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________________ .: १२० जैनहितैषी। [भाग,१५ । और समर्थन किया करते हैं लेकिन स्वयं काट किया तो उसकी बुद्धिकी व्यंगपूर्ण आपका उसपर अमल नहीं है और इस- हँसी उड़ाई थी। इससे इस पत्रके संपालिए आपके पाठकोपर भी उसका कुछ दक महाशय उक्त बहिष्कारके विरोधी हैं असर नहीं हो सकता, वह केवल कहने और इन पत्रोंको बराबर पढ़ा करते हैं, सुनने हीकी बात रह जाती है। यह स्पष्ट है । हालमें आपका एक पत्र . २ जैनमार्तण्ड-इस पत्रके सम्पादक- . .भी जैनहितैषीकी प्रशंसामें हमारे पास ने अपने गतांक नं० १२ में जैनहितैषीके श्राया है। "विक्रीत देह' वाले नोटपर अपने विचार . ७ जैनप्रदीप-इस पत्रके सम्पादक लिखे थे, जिससे मालूम होता है कि श्राप ला० ज्योतिप्रसादजी भी पत्रोंकी इस जैनहितैषाको पढ़ते हैं और जैनहितैषी बहिष्कार-नीतिके बिलकुल विरुद्ध हैं आपके पास परिवर्तनमें जाता है। और आप जैनहितैषी आदि सभी पत्रोंको आपने उसका बहिष्कार नहीं किया। विचार दृष्टिसे पढ़ा करते हैं। ... . ३ पद्मावतीपुरवाल-इसके सम्पा- जैनहितेच्छु-इस पत्रके सम्पादक . दक महाशय भी जैनहितैषीको पढ़ते हैं श्रीयुत वाडीलाल मोतीलालजी शाह और उसे अपने पत्रके परिवर्तनमें मँगाते जैनहितैषीको बराबर बड़े प्रेमके साथ हैं। हालके अपने अंक (नं० ) में उन्होंने पढ़ा करते हैं और आपने इस पत्रके जैनहितैषीके गतांकमें प्रकाशित बाबू स सम्बन्धमें अपने गहरे विचार प्रकट किये निहालकरणजी सेठीवाले लेखपर अपने हैं। इसी तरह श्राप सत्योदय आदिको कुछ विचार प्रकट किये हैं। इससे स्पष्ट भी पढ़ते हैं । (आपने २५०) रुपयेके है कि उन्होंने भी बहिष्कार नहीं किया। इनामका एक नोटिस भी निकाला है जो , उस लेखकको दिया जायगा जो कलकत्ता ४ जैनसिद्धान्त-यह जैनशास्त्रपरि सभाकी कार्ररवाईको न्यायपुरस्सर और पटका मखपत्र है। इसके सम्पादक जैनद्रितैषी आदि पत्रोको 'अजैन सिद्ध महाशय भी जैनहितैषीको पढ़ते हैं। कर दे और जिसका लेख पाँच निष्पक्ष उन्होंने अपने हालके अंकमें ही जैनहितैषी विद्वानों की कमेटीसे पास हो जाय । 'पर अपने विचार प्रकट किये है। . आपकी रायमें कलकत्ता सभाकी कार से ५ जैनमित्र-इस पत्रके सम्पादक रवाई बिलकुल अन्यायपूर्ण और नासमब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी जैनहितैषीको झीका परिणाम है और इसलिए आपने •बराबर पढ़ते हैं। आपको बहिष्कार मान्य इस बातकी जाँचके लिए कमसे कम एक ही नहीं है, ऐसा आपने सेठ लालचन्दजी सालके लिए इन पत्रोंके ग्राहक होनेकी के व्याख्यानकी आलोचना करते हुए, सबको प्रेरणा की है। जैनमित्रके गत २३ दिसम्बरके अंकमें इसी तरह और भी कितने ही जैनसूचित किया है। पत्र हैं जिनके सम्पादक इन बहिष्कृत . ६ जैसवाल जैन-इसके संपादक पत्रोंको, खासकर जैनहितैषीको बराबर श्रीयुत महेंद्र जीने कलकत्ता सभाकी पढ़ते हैं। जब पत्र-सम्पादकोंको ही यह कार्रवाईको अनुचित बतलाया था और बहिष्कार स्वीकार नहीं है, जिनके हाथमें जब बादको उसने जैनहितैषीका भी बाय- समाजकी बहुत कुछ बागडोर रहती है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522887
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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