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जैनहितैषी।
[ भाग १५ गणे श्रीकुन्दकुन्दाचार्यान्वये भट्टारकश्री. स्थित थे और मल्लिभूषणका शायद स्वर्गपचनन्दिदेवास्तत्पट्टे भट्टारकश्रीदेवेन्द्रकी- वास हो चुका था। र्तिदेवास्तत्पट्टे भट्टारकाश्रीविद्यानन्दिदेवा
(अपूर्ण) स्तपट्टे भट्टारकश्रीमल्लिभूषणदेवास्तपट्टे भट्टारकश्रीलक्ष्मीचन्द्रदेवास्तेषां शिष्यवरब्रह्मश्रीज्ञानसागरपठनार्थ ।। आर्या श्रीविमल. विविध विषय । श्री चेली भट्टारक श्रीलक्ष्मीचद्रन्दीक्षिता
१-अधिवेशन सफल हुआ विनयश्रिया स्वयं लिखित्वा प्रदत्तं महा. भिषेकभाष्यं ॥ शुभं भवतु ॥ कल्याणं
या असफल । भूयात् ।। श्रीरस्तु ॥
भारतवर्षीय दि० जैन महासभाके इससे मालूम होता है कि विद्यानन्दि- जिस अधिवेशनकी अ... बड़ी धूम थी के पट्टपर मल्लिषेणकी और उनके पट्टपर और बहुत शोर था वह कानपुरमें गत लक्ष्मीचन्द्रको स्थापना हुई थी। यशस्ति- १, २, ३ अप्रेल को हो गया। इस अधिलकटीकामें श्रुतसागरने मल्लिभूषणको वेशनकी जो रिपोर्ट जैनगजट, जैनमित्र अपना गुरुभ्राता लिखा है। इससे भी और जैनप्रदीप आदि पत्रोंमें प्रकाशित मालूम होता है कि विद्यानन्दिके उत्तरा- हुई हैं, उन्हें हमने साद्यंत पढ़ा है और धिकारी मल्लिभूषण ही हुए होंगे। यश- बाबू अजितप्रसादजी वकील, लखनऊका स्तिलकचन्द्रिका टीकाके तीसरे पाश्वास- लिखा हुआ कश्या चिढ़ा इस अङ्कमें के अन्तमें लिखा है
अन्यत्र प्रकाशित ही है। इसमें सन्देह इतिश्रीपग्रनन्दिदेवेन्द्रकीतिविद्यान नहीं कि महासभाके सभापति श्रीमान
साहु सलेखचन्दजी और स्वागतकारिणी न्दिमल्लिभूषणाम्नायेन भट्टारकश्रीमल्लिभूष
- सभाके सभापति लाला रामस्वरूपजीके णगुरुपरमाभीष्टगुरुभ्रात्रा गुर्जरदेशसिंहा
व्याख्यान समयानुकूल बहुत कुछ अच्छे सनभट्रारकश्रीलक्ष्मीचन्द्रकाभिमतेन मालव- हुए और उनमें कितनी ही बातें बडे देशभट्रारकश्रीसिंहनंदिप्रार्थनया यतिश्री महत्त्वकी और कामको कही गई थीं। सिद्धान्तसागरव्याख्यातिनिमित्तं नवन- परन्तु महासभामें उनपर विचार होकर वतिमहामहावादिस्याद्वादलब्धविजयेन तर्क- किसी प्रस्तावका पास होना तो दूर रहा, व्याकरणछन्दोऽलंकारसिद्धान्तसाहित्यादि- वे सब्जेक कमेटीमें प्रायः उठाईतक भी शास्त्रनिपुणमतिना प्राकृतःशकरणाद्यनेक- नहीं गई और इसलिए ऐसी कामकी शास्त्रचञ्चुना सूरिश्रीश्रुतसागरेण विरचि.
बातें महासभाके इस अधिवेशनमें एक
प्रकारसे ऊँटका पादही रही ! महासभाके तायां यशस्तिलचन्द्रिकााभधानायां यशो
जिल सङ्गठनकी अर्सेसे शिकायत चली धरमहाराजचरितचम्पुमहाकाव्यटीकायां
जाती है, जिसके सम्बन्धमें जैनसिद्धान्तयशोधरमहाराजराजलक्ष्मीविनोदवर्णनं विद्यालय मुरैनाकी कमेटीने, महासभाके नाम तृतीयाश्वासचन्द्रिका परिसमाप्ता।" पत्रोपर, अपना यह निश्चय प्रकट किया __ इससे मालूम होता है कि उस समय कि “महासभाका जबतक योग्य सङ्गठन गुर्जर देशके पट्टपर भट्टारक लक्ष्मीचन्द्र न हो आय तबतक उसकी अधीनता
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