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अङ्क ४-१०] ऐलक-पद कल्पना।
. ३११ है, अपने 'धर्मोपदेशपीयूषवर्ष' नामके दोषको छोड़कर उइंड मिक्षाके द्वारा, श्रावकाचारमें, इस प्रतिमाके दो भेद श्रावकों के घर पर, एक बार युक्तिपूर्वक करते हुए लिखते हैं कि
भोजन किया करता है। उसके त्रिकालतस्य भेदद्वयं प्राहु
योगका नियम नहीं और वोरचर्या,
सिद्धान्ताध्ययन तथा सूर्यप्रतिमाका रेकवस्त्रधरः सुधीः ।
सर्वथा निषेध है। प्रथमोऽसौ द्वितीयस्तु
यहाँ इस प्रतिमाधारी के दो भेद यती कौपीनमात्रभाक् ॥२७०॥ . करके उन भेदोंके जो 'सुधी' और 'यती' यः कौपीनधरो रात्रि
दो नाम दिये गये हैं, वे ऊपरके सभी प्रतिमायोगमुत्तमं ।
विद्वानोंके कथनोंसे विभिन्न है। और करोति नियमेनोच्चैः
सुधी (प्रथमोत्कृष्ट ) श्रावकके लिए कृत__ सदासौ धीरमानसः ॥२७१।। कारित दोषको टालनेका जो विधान लोचं पिच्छं च संधत्ते
किया गया है, वह इस बातको सूचित भुक्के सौ चोपविश्य वै।
करता है कि ब्रह्मने मिदत्तके मतानुसार
उसका भोजन, स्वामिकार्तिकेय तथा पाणिपात्रेण पूतात्मा
अमितगत्यादिके अनुसार नवकोटि-विशुद्ध ब्रह्मचारी सचोत्तमः ॥२७२॥
होता है। प्रस्तु, ब्रह्मनेमिदत्तने इस कृतकारितं परित्यज्य
प्रतिमाधारीके लिए सुधी और यती श्रावकानां गृहे सुधीः। नाम के दो नये नामोंका विधान करने उदण्डभिक्षया भुक्त
पर भी 'ऐलक' नामका कोई निर्देश नहीं चैकवारं संयुक्तितः ॥२७३।। किया, यह स्पष्ट है। साथ ही यह बात त्रिकालयोगे नियमो
भी किसीसे छिपी नहीं है कि 'यति' वीरचर्या च सर्वथा।
अथवा 'यती'* नाम जैन समाजमें, महासिद्धान्ताध्ययनं सूर्य
व्रतीके लिए बढ़ है और इस यति पदकी
प्राप्ति ग्यारहवीं प्रतिमाका उल्लंघन कर ..... प्रतिमा नास्ति तस्यवै ॥२७४॥
जाने के बाद होती है। श्रीसोमदेव अर्थात-इस प्रतिमा के दो भेद इस सरिके निम्न वाक्यसे भी यही पाय प्रकार है-पहला एक वस्त्रका धारक जाता हैजिसे 'सुधी' कहते हैं; और दूसरा कौपीन
षडनगृहिणो ज्ञेयास्त्रयः मात्रका धारक जिसे 'यती' कहते हैं। जो
___स्युर्ब्रह्मचारिणः । कौपीन मात्रका धारक है, वह धीरमानस,
भिक्षुको द्वौतु निर्दिष्टौ पवित्रात्मा नियमसे उत्तम रात्रिप्रतिमायोग किया करता है, केशलोंच करता है,
ततः स्यात्सर्वतो यतिः ॥ . पिच्छीरखता है, बैठकर करपात्रमें आहार
- -यशस्तिक। करता है और उत्तम ब्रह्मचारी होता है। इस वाक्यमें यह बतलाया या है और सुधी नामका श्रावक कृतकारित कि श्रावककी ११ प्रतिमानों में पाले छह
• यह इस्तलिखित ग्रंथ देहलीके नये मंदिरके * यह 'यतिन्' शब्दकी प्रथमा विभक्ति एकवचन भंडारमें मौजूद है।
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