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________________ ARARA पन्द्रहवाँ भाग । अंक ६ SC WALD WHEN WE हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः । Key Jain Education International जैनहितैषी WOMEN WA नया संदेश | समालोचना करनेवाला जैनी नहीं ! किसी वस्तुके गुण-दोषपर विचार करना और उन्हें दिखलाना समालोचना कहलाता है । परीक्षा, मीमांसा और विवेचना भी उसीके नामान्तर हैं । समालोचनाके द्वारा विवेक जागृत होता, हेयोपादेयका ज्ञान बढ़ता और अन्ध श्रद्धाका नाश होता है । इसलिए सद्धर्मप्रवर्तक और सद्विचारक जन हमेशा परीक्षा-प्रधानताका अभिनन्दन किया करते और उसे महत्त्वकी दृष्टिसे देखा करते हैं । जैनधर्ममें इस परीक्षा प्रधानताको और भी ज्यादा महत्त्व दिया गया है और किसी भी विषयके त्यागग्रहण से पहले उसकी अच्छी तरहसे न हो पक्षपाती बतावे सुमार्ग, डरे ना किसीसे कहे सत्यवाणी । बने है विनोदी भले आशयोंसे, सभी जैनियोंका हितैषी 'हितैषी' ।। JEG GETS चैत्र २४४७ - श्रप्रैल १६२१ For Personal & Private Use Only जाँच पड़ताल कर लेनेकी प्रेरणा की गई है । गुण दोषोंपर विचार करनेका यह अधिकार भी सभी मनुष्योंको स्वभावसे ही प्राप्त है, चाहे वह मनुष्य छोटा हो या बड़ी और चाहे उच्चासन पर विराजमान हो या नीचे पर । जो मनुष्य किसी वस्तुको निर्माण करके उसे पब्लिकके सामने रखता है, वह अपने उस कृत्य के द्वारा इस बातकी घोषणा करता है कि प्रत्येक मनुष्य उस वस्तुके गुण-दोषोंपर विचार करे । और इसलिए पब्लिकमें रक्खी हुई किसी वस्तुपर यदि कोई मनुष्य अपनी सम्मति प्रकट करता है, उसके गुण-दोषोंको बतलाता है तो उसके इस अधिकारमें बाधा डालनेका किसीको अधिकार नहीं है । अपनी भूल और अपनी त्रुटि बहुधा अपनेको मालूम नहीं हुआ करती, उसे प्रायः दूसरे लोग ही बतलाया करते हैं । कभी कभी उन भूलों www.jainelibrary.org
SR No.522889
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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