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________________ ye [भाग १५ र सामाजिक, व्यापारिक और विविध कला .. कौशलकी विद्यासे हरेक जातीय भाईको भाषणका कुछ सारभाग। तैयार करे, समाजका बच्चा बच्चा भी पढ़ा दिगम्बर जैन खंडेलवाल महासभाके लिखा हो और अविद्यारूपी अन्धकारको जिस प्रथमाधिवेशनका शोरअर्सेसे समा- अपने निर्मल ज्ञानके प्रकाशसे विध्वंस कर चारपत्रों में सुनाई पड़ता था, वह कल- दे। उपाय ऐसे किये जावें कि जातिका कोई कत्तमें ता० २७,२८,२०, ३० नवम्बर और बच्चा भूखा न सोने पावे, क्योंकि भूखकी रली दिसम्बरको हो गया। अधिवेशनमें ज्वालासे लोगोंको अनेक अनर्थ करने में प्रतिनिधियोंकी संख्या बहुत कम थी। प्रवृत्त होना पड़ता है। बोलशेविस्म आदि जब पं० धन्नालालजीने यह देखा कि प्रति- भी इसीका परिणाम है। . ............ निधियोंकी संख्या बहुत कम है अर्थात् ऐसा करके भाइयो! यह लोक परलोक ऐसे लोग बहुत थोड़े हैं जो अपने अपने सुधारना होगा, ज़मानेकी रफ्तारका अवश्य नगर ग्रामोंकी पंचायतों तथा सभा विचार करना होगा और कोई भी बातसोसायटियोंकी तरफसे बाजाब्ता कायम का निश्चय द्रव्य, क्षेत्र, काल भावका मुकाम ( Representatives) बनकर विचार कर करना होगा। अगर सफलता और उनकी ओरसे सम्मति प्रकाशित के लिये ऐसा न किया, अगर यह लोक करने आदिका अधिकार लेकर आये हो भी नहीं सुधारा और मनुष्यताके तौर पर तब उन्होंने उपस्थित खंडेलवालोको.सभा- न जिये तो परलोक सुधारना सपनेकी का संभासद प्रकट कर दिया और इस बात होगी।" तरह पर उक्त महासभाको अपना अधि- जातिकी दशाको सुधारनेकी प्रेरणा घेशन सार्थक करनेका अवसर प्राप्त करते हुए आपने कहा--'ऐसी कोई चीज़ दुमा । अधिवेशनके सभापति थे श्रीमान् दुनियाकी नहीं, जो मिल न सके। मगर सेठ लालचन्दजी सेठी, जो कि झालरा- ज़रूरत है परिश्रम, दृढ़ संकल्प, संगठन पाटनके सुप्रसिद्ध सेठ विनोदीराम बाल- और नियमसे काम करने की ।......... चन्दजीकी फर्मके मालिक हैं। आपने ......जब आप कहते हैं कि कलिकालका जलसेमें, सभापतिकी हैसियतसे जो प्रभाव है, तो इसके यह भी माने हो सकते भाषण दिया उसकी एक छपी हुई कापी हैं कि उस वक्त धर्ममें जो शक्ति थी वह हमें कल संध्या समय प्राप्त हुई । देखनेसे अब नहीं रही । मगर याद रखिये कि हम मालूम हुआ, भाषण अच्छा है और उसमें अपनी कायरताको ज़बरदस्ती धर्म पर बहुत कुछ समयोपयोगी तथा कामकी डालना चाहते हैं। हम दृढ़ संकल्पके साथ बातें कही गई हैं। इस भाषणका कुछ पुरुषार्थ करके देखें, तो मालूम हो जायगा सारभाग, अपने पाठकोंके अवलोकनार्थ कि कलिकालका प्रभाव हमें उन्नति करने और सेठ साहबके विचारोंके परिचयार्थ से नहीं रोक सकता। क्योंकि कहा है'नीचे प्रकट किया जाता है : 'सदयं हृदयं यस्य भाषितं सत्य भूषितम् । - सभाओंके मुख्य कर्त्तव्यका उल्लेख काये सत्वहितो पाये काल:कुर्वीततस्य किम् ॥ करते हुए सेठजीने कहा-"कोई भी सभा - • जिसका हृदय दयासे पूर्ण, वचन सत्यसे भूषित हो, उसका फर्ज होगा कि देशकी उन्नति- और शरीर जीवोंके हितसाधनमें लगा हुआ है उसका में सहायक होती हुई वह नैतिक, धार्मिक, कलिकाल क्या कर सकता है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522885
Book TitleJain Hiteshi 1920 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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