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________________ जैनहितैषी। [भाग १५ लियतें (सुविधाएँ ) प्रदान करें । भवनके लिये प्रेरित करेगा। हम समझते हैं जब मन्त्री कई सालसे श्रीयुत बाबू सुपावं. आप भवनकी बागडोर स्वयं अपने हाथों दासजी गुप्त बी० ए० हैं । आप एक में लेकर नियमपूर्वक काम चलाएँगे तब सुयोग्य और नवयुवक व्यक्ति हैं; चाहे कुमार देवेन्द्रप्रसादजी जैसे सजन, परो. तो भवनका इस प्रकार बहुत कुछ काम पकारी और सुयोग्य व्यक्ति भी बहुत कुछ कर सकते हैं और उसे अच्छी सहायता, कर सकेंगे, क्योंकि उन्हें ऐसे कामोसे पहुँचा सकते हैं। परन्तु आज कल आप ख़ास दिलचस्पी है और उनका शुरूसे डिपुटी कलकृरीके पद पर प्रतिष्ठित हैं। बहुत कुछ परिश्रम भवनमें लगा हुआ है। इस पदसम्बन्धी तथा दूसरे कामोंके भवनका काम नियमबद्ध और सुव्यवकारण आपको अनवकाशकी बड़ी शिका. स्थित रूपसे न होनेके कारण ही शायद यत है और शायद यही वजह है कि आप कुमार साहब अाजकल इससे कुछ उपेमन्त्रीकी हैसियतसे एक दिन भी भवनमें क्षित जान पड़ते हैं--उपमन्त्री होते हुए हमें कुछ काम दिखलाने, बतलाने अथवा भी अपनेको भवनका उपमन्त्री नहीं समसमझानेके लिये नहीं आ सके। ऐसी झते, कहते हैं कि हम कई बार इस्तीफ़ा हालतमें उनसे कोई प्राशा नहीं की जा पेश कर चुके हैं। इसमें सन्देह नहीं कि सकती कि वे इस काम में कुछ सहायता भवनका काम सुव्यवस्थित रूपसे नहीं हो दे सकेंगे। तब, भवनके दूसरे शुभचि. रहा है और न उसमें नियमावलीके नियमोंन्तकोंको-ख़ासकर बाबू निर्मलकुमार, की पाबन्दी की जाती है। जबसे भवनके बाबू बच्चूलाल और कुमार देवेन्द्रप्रसाद प्रतिष्ठित सभासदोंमें हमारी नियुक्ति हुई जीको-इस विषयमें खास तौरसे साव- है और जिसे कई साल हो चुके हैं तबसे धान और बद्धपरिकर होनेकी ज़रूरत है। एक बार भी हमें भवनकी किसी मीटिंगकी बाबू निर्मलकुमारजी यद्यपि, बनारस सूचना नहीं दी गई और न किसीमीटिंगकालिजमें पढ़ते हैं और कालिजके कामसे की कार्रवाईसे ही सूचित किया गया। आपको अवकाश कम है तो भी हर इससे भी पाठक समझ सकते हैं कि भवनमें तातीलमें श्राप बराबर श्रारा पाते हैं और कितना व्यवस्थित रूपसे काम हो रहा है। अपनी रियासतके कारोबारको देखते हैं। कई वर्षों का हिसाब भी अभी तक प्रकाउसके साथमें आपको भवनका काम भी शित नहीं हुआ, जिसके प्रकाशित होनेकी कुछ नियमित रूपसे देखना चाहिये और बड़ी जरूरत है । अतः बाबू निर्मलकुमारउसे भी कुछ समय देना चाहिये। यह. जीको इस ओर ध्यान देकर इन सब पौधा आपके पिताहीका लगाया हुअा अव्यवस्थाओंको दूर करानेका शीघ्र यत्न है और उनकी एक बड़ी भारी यादगार करना चाहिये और ऐसा प्रबन्ध करना है, इसलिये इसे हर तरहसे सींचसाँच चाहिये जिससे भवनका सब काम नियकर बढ़ाना, सुरक्षित रखना और इसके मित रूपसे होता रहे और वह संस्थापकसुमधुर फलोको चखनेका जनताको अव- के उद्देश्योंको पूरा करने में समर्थ हो सके। सर देना यह सब आपके पुत्रकर्तव्योंमेंसे साथ ही, भाई देवेन्द्रप्रसादजीको भी अब मुख्य कर्तव्य कर्म है। श्रापकी थोड़ी भी इसके सुधारके लिये ख़ास तौरसे यत्न तवज्जह और भवनमें बैठकर थोडासा भी करना चाहिये। रहे बाबू बच्चूलालजी; काम करना दूसरोंको बहुत कुछ करनेके श्राप एक बुजुर्ग श्रादमी हैं, बाबू देव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522885
Book TitleJain Hiteshi 1920 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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