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________________ जैनहितैषी। [ भाग १५ नौकरशाहीके अत्याचारपूर्ण शासनको ही नहीं कर सकती। यह कैसे हो सकता नष्ट करना और गोरों तथा कालोंके है कि देश की एक चतुर्थांश जनताको अस्वाभाविक अधिकार भेद को मिटाना। बाद देकर हम अपनी पूरी शक्तिके साथ यह कहनेकी आवश्यकता नहीं कि हमारे खड़े हो सके? हमें उसकी भी पूरी पूरी देशमें वे लोग भी रहते हैं जिन्हें हम सहायता चाहिए । घरमें घृणा, विद्वेष अस्पश्य समझते हैं. जिनके स्पर्शको पाप और तिरस्कारको बनाये रस्त्रकर हम बल. समझते हैं, जिनके साथ पशुशीसे भी वान् नहीं हो सकते। बदतर व्यवहार करते हैं और जिनकी संख्या सात करोड़से भी अधिक है। ये महात्मा गान्धीके विचार । लोग भी इसी भारत माताकी सन्तान है इस प्रारंभिक निवेदन के बाद अब हम और इनको भी हमारे ही समान स्वतन्त्रता महात्मा गांधी के उन सब विचारोंका चाहिए । जब जब हमारी ओरसे स्वतं- सारांश प्रकट करेंगे जो उन्होंने अपने अनेक प्रता और स्वाधीनताका. दावा किया व्याख्यानों और लेखों में प्रकाशित किये हैं। आता है, तब तब हमारे शासकों और परन्तु इसके पहले हम यह भी कह देना उनके भाई-बन्धुओकी ओरसे सबसे पहले चाहते हैं कि महात्माजी इस विषयकी यही व्यंग्यपूर्ण उत्तर मिलता है कि- चर्चा केवल राष्ट्रीय दृष्टिसे नहीं कर रहे "पहले तुम अपने भाइयों को अपने देश हैं। धार्मिक दृष्टिसे भी उन्होंने इसका वासी अस्पृश्योंको तो स्वाधीन करो, उन्हें ऊहापोह किया है । इसके सिवाय उनकी तो मनुष्य समझने लगो; तब दूसरोसे राजनीति धर्मनिरपेक्ष नहीं है। वे धर्मस्वाधीन होनेकी चर्चा करना ! जब तुम को अपनी राजनीतिका प्रधान अंग अपने देशवासियों को ही इसके पात्र मानते हैं। वे कट्टर धर्मात्मा हैं और साथ नहीं समझते हो, तब यदि हम लोग तुम हो हिन्दुओं की वर्णाश्रम पद्धति के विरोधी कालोको स्वाधीनताके पात्र न समझे, नहीं हैं। वे इसे भी पसन्द नहीं करते कि तो इसमें कौन सा आश्चर्य है ?" एक बार चाहे जहाँ और चाहे जिसके यहाँ खानास्वामी विवेकानन्द जीने भी इसी बात पर पीना और चाहे जिसके साथ विवाहलक्ष्य रखते हुए खिजलाकर कहा था कि सम्बन्ध किया जाय। फिर भी वे अस्पृ. "अरे गुलामो ! तुम स्वाधीनता क्यों श्यताको पाप समझते हैं और उनका चाहते हो ? क्या और नये गुलाम तैयार दावा है कि हिन्दू धर्म में इस अस्पृश्यता. करने के लिए ?" राष्ट्रीय महासभाने इन्हीं को कोई स्थान नहीं है। अच्छा तो अब सब श्राक्षेपोंके उत्तर-स्वरूप अबकी बार उनके विचार सुनिये। अस्पृश्यता निवारक प्रस्ताव पास किया बम्बई के सुप्रसिद्ध पत्र 'गुजराती के है; और सच तो यह है कि इस प्रस्तावको आगेका उत्तर देते हुए आपने कहा हैपास करके ही वह सच्ची महासभा _ “x x x हिन्दू धर्म में मुझे कहीं यह विधान नहीं मिला कि भंगी, डोम आदि - लोग इसे भले ही धार्मिक प्रश्न समझे, जातियाँ अस्पृश्य है । हिन्दूधर्म अनेक रूढ़ि. परन्तु महासभाके लिए तो यह शुद्ध योसे घिरा हुआ है। उनमेसे कुछ रूढ़ियाँ राष्ट्रीय प्रश्न है और इसके हल किये बिना प्रशंसनीय हैं, शेष निन्द्य हैं। अस्पृश्यतावह सारे देशकी प्रतिनिधि होने का दावा की रूढ़ि तो सर्वथा निन्ध है ।। इसकी बनी है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522890
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size10 MB
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