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________________ *३२४ ' जैनहितैषी। [ भाग १५ प्रकाशक, मगनलाल त्रिलोकचंद, केकड़ी जिस असहयोगकी आज सारे भारत ख्या ७०। वर्ष में चर्चा फैली हुई है, उसीके सम्बन्ध ये तीनो पुस्तकें पड़ी बोलीके हिन्दी में लिखे हुए महात्मा गांधीके महत्वपूर पद्यों में है और एकत्र छपी हैं । पहली लेखोंका इस पुस्तकमें संग्रह किया गय दो पुस्तके अपने अपने नामकी संस्कृत है। साथ ही, असहयोगका प्रस्ताव पुस्तकोपर से अनुवादित हैं और तीसरी- असहयोग कमेटीका कार्यक्रम, कौन्सिलो के विषयमें ऐसा कुछ लिखा नहीं। अनु. का बायकाट और पंजाबका फैसला वाद मूलसे कहाँतक मिलता जुलता है, नामसे कुछ बातें परिशिष्ट रूपसे भी दी इसकी जाँचका हमें कोई अवसर नहीं हुई हैं और इससे पुस्तककी उपयोगिता मिला । पुस्तकमे यद्यपि भनेक छन्दोका स्वतः सिद्ध है। ये लेख महात्माजीकी प्रयोग किया गया है, परन्तु रचना साधा- संपादकीसे निकलनेवाले 'यंगइंडिया' रण है। अच्छा होता यदि आत्मानुशास- और 'नवजीवन' नाम के पत्रों में प्रकाशित नादिका अनुवाद खड़ी बोलीके पद्यों में हुए थे, वहींसे अनुवादित किये गये हैं। किया जाता। अस्तु, यह पुस्तक प्रका- प्रत्येक भारतवासीके पढ़ने और मनन शकके पाससे बिना मूल्य मिलती है, करनेके योग्य यह लेखमाला है, इस बात. और इसकी कुल पाँच सौ प्रतियाँ छपाई के बतलाने की ज़रूरत नहीं है । पुस्तककी गई हैं। दो पेजके शुद्धिपत्रसे बाहर भी छपाई सफाई साधारण है और कागज पुस्तकमें कितने ही स्थानोंपर अशुद्धियाँ घटिया लगाया गया है जो ऐसी पुस्तकके पाई जाती हैं। लिए उपयुक्त मालूम नहीं होता। पुस्तक६ असहयोग-(प्रथम भाग) प्रका• केटाइटिल पेजपर महात्माजीका पवित्र शक, राष्ट्रीय ग्रन्थमाला कार्यालय ६३ चित्र भी लगा हुश्रा है जो पाठकों के मनहिवेट रोड, इलाहाबाद । पृष्ठ संख्या १०। को अपनी ओर आकर्षित किये बिना मूल्य, छह माना। - नहीं रह सकता। आवश्यक सूचना। नन्द जी आदि संन्यासी इस सभाके . भारतवर्ष में देवी देवताओं के नामपर आनरेरी प्रचारक हैं, और बहुतसे प्रति. घोर हिसा होती है। उसको यथाशक्ति ष्ठित गृहस्थ इसके सभासद तथा अन्य प्रेमपूर्वक बन्द करानेका कार्य हमारी कई विद्वान् प्रचारक हैं, इसलिए डेपुसभाने अपने हाथ में लिया है; अतएव टेशन आदि द्वारा उक्त कार्य किया जा जहाँ पर जिस किसी भी त्यौहार अथवा सकेगा। पत्र निम्नलिखित पते पर भेजना मेले पर पशुषध होता हो, वहाँके भाई चाहिएपत्र द्वारा सम्पूर्ण व्यवस्था लिखकर खबर भेजे । जहाँ तक हो सकेगा, उसको पं. बाबूराम बजाज मन्त्री बन्द करने का प्रयत्न किया जायगा। चूँकि जीवदयाप्रचारिणी सभा. N. S. स्वामी सच्चिदानन्दजी, महात्मा रामा अहारन (भागरा) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522890
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size10 MB
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