और कहा है कि, गुर्जर-नरेन्द्र ( महाराज श्रमोघवर्ष) की शशांक शुभ कीर्तिके भीतर पड़ी हुई गुप्त नृपति (चन्द्रगुप्त ) की कीर्ति गुप्त ही हो गई हैं-छिप गई है - और शक राजाकी कीर्ति मच्छरकी गुनगुनाहटकी उपमाको लिये हुए है। मैं ऐसा मानता हूँ कि गुर्जर-नरेन्द्रके यशरूपी क्षीर समुद्र में डूबे हुए चन्द्रमामै विधाताने हरिण (मृगछाला) के बहानेले मानों एक बेढंगा अलिमलिन चिह्न बना दिया है, और भरत, लगर आदि चक्रवर्ती राजाओं
* वह पद्य इस प्रकार है
यस्य प्रांशुनखांशुजाल विसर द्वारान्तराविर्भवत्पादां भोजराजः पिशंग मुकुट प्रत्यग्ररत्नद्युतिः । संस्मर्ता स्वममोघवर्ष नृपतिः पूतोऽहमद्य त्यल स श्रीमान् जिनसेन पूज्य भगवत्पादो जगन्मंगलम् ॥
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यद्यपि इस वर्णन में कवित्व भी शामिल है, तो भी इससे इतना ज़रूर पाया 'जाता है कि महाराज अमोघवर्ष, जिनका दूसरा नाम नृपतुङ्ग था, एक बहुत बड़े प्रतापी, यशस्वी, उदार, गुणी, गुणन, धर्मात्मा, परोपकारी और जैन धर्मके एक प्रधान श्राश्रयदाता सम्राट् हो गये हैं । आपके द्वारा तत्कालीन जैनसमाज और स्वयं जिनसेनाचार्य बहुत कुछ उपकृत हुए और आपके उदार गुणों तथा यशकी धाकने आचार्य महोदय के हृदय में अच्छा घर बना लिया था ।
एक विद्वान् के कुछ विचार |
मृत्यु जीवनका ही दूसरा रूप है, जिस तरह जीवन मृत्युका दूसरा रूप है।
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श्राजका जो कर्म है, वही कलका भाग्य है ।
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बहुत से लोग भविष्य कालके जीव होते हैं । उन्हें यह वर्तमान काल विघ्नरूप जान पड़ता है। दूसरे कुछ लोग भूत
* 'गणित सारसंग्रह' के कर्ता महावीर आचार्यने भी आपकी प्रशंसा में कुछ पद्य लिखे हैं । कितने ही शिलालेखों आदिमें आपके गुणों का परिचय पाया जाता है। अवसर मिलने पर हम आपके विषयमें एक स्वतन्त्र लेख लिखना चाहते हैं । सम्पादक ।
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