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[भाग १५
इतिहास में दण्डनायक विमलशाह, मन्त्री एकदम वीरत्वका वेग उमड़ पाया ? मुंजाल, मन्त्री शान्तु, महामात्य उदयन इससे स्पष्ट है कि देशको राजनीतिक
और बाहड, वस्तुपाल और तेजपाल, उन्नति-अवनतिमें हिंसा-अहिंसा कोई भाभू और जगहू इत्यादि जैन राजद्वारी कारण नहीं है। इसमें तो कारण केवल पुरुषों का जो स्थान है वह औरोका नहीं राजकर्ताओंकी कार्यदक्षता और कर्तव्य. है। केवल गुजरातके ही इतिहास में नहीं, परायणता ही मुख्य है। परन्तु समुचे भारत के इतिहास में भी इन हाँ, प्रजाकी नैतिक उन्नति-अवनतिमें अहिंसाधर्मके परमोपासकोंके पराक्रमकी तत्त्वतः अहिंसा हिंसा अवश्य कारणभूत तुलना करनेवाले पुरुष बहुत कम मिलेंगे। होती है। अहिंसाकी भावनासे प्रजामें जिस धर्मके परम अनुयायी स्वयं ऐसे सात्त्विक वृत्ति खिलती है और जहाँ शूरवीर और पराक्रमशाली थे और सात्विक वृत्तिका विकास है, वहाँ सत्वजिन्होंने अपने पुरुषार्थ से देश और राज्य का निवास है । सत्वशाली प्रजाहोका को खूब समृद्ध और सत्त्वशील बनाया जीवन श्रेष्ठ और उच्च समझा जाता है था, उस धर्म के प्रचारसे देश या प्रजाको इससे विपरीत सत्वहीन जीवन कनिष्ट अधोगति कैसे हो सकती है ? देशकी और नीच गिना जाता है। जहाँ प्रजामें पराधीनता या प्रजाकी निर्यितामें सत्व नहीं वहाँ सम्पत्ति, स्वतन्त्रता आदि कारणभत'अहिंसा'कभी नहीं हो सकती। कल नहीं । इसलिए प्रजाकी नैतिक जिन देशोंमें 'हिंसा' का खूब प्रचार है, उन्नतिमें अहिंसा एक प्रधान कारण है। जो अहिंसाका नाम तक नहीं जानते हैं, नैतिक उन्नतिके मुकाबले में भौतिक एक मात्र मांस ही जिनका शाश्वत प्रगतिको कोई स्थान नहीं है और इसी भक्षण है और पशुसे भी जो अधिक क्रूर विचारसे भारतवर्षके पुरातन ऋषि होते हैं, क्या वे सदैव स्वतन्त्र बने रहते हैं ? मुनियोंने अपनी प्रजाको शुद्ध नीतिमान रोमन साम्राज्यने किस दिन अहिंसाका बननेका ही सर्वाधिक सदुपदेश दिया नाम सुना था? और कब मांस-भक्षण छोड़ा है। यरोपकी प्रजाने नैतिक उन्नतिको था १ फिर क्यों उसका नाम संसारसे गौण कर भौतिक प्रगतिकी और जो आँख उठ गया ? तुर्क प्रजामेंसे कब हिंसाभाव मोचकर दौड़ना शुरू किया था, उसका नष्ट हुश्रा और · करताका लोप हुआ? कटु परिणाम आज सारा संसार भोग फिर क्यों उसके साम्राज्यकी आज यह रहा है। संसारमें यदि सच्ची शान्ति और दीन दशा हो रही है? आयलॅण्डमें कब वास्तविक स्वतन्त्रताके स्थापित होनेकी अहिंसाकी उदघोषणा की गई थी? फिर आवश्यकता है तो मनुष्यों को शुद्ध नीतिक्यों वह प्राज शताब्दियोंसे स्वाधीन मान् बनना चाहिए। होनेके लिए तड़फड़ा रहा है ? दूसरे शुद्ध नीतिमान् वही बन सकता है देशोंकी बात जाने दीजिए-खुद भारत- जो अहिंसाके तत्वको ठीक ठीक समझकर हीके उदाहरण लीजिये। मुगल साम्राज्य उसका पालन करता है। अहिंसा तो के चालकोंने कब अहिंसाकी उपासना शान्ति, शक्ति, शुचिता, दया, प्रेम, क्षमा, की थी जिससे उनका प्रभुत्व नामशेष सहिष्णुता, निर्लोभता इत्यादि सर्व प्रकारहो गया और उसके विरुद्ध पेशवाओने के सद्गुणोंकी जननी है। अहिंसाके पाचकब मांस-भक्षण किया था जिससे उनमें रणसे मनुष्यके हृदय में पवित्र मावोंका
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