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________________ Reg. No. A. नियमसार। 4 क्षत्रचूड़ामणि, वादीभसिंहकृत / मू० 1) भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यका यह बिलकुल ही अप्रसिद्ध. 5 यशोधरचरित, वादिराजकृत / मू०॥) ग्रन्थ है। लोग इसका नाम भी नहीं जानते थे। बड़ी चरचा-समाधान / पं भूधर मिश्र कृत / भाषा मुश्किलसे प्राप्त करके यह छपाया गया है। नाटक समय- का नय ग्रन्थ / हालही में छपा है / मूल्य 2 / / ) सार आदिके समान ही इसका भी प्रचार होना चाहिए / ___ मैनेजर, जैनग्रन्थ-रत्नाकर कार्यालय, मूल प्राकृत, संस्कृतच्छाया, प्राचार्य पद्मप्रभमलधारि देवकी हाराबाग, बम्बई। संस्कृत टीका और श्रीयुत शीतलप्रसादजी ब्रह्मचारीकृत सरल भाषाटीकासहित यह छपाया गया है। अध्यात्मप्रेमियोंको अवश्य स्वाध्याय करना चाहिए / मूल्य 2) दो रु० / बम्बईका माल / नयचक्र संग्रह। बम्बईका सब तरहका माल-कपड़ा, किराना, स्टेशयह उक्त ग्रन्थमालाका १६वाँ ग्रन्थ है / इसमें देवसेन- नरी, पीतल, ताँबा, दवाइयाँ, तेल, सावुन आदि-- हमसे सरिकृत प्राकृत नयचक्र (संस्कृतच्छायासहित) और आला५ मँगाइए। भाल दस जगह जाँचकर बहुत सावधानी और पद्धति तथा माइल्ल धवलकृत द्रव्यस्वभावप्रकाश (छाया ईमानदारीके साथ भेजा जाता है। चौथाई रुपयेके लगभग सहित) ये तीन ग्रन्थ छपे हैं। भूमिका पड़ने योग्य है. पेशगी भेजना चाहिये / एक बार व्यवहार करको देखिये / तैयार हो गया / मूभ्य (14) नन्हेलाल हेमचन्द जैन, कमोशन एजेण्ट, पार्श्वपुराण भाषा। चन्दाबाड़ी, पो. गिरगाँव, बम्बई / कविवर भूधरदासजीका यह अपूर्व ग्रन्थ दूसरी का छपाया गया है। इसकी कविता बड़ी ही मनोहारिणी है। जरूरत / जैनियों के कथाग्रन्थों में इससे अच्छी और सुन्दर का। हमें 'जैनसिद्धान्तभवन' आराके लिये दो एक अच्छे आपको और कहीं न मिलेगी। विद्यार्थियों के लिये भी वहः / लेखकोंकी जरूरत है जो देवनागरी अक्षरों में सुन्दर, साफउपयोगी है। शास्त्रसभाओं में बाँचनेके योग्य है। बहु और शीघ्रताके साथ नकलका काम कर सकें। वेतन योरवसुन्दरतासे छपा है / मूल्य सिर्फ 1) रु० / तानुसार दिया जायगा; और वेतन न लेकर उजरत पर काम करनेवालोंको उजरत पर रक्खा जायगा। जो भाई - कथामें जैनसिद्धान्त। आना चाहें उन्हें अपनी योग्यता और लिखाईका परिचय एक मनोरंजक कथाकेद्वारा जैनधर्मकी गूढ़ कर्म-फिला ___ देते हुए हमसे शोघ्र पत्र व्यवहार करना चाहिये। साथ ही सफीको सरलतासे समझना हो और एक बढ़िया काव्यका गृह भी लिखना चाहिये कि वे कमसेकम किस वेतन पर आनन्द लेना हो तो आचार्य सिद्धर्षिके बनाये हुए 'उप - है और यदि उजरत पर काम करना चाहें तो मितिभवप्रपचाकथा, नामक संस्कृत ग्रन्थके हिन्दी उनकी लिखाईकी दर क्या होगी। अनुवादको अवश्य पढ़िये। अनुवादक श्रीयुत नथूराम जिन भाइयोको पं० सीतारामजी शास्त्री नामके प्रेमी। मूल्य प्रथम भागका ) और द्वितीय भागका / / लेखकका पता मालूम हो उन्हें कृपाकर हमें उससे सचित जैनसाहित्यमें अपने ढंगका यही एक ग्रन्थ है। करना चाहिये और उनतक भी यह समाचार पहुँचा देना संस्कृत ग्रन्थ / चाहिये। उन्होने पहले भी भवनमें काम किया है। 1 जीवन्धर चम्पू , कवि हरिचंद्रकृत / मू० 1 // निर्मलकुमार, 2 गद्यचिन्तामणि, वादीभसिंहकृत / मू०२) चक्रेश्वरकुमार, 3 जीवन्धरचरित, गुणभद्राचार्यकृत / मू०१) आरा। Printed & Published by G. K. Gurjar at Sri Lakshini Narayan Press, Jatanbar, Benares City, for the Proprietor Nathuram Premi of Bombay. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522885
Book TitleJain Hiteshi 1920 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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