SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Reg. No. A. श्रात्मानुशासन / - पावपुराण भाषा / कविवर भूधरदासजीका यह अपूर्व भगवान् गुणभद्राचार्यका बनाया हुश्रा यह ग्रन्थ प्रत्येक जैनीके स्वाध्याय करने ग्रन्थ दूसरी बार छपाया गया है / इसकी योग्य है। इसमें जैनधर्मके असली उद्देश्य कविता बड़ी ही मनोहारिणी है। जैनियोंशान्तिसुखकी ओर आकर्षित किया गया के कथाग्रन्थों में इससे अच्छी और सुन्दर कविता आपको और कहीं न मिलेगी। है। बहुत ही सुन्दर रचना है। आजकल. विद्यार्थियोंके लिये भी बहुत उपयोगी है। की शुद्ध हिन्दीमें हमने न्यायताथ न्याय शास्त्रसभाओं में बाँचनेके योग्य है। बहुत शास्त्री पं० वंशीधरजी शास्त्रीसे इसकी सुन्दरतासे छपा है / मूल्य सिर्फ 1) रु.। टीका लिखवाई है और मूलसहित छपवाया है। जो जैनधर्मके जाननेकी इच्छा कथामें जैनसिद्धान्त / रखते हैं, उन अजैन मित्रोंको भेटमें देने योग्य भी यह ग्रन्थ है / मूल्य 2) की गूढ़ कर्म-फिलासफीको सरलतासे समझना हो और एक बढ़िया काव्यका षट्माभृतादिसंग्रह। प्रानन्द लेना हो तो प्राचार्य सिद्धर्षिके बनाये हुए 'उपमितिभवप्रपचाकथा' यह माणिकचन्द ग्रन्थमालाका १७वाँ नामक संस्कृत ग्रन्थके हिन्दी अनुवादको ग्रन्थ है। इसमें प्राचार्य कन्दकन्दके अवश्य पढिये।अनुवादक श्रीयुत नाथूराम - पाहुड़ और रयणसार, द्वादशानुप्रेक्षा प्रेमी / मूल्य प्रथम भागका॥)और द्वितीय ये दस ग्रन्थ छपे हैं। पहलेके 6 पाहुडोकी भागका / -) जैन साहित्यमें अपने ढंगका आचार्य श्रुतसागरकृत संस्कृत टीका भी है, यही एक ग्रन्थ है। जो बहुत विस्तृत है। अन्य ग्रन्थ मूल संस्कृत ग्रंथ। और संस्कृत छाया सहित छपे हैं। प्रत्येक 1 जीवन्धर चम्पू-कवि हरिचन्द्रकृत। 11) भंडारमें इसकी एक एक प्रति रहनी 2 गद्यचिन्तामणि-वादीभसिंहकृत / ) चाहिए / मूल्य लागत मात्र तीन रुपया। 3 जीवन्धरचरित-गुणभद्राचार्यकृत / 1) 4 क्षत्रचूड़ामणि-वादीभसिंहकृत। मू०१) 5 यशोधरचरित-वादिराजकृत। मू० // ) भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यका यह बिलकुल चरचा समाधान / पं. भूधरमिश्र ही अप्रसिद्ध ग्रन्थ है। लोग इसका नाम कृत / भाषाका नया ग्रन्थ। हालही में छपा है। मूल्य 2 // -) भी नहीं जानते थे। बड़ी मुश्किलसे प्राप्त करके यह छपाया गया है / नाटक समय जन ग्रन्थों का सूचीपत्र सार आदिके समान ही इसका भी प्रचार अभी हाल में ही छपकर तैयार हुआ होना चाहिए / मूल प्राकृत,संस्कृतच्छाया, है। मिलनेवाले तमाम ग्रन्थोंकी सूची है। भाचार्य पद्मप्रभमलधारि देवकी संस्कृत जिन सजनोंको चाहिए वे एक कार्ड टीका और श्रीयुत शीतलप्रसादजी बन. लिखकर मॅगा ले। चारीकृत सरल भाषाटीकासहित यह - मैनेजरछपाया गया है। अध्यात्मप्रेमियों को अवश्य जैन-ग्रन्थ-रत्नाकर काय्यालय, स्वाध्याय करना चाहिए। मूल्य 2) दोरु०। हीराबाग, पो० गिरगाँव, बम्बई / Printed & Published by G.K. Gurjar at Sri Lakshmi Narayan Press, Jatanbar, Benaie: City, for the Proprietor Nathuran Premi of Bombay 114.21. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522889
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy