SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२ जैनहितैषी। [भाग १५ स्वर्गीय बाबू देवकुमारजीके चित्र पर से हमें कभी यह ख़याल नहीं होता था पड़ती है, जो कि एक बड़ा ही सुन्दर कि भवन ऐसी तंग जगहमें स्थित होगा। और मनोमोहक चित्र है। इसे देखनेसे परन्तु अब प्रत्यक्ष दर्शन होने पर सब भ्रम स्वर्गीय बाबूसाहबकी स्मृति ही ताज़ा दूर हो गया। भवनमें कई कई शास्त्र एक नहीं होती बल्कि उनकी साक्षात् जीती वेष्टनमें लिपटे हुए रक्खे हैं। यदि उन जागती पुण्यमूर्ति सामने आ जाती है। सबको गत्ते लगाकर अलग अलग वेष्टनों हमें इस विशाल चित्रको देखनेसे बड़ी में बाँधा जाय तो कई आलमारियोकी ही प्रसन्नता और शान्तिकी प्राप्ति हुई। और ज़रूरत पड़े, जिनके लिये भवनमें भवनका स्थान यद्यपि स्वच्छ और स्थान नहीं है। स्थानकी इस कमीको दूर साफ़ है परन्तु उसमें जगहकी बहुत बड़ी करनेके लिये भवनकी एक जुदी बिल्डिंग कमी है। एक लम्बेसे कमरेमें भवनकी बनानेकी तजवीज हो रही है, जिसके बारह आलमारियाँ रखी हुई हैं जो सब लिये एक स्त्रीने जगह दी है जो कि. इस हस्तलिखित तथा मुद्रित ग्रन्थोंसे परिपूर्ण भवनके पास ही है और फंड दस हज़ार हैं। इस लम्बे कमरेके मुख पर एक छोटी रुपयेके करीब जमा है; जैसा कि बाबू सी कोठरीके रूपमें दूसरा कमरा है जहाँ निर्मलकुमारजीकी ज़बानी मालूम हुआ। बाबू देवकुमारजीका उक्त चित्र दीवारके इस भवनका अँगरेज़ी नाम 'दि सेंट्रल जैन संहारे एक टेबिल पर उत्तरमुख विराज- मोरियंटल लायब्रेरी' ( The Central मान है। इसी कमरेमें पावापुर आदि Jain Oriental Library ) है। परन्तु तीर्थों तथा देशी-विदेशी विद्वानों आदिके जहाँ तक हम देखते हैं अभी तक इस कुछ दूसरे चित्र भी हैं जो सब कमरेके भवनको आधुनिक लायब्रेरियों जैसा उपऊपरी भाग तक दीवारों पर लटके हुए हैं। योगी रूप नहीं दिया गया है। अव्वल तो इन चित्रोंमें एक बड़ा चित्र श्रीपादी- यह एक मन्दिरके कोने में स्थित है जहाँ श्वर भगवान् के समवसरणका है, जिसके हर एक शख्स आजादीके साथ जा आ तय्यार कराने में एक हज़ारसे ऊपर रुपया नहीं सकता, दूसरे किसी लायब्रेरियन खर्च होना बतलाया जाता है। चित्रकला- (ग्रन्थालयाध्यक्ष) का स्थायी प्रब न्ध भी की दृष्टिसे यह चित्र निःसन्देह एक बड़े इसमें नहीं है और तीसरे इसकी सूचीकी ही महत्त्वका चित्र है और इसमें बहुत ही ऐसी दशा नहीं है जिसके आधार पर कुछ बारीकीके साथ काम दिखलाया गया कोई ग्रन्थ सहसा अपने स्थानसे निकाल है। परन्तु शास्त्रीय दृष्टिसे इसमें अनेक कर देखा जा सके। छपी हुई सूचीमें बातें कुछ आपत्तिजनक भी पाई जाती हैं; कुछ ग्रन्थोंके सिवाय शेष ग्रन्थोंके जो जैसे कि आदीश्वर भगवान्के केशोको नम्बर दिये हैं वे उन नम्बरोंसे भिन्न हैं कंधों तक फैले हुए दिखलाना और कुछ जो ग्रन्थों पर पड़े हुए हैं और रजिस्टरोंदेवांगनाओको बूढ़ी चित्रित करना, इत्या- में ग्रन्थ अकारादि क्रमसे अथवा विषयदिक । अस्तु; बाहर भीतरके इन दोनों क्रमसे दर्ज नहीं हैं इसलिये एक ग्रन्थकी कमरोकी लम्बाई प्रायः ग्यारह गज और तलाशमें कभी कभी घण्टों लग जाते चौड़ाई तीन सवा तीन गज़के करीब हैं-इसीसे साधारण जनता अब तक इस होगी । भवनके सम्बन्धमें जैसी कुछ बातें भवनसे उस प्रकारका (आधुनिक लायअभी तक कानोंमें पड़ती आई हैं उनपर ब्रेरियो जैसा) कोई लाभ नहीं उठा सकी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522885
Book TitleJain Hiteshi 1920 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy