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________________ जैनहितैषी। [ भाग १५ चाहिए जिसके कान उपदेशोसे नहीं कमलके फूलकी तरह नहीं होता, जो खुलते, भले ही वह उन उपदेशोंको कभी तो खूब खिल उठता है और कभी सुनता रहे। .. बिलकुल बन्द रहता है। ४१४-जिसके कानीने शुद्ध परिष्कृत ४२६--जिस भाँति संसार चलता शानकी बातें नहीं सुनी हैं उसके मुंहके है, बुद्धिमान् उसीका अनुकरण करता है। लिए मीठे और कोमल शब्दोका जुटना ४२७--बुद्धिमान् पुरुष होनहार' कठिन है। अर्थात जिस मनुष्यने सदुप- को पहलेसे ही जान जाते हैं, परन्तु मूर्ख देशोको सुनकर शान प्राप्त नहीं किया है, भविष्यके विषयमें कुछ भी नहीं जान पाते। उससे यह आशा नहीं की जा सकती ४२८--मूर्ख मनुष्य भयङ्कर बुराइयों• कि वह नम्र शब्दोंका प्रयोग करेगा। को निधड़क होकर करते हैं। जहाँ भय. ४२०-जो मनुष्य जिह्वा-इन्द्रियके का कारण हो वहाँ भय खाना, यह बुद्धिस्वादको तो जानता है परन्तु कर्ण- का काम है। इन्द्रियके द्वारा आनन्दप्राप्ति नहीं कर ४२४--बुद्धिमान् मनुष्य--जो बड़े लिया सकता, उस मनुष्यके जीवनसे संसार ध्यानसे आनेवाली बुराइयोंको पहलेसे का कुछ सरोकार नहीं--चाहे वह जीये ही जान लेते हैं--उन बुराइयोंसे भी बचे और चाहे मरे। रहते हैं जो भयावह हैं। . ४३-सत्यार्थ ज्ञान। ४३०--बुद्धिमान के पास सब कुछ है। परन्तु मूर्खके पास चाहे सब कुछ ४२१–सत्यार्थ शान वह है जो सेना- हो तो भी कुछ नहीं है। के समान राजाकी और दुर्गके समान उसके राज्यकी रक्षा करता है। ४४-दोषनिवृत्ति। ४२२-यद्यपि वि . ४३१--जो मनुष्य क्रोध, मान, मद रूपसे नहीं विचरने देता है, किन्तु उसे और कामसे रहित हैं, उनमें एक विशेष बुराईसे बचाकर सन्मार्गमें लगा देने गुण होता है जो इनकी सम्पत्तिको वाला भी वही है। सुशोभित करता है। , ४२३-लोगोंके मुंहसे हम चाहे ४३२--कृपणता, अहङ्कार और अनुजितनी बातें सुने, परन्तु सत्यका पता चित अभिमान ये तीन भवगुण राजानोंबिना बुद्धिमानीके नहीं लगता। में कदापि न होने चाहिएँ। ४२४-बुद्धिमानोंके द्वारा ऐसे स्पष्ट ४३३--पाप-भीरु लोग अपने छोटेसे शब्दोंका प्रयोग होता है कि उन्हें सब छोटे दोषको भी ताड़के समान बड़ा कोई समझ जाते हैं। बुद्धि ही दूसरे समझते हैं। मनुष्योंके वार्तालाप से तत्त्वको निका- ४३४-३५-- x x x लती है। अर्थात् बुद्धिमान् ऐसे शब्दोंका ४३६--जो राजा पहले अपने दोषोंप्रयोग करता है जिन्हें सब समझ जाते की शुद्धि कर लेता है और फिर दूसरोंके हैं और वह दूसरोके भावों को भी दोषोंकी जाँच-पड़ताल करता है, उसपर समझ जाता है। ऐसी कौन बुराई है जो असर करेगी ? ४२५-बुद्धिमान् संसार भरको कोई नहीं। अपना मित्र रखता है। उसका स्वभाव ४३ --जो मनुष्य अपने धनको जहाँ स्वच्छन्द Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522890
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size10 MB
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