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________________ १८२ नहितैषी [भाग १५ सब महामन्त्रीजीके अधिकार में है और प्रसादजी स्वतः खड़े होकर कहें। पण्डित . वे ही उसका हिसाब रखते हैं। बाबू दुर्गाप्रसादजीने ऐसा भी किया। तब नवलकिशोर कोषाध्यक्ष इस कारण कह- धन्नालालजीने कहा-"तुम जैनधर्म के लाते हैं कि महाविद्यालयके ध्रुवकोष अविरुद्ध लेख इसमें लिखोगे और जो सम्बन्धी रुपयोंके सरकारी प्रामिसरी धर्मविरुद्ध लेख अन्य समाचारपत्रों में नोट जो उनके पूज्यपिता श्रीमान् जैन प्रकाशित होंगे, उनका खण्डन करोगे।" जातिभषण डिप्टी चम्पतरायजीके नाम उन्होंने यह भी स्वीकार किया। फिर कहा थे, वे उनके देहान्त पर बाबू नवल- गया कि एक वर्ष नहीं बल्कि ३ वर्षका किशोरजीके नामपर कोषाध्यक्ष महा- ठेका जैनगजटका कानपुरके भाई ले लें। सभाकी हैसियतसे हैं। उनका सूद इससे कानपुरके जैनसमाजका एक प्रकारसरकारी खजानेसे छठे महीने नियत दर- से अपमान और निरादर हुआ और वे से दिया जाता है और नोटोपर लिख इस विषयमें उदासीन हो गये। ब्रह्मचारी दिया जाता है। इन नोटोंके नम्बर और शीतलप्रसादजीने जैनगजट सम्पादक सुदकी दर महासभाके कार्यालयमें है। पं० रघुनाथदासजी सरनऊ निवासीके महामन्त्री जो रुपया बाबू नवलकिशोर- सुसम्पादनकी प्रशंसा की और जैनगजट. जीसे पाते हैं उसकी रसीद भी उनको को सालाना घाटा देकर भी उन्हीं की नहीं देते। यह प्रस्ताव सब्जेकृ कमेटीसे सम्पादकीमें रखनेका परामर्श दिया !* नामंजूर हुश्रा परन्तु इसके वादविवादमें और इस घाटेकी पूर्तिके पुण्यकार्यमें कमेटीका एक घण्टे के करीब समय लग कितने ही धर्मात्माओंने भाग लिया और गया। जैन गजटके गत वर्षसम्बन्धी लग. १२५-१२५ रुपये देना स्वीकार किया। भग ३०००) रुपये घाटेकी पूर्ति और २४८००)का बजट पसन्द किया गया और आगामी सुप्रबन्ध तथा योग्य सम्पादक- हमारे यह पूछनेपर कि गत वर्ष १००). की योजना-विषयक प्रस्तावपर बहुत जो युवराजके ऐड्रेममें खर्च होना बतलाये • विवेचन हुआ |* लाला रामस्वरूपजी . गये हैं वे किस बातमें खर्च हुए; क्योंकि कानपुर निवासीने कहा कि आगामी युवराज नहीं पधारे और ऐड्रेस नहीं वर्षके वास्ते कानपुर जैनसमाज, जैन दिया गया, उत्तर दिया गया कि १००) गजटके सम्पादन और खचेका भार रु. एक वकीलको मानपत्र (ऐड्रेस) का अपने ऊपर लेता है। पं० धन्नालालजीने मसविदा करनेके उपलक्ष्य में दिये गये हैं। पछा, सम्पादन कौन करेगा? कहा गया इसपर हमने कहा कि महामन्त्रीजीके कि, पण्डित दुर्गाप्रसादजी। इसपर पं० इच्छानुसार हमने जो एक ऐड्रेस तय्यार धन्नालालजीने कहा कि पण्डित दुर्गा करके उनके पास भेजा था, उसका क्या ० इस विवेचनमें स्वागतकारिणी सभाके उपमन्त्री .परन्तु ब्र० शीतलप्रसादजी जैनमित्रके गतांक बाक रूपचन्दजीने यह भी कहा कि नगजटके वर्तमान नं०२१ में जैनगजटकी सम्पादकीपर अपना निम्न प्रकारसे सम्पादक अपने कर्तव्यको नहीं समझते और न जिम्मे- असन्तोष प्रगट करते हैं, यह बड़ी ही विचित्र बात है। दारियों को पहचानते हैं उन्हें सम्पादकाय कर्तव्योंका ज्ञान मालूम न इसमें क्या रहस्य है-"शोक है कि गजटकी करानेके लिए उनके ऊपर एक हेड सम्पादककी भी जरू- लेखनशैली नत्तम न होनेपर भी इसकी सम्पादकोका रत है, ऐसा जैनप्रदीपके सम्पादक महाशय सूचित करते कोई यथोचित प्रबन्ध न किया गया जिससे यह भारी है। सम्पाटक। घाटा बन्द हो जाता।"..--अम्पादक' . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522889
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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