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________________ अङ्क १-२ ] चरणयुगः” इन अजितसेनके विशेषणोंसे भी इस बातका समर्थन होता है कि ये अजितसेन प्रायः वही थे जिनके श्रीचरणोंमें चामुंडराय और राचमल्ल जैसे महाराजाओंके मुकुट नम्रीभूत होते थे । श्री नेमिचन्द्राचार्यने, अपने गोम्मटसारमें, इनकी प्रशंसा करते हुए, इन्हें श्रार्यसेन गणिके गुणसमूहका धारक और भुवन गुरु प्रगट किया है* । और बाहुबलि चरित्रके कर्ताने इन्हें नन्दिसंघ के अन्तर्गत देशी गणका आचार्य तथा श्रीसिंहनन्दी मुनिके चरणकमलका भ्रमर बतलाया है । इससे मालूम होता है कि श्री अजित सेन नन्दिसंघ के अन्तर्गत देशीग के आचार्य थे और उनके गुरु सिंहनन्दी तथा आर्यसेन नामके मुनिराज थे। उन्हींकी वंशपरम्परा में हमारे मलिषेण आचार्य हुए हैं। ये मलिषेण श्राचार्य बड़े भारी मन्त्रवादी थे । महापुराणकी प्रशस्ति में इन्होंने स्वयं अपनेको 'गारुड मंत्रवादवेदी' लिखा है। भैरवपद्मावतीकल्प और ज्वालिनकल्प नामके आपके दोनों ग्रन्थ मन्त्रशास्त्र से सम्बन्ध रखते हैं और मन्त्रयन्त्रविषयक प्रन्थ हैं । 'बालगृहचिकित्सा' भी मन्त्रशास्त्रहीका अंग है । उसके मङ्गलाचरण में ही अपने ग्रन्थका विशेषण 'मन्त्रशास्त्रसमुद्धृता' दिया है । इनके सिवाय और भी कुछ ग्रन्थ मन्त्रशास्त्रविषयके आपके बनाये हुए सुने जाते हैं; जैसे कि 'विद्यानुवाद' नामका संस्कृत मलिषेपका विशेष परिचय | * श्रज्जज्जसे गणि गुण समूहसंधारि श्रजियसे गुरू । भुणगुरू जस्स गुरू सो राम्रो गोम्मटी जयऊ ॥ गोम्मटसार | + पश्चात्सोऽजित सेनपंडितमुनिं देशीगणाग्रेसरम्, स्वस्याधिप्य सुखाब्धिवर्ध नशशि श्रीनन्दिसंधाधिपम् श्रीमद्भासुरसिंहनन्दिमुनि पांघ्र याम्भोजरोलम्बकम् चानम्य प्रवदत्सु पौदनपुरी श्रीदोबलेर्वृत्तकम् ॥ — बाहुबलिचरित्र | Jain Education International ३ ग्रन्थ जिसकी श्लोक संख्या पाँच हज़ार बतलाई जाती है और 'कामचंडालिनीकल्प' नामका संस्कृत ग्रन्थ जो सिर्फ २५० लोक परिमाण कहा जाता है। ये दोनों ग्रन्थ श्रवणबेलगोलके श्रीयुत पं० दौर्बलिजिनदास शास्त्रीजीके भंडारकी सूची में मल्लिषेणके नामसे दर्ज हैं। इनकी प्रशस्तियों आदिके लिये हमने शास्त्रीजीको लिखा है। उनके आनेपर पाठकोंको विशेष हालसे सूचित किया जायेगा । एक ग्रन्थ 'विधानुशासन' नामसे अनन्तय्या इन्द्रजी. मूडबिद्रीके भंडारकी सूचीमें मल्लिषेणका बनाया हुआ लिखा है और उसकी श्लोक संख्या भी पाँच दी है परन्तु हमारे ख़याल से, वह 'विद्यानुवाद'का ही नामान्तर जान पड़ता है । जैनसिद्धान्तभवन आाराकी सूचीमें भी नं० ७१२ पर, 'विविधयन्त्रमन्त्र' नामसे एक संस्कृत ग्रन्थ मल्लिषेणका बनाया हुआ दिया है और उसकी श्लोक संख्या २२०० लिखी है। मालूम नहीं इसका सही नाम क्या है, अभी तक इस ग्रन्थकी जाँच नहीं हुई । सम्भव है कि यह ग्रन्थ अधूरा हो अथवा मल्लिषेणके मन्त्रशास्त्रविषयक प्रन्थोंपर से संग्रह किया हुआ हो । हज़ार मल्लिषेणके संस्कृत ग्रन्थों में प्रेमीजीको जिन तीन ग्रन्थोंका पता लगा था उनमें एक ग्रन्थ 'सज्जनचित्तवल्लभ' है । प्रेमीजी इसे इन्हीं मल्लिषेणका बनाया हुआ लिखते हैं; परन्तु हमें अभी इस विषय में कुछ सन्देह है । हमारे देखने में अभी तक इस ग्रन्थकी कोई भी ऐसी प्रति नहीं आई जिसमें ग्रन्थकर्ताको 'उभयभाषाकवि'चक्रवर्ती' अथवा 'उभयभाषाकविशेखरः लिखा हो; और न इस प्रन्थकी कोई प्रशस्ति ही पाई गई। मालूम नहीं प्रेमीजीने किस आधार पर ऐसा लिखा है। हमें तो, ऐसी हालत में, ग्रन्थकी रचनाशैली, For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org.
SR No.522885
Book TitleJain Hiteshi 1920 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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