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________________ अङ्क ३-४] सेठ लालचन्दजी सेठीका भाषण । व्यापारके साथ बहुत गहरा सम्बन्ध है बन सके। ऐसी सूरतमें हमारा प्रधान और हमारी कौमका जीवन ही व्यापारपर कर्त्तव्य होना चाहिए कि हम स्त्रियोंको. अवलम्बित है। हमें चाहिये कि राजभक्ति पूर्ण सन्मानकी दृष्टिसे देखें। यह श्लोक कायम रखते हुए देशसेवाके कामोंमें तो आपने सुना ही होगा कि- “यत्र यथासाध्य खूब भाग लेते रहें।" और स्त्री. नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।" और शिक्षापर अपनी सम्मति प्रकट करते हुए न यह श्लोक ही हम श्रादि पुराणके अभ्या. मापने कहाः सियोंको भूल जाना चाहिये कि “नारी __"स्त्रियाँ ही एक ऐसी चीज हैं, जिनकी गुणवती धत्ते स्त्री सृष्टेरग्रिमम् पदम्। गोदमें हमारे सब बड़े बड़े व्यापारी,राजा, प्राचीन समयमें भी स्त्रियोंकी मानमर्यादाचक्रवर्ती, गणधर यहाँतक कि तीर्थङ्कर का बहुत खयाल रक्खा जाता था और भगवान तक खेले हैं और ये सुशीला व उनकी कतई अवहेलना नहीं की जातीथी, गुणवती स्त्रियोंके ही हाथ हैं जो हमारी यह बात हमको नहीं भूलनी चाहिए। नेशन तककी तैयार करते हैं। यह बात मगर अफसोस है कि श्राज हमारी स्त्रियोंहमको हमारी प्राचीन सतियों के चरित्रों- की, बालविधवाओकी, तरुण विधवाओं. को पढ़नेसे स्पष्ट प्रकट होती है। की और असहाय वृद्ध नारियोंकी क्या ___"पुरुष समाज चाहे कितनी भी उन्नति दुर्दशा है ! प्रत्येक मनुष्यका कर्त्तव्य होना कर ले और महिलासमाज इसी अवनत । स्त्रीजाति उसके लिए दशामें पड़ा रहे तो हमारी उन्नति होना मातृरूपमें, भार्यारूपमें, भग्निरूपमें, पुत्रीअसम्भव है। जैसे पुख्ता नीवके बिना रूपमें बड़े स्नेहके साथ स्वार्पण करती है। सुन्दर मकान भी नहीं ठहर सकता वैसे उसका प्रतिफल भक्तिभावसे किसीन ही हमारी उन्नतिके लिए स्त्रीरूपी नींवको किसी रूपमें सच्चे हृदयके साथ अवश्य दृढ़ करना होगा। पर खेद है कि वर्त्त- देवे । यह तो हुई श्राम स्त्रियोकी बात। मान समयमें हमारा स्त्रीसमाज बहुत अब मैं खास विधवाओंकी हालतपर कुछ लक्ष्यसे गिर गया है। पुरुषोंकी तरह विचार करता हूँ। लड़कियों और स्त्रियों की शिक्षाका भी विधवाओंकी हालत बहुत शोचनीय प्रबन्ध करना जातिका महान्, कर्तव्य होना है। समाजमें कई ऐसी असहाय विधचाहिए । हमें स्त्रियोंको इस प्रकारकी वाएँ हैं जो बड़े दुःख के साथ सदाचार.. शिक्षा देनी चाहिए कि जिससे वे श्रादर्श पूर्वक अपना जीवन बिताती हैं। कितनी गृहिणी और आदर्श माताके कर्तव्योंको ही विधवाओंका तो निर्वाह ही बड़ी अच्छी तरह पालन कर सकें। हम उनको कठिनतासे होता है और कितनीको अपने ऐसी शिक्षा नहीं देना चाहते, जिससे वे कुटुम्बमें ही बहुत दुःख भोगना पड़ता हमारे प्राचीन श्रादर्शसे गिरे और ग्रहस्थी- है, सो श्राप साहबोसे छिपा नहीं है। अब के कामोंसे उनकी रुचि हट जाय । बल्कि ज़रूरत है कि वे अपना वैधव्यजीवन स्त्रियोंके शिक्षालयोंमें धर्मकी पढ़ाईके . धर्मपूर्वक निभा सके-ऐसे उचित प्रायोसाथ साथ सिलाई, व्यञ्जन, कला, जन इनके लिए अवश्य होने चाहिएँ। स्वास्थ्य-रक्षा, बालचिकित्सा, गृहव्यवस्था वरना इस कठिन समयमें ये अपने आदर्श आदि आदिकी शिक्षा भी स्त्रियों को दी से बहुत गिर जायँगी। विधवाओंके लिए जानी चाहिए, ताकि वह सन्मानपात्र स्त्री ऐसे विधवाश्रम हो और उनमें ऐसी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522887
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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