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________________ १३ अङ्क १-२] जैनसिद्धान्तभवन, पाराका निरीक्षण। और न ऐसी. हालतमें उठा सकती है। बंडलोका एक एक पत्र उलटपुलट कर भवनके लिये एक सुव्यवस्थित और प्रामा- नहीं देखा, बल्कि दस दस बीस बीस णिक सूचीका तय्यार करना सबसे बड़ा पत्रोंको एक साथ उलटा है और या बंडलमुख्य और ज़रूरी कार्य था जिसे वह के अन्तमें जिस ग्रन्थका नाम पाया है ब तक पूरा नहीं कर सका। उसकी वही नाम अनेक ग्रन्थोवाले उस समृचे वर्तमान छपी हुई सूचीकी यदि सम्यक् बंडलको दे दिया है। इसीसे बहुतसे छोटे मालोचना की जाय तो अशुद्धियों त्रुटियों मोटे ग्रन्थ सूची में दर्ज होनेसे रह गये और दोषोंके दिग्दर्शन मात्रसे कई पेज और अनेक ग्रन्थोंकी पत्रसंख्या तथा भर जायँ। परन्तु यहाँ पर हमें उसकी श्लोकसंख्या अपने नियत परिमाणसे बढ़ विशेष आलोचना करना इष्ट नहीं है। गई। साथ ही कुछ बंडल (कागज पर) हाँ, इतना ज़रूर बतलाना होगा कि भवन- ऐसे भी हैं जिनकी सूची तय्यार ही नहीं में ऐसे सैकड़ों हस्तलिखित और मुद्रित की गई। अधिकारीवर्गकी ओरसे यह कहा प्रन्थ मौजूद हैं जो सूचीमें दर्ज नहीं जाता है कि, हम लोग कनड़ी लिपिसे हुए । मुद्रित ग्रन्थोंसे अभिप्राय यहाँ उन बिलकुल अनभिज्ञ हैं इसलिये कनड़ीके अंगरेजी पुस्तकोंसे नहीं है जिनकी सूची विद्वानोंने इन ग्रन्थों परसे जैसी कुछ सूची अलग छपनेके लिये गई हुई है और जो तय्यार करके दी वैसी ही हमने छपवा किसी ऐसे आलसी तथा लापर्वाह प्रेस- दी है; हम उसकी क्या जाँच कर सकते के गले मढ़ी गई है कि छपकर तय्यार थे। यह कहना यद्यपि कुछ अंशोंमें ठीक होने में ही नहीं पाती। इस अँगरेज़ी सूची- हो सकता था, यदि सूचीका शेषांश की बाबत प्रकृत सूचीमें यह सूचना सन्तोषजनक और विश्वसनीय होता। निकाली गई थी कि, 'वह पृथक् छपी है। परन्तु ऐसा नहीं है। और इसलिये जब हम जो महाशय चाहे, मँगा सकते हैं । परन्तु देवनागरी लिपिके ग्रन्थोंका भी बहुत कुछ बेद है कि साल भरसे अधिक समय ऐसा गड़बड़ हाल पाते हैं तो उक्त कहनेबीत जाने पर भी वह अभी तक किसी का हृदय पर कुछ भी वजन तथा असर महाशयको मँगाने पर नहीं मिल सकती। बाकी नहीं रहता और यही ख़याल होता हम समझते हैं, उक्त सूचनाको निकालने- है कि यह सब उपेक्षा और लापरवाहीका के कारण मन्त्री साहबको भी अब उसका नतीजा है। सूचीके तय्यार करने में बहुत ज़रूर खेद होगा। हस्तलिखित ग्रन्थोंमें कम परिश्रम और सावधानीसे काम ज्यादातर ग्रन्थ कनड़ी लिपिके हैं जो लिया गया है और इसमें तो कोई सन्देह सूची में दर्ज होनेसे रह गये हैं और जिनके ही नहीं कि अब तक इस सूचीका काम माम रजिस्टरोंमें भी चढ़े हुए नहीं हैं। सुव्यवस्थित रूपसे नहीं चलाया गया। इस प्रकारकी गलतियोंका खास कारण देवनागरी लिपिके हस्तलिखित जैनयही मालूम होता है कि जिन कनड़ी ग्रन्थों में भी छोटे बड़े पचासों ग्रन्थ ऐसे विद्वानोंने भवनमें काम किया है उनमें से हैं जो सूची में दर्ज नहीं हुए हैं और अजैन अधिकांशने या तो स्वतः और अधिकारी हस्तलिखित ग्रन्थोंकी तो बात ही जुदी वर्गकी प्रेरणासे प्रायः चलता काम किया है। उनकी एक अलग आलमारी भरी हुई है-थोड़े समयमें बहुतसा काम निका- है जिसमें सैकड़ों ग्रन्थ होंगे और जिनका लमा अथवा दिखलाना चाहा है, ग्रन्थोंके सूचीमें कहीं जिकर भी नहीं है। लगभग For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.522885
Book TitleJain Hiteshi 1920 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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