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________________ जैनहितैषी [भाग १४ जैनियोंकी प्रतिभाने चोल और पांड्य राज्योंकी काव्य उत्तरकालीन तामिल कवियोंके लिये मार्गराजभाषाओंकी उन्नति. करनेमें कितना योग दर्शक और इस बातको बतलानेके लिये ज्वलन्त दिया है। जैनियोंके लिखे हुए असंख्य तामिल आदर्श है कि जीवनकी भिन्न भिन्न दशाओं ग्रंथोंमेंसे अनेकों ग्रंथ भिन्न भिन्न कारणोंसे नष्ट और प्रकृतिके भिन्न भिन्न सौंदर्योंका हृदयहारी हो गये हैं-कितने अग्नि और वर्षा आदि नैस- वर्णन कैसे किया जा सकता है। र्गिक कारणोंसे नष्ट हो गये हैं, कितनोंका काम इस काव्यमें बहुतसी शिक्षाकी बातें भरी हुई चूहों तथा दीमकोंने तमाम किया है और कित- है, जिनमेसें कुछ इस प्रकार हैं:-(१) कोई नोंको जैनमतके शत्रुओंने नाश कर डाला है। काम करनेके पहले राजाको चाहिये कि अपने जो इने गिने ग्रंथ रह गये हैं उनमेंसे आधेसे मंत्रियोंसे कई बार परामर्श करे; (२) जो अधिक ताड़के पत्तोंपर लिखे हुए अंधे तहखानोंमें मनुष्य स्त्रीकी इच्छाके अधीन है उसे अनेक प्रच्छन्न हैं। कष्टोंका सामना करना होगा; (३) मनुष्यको ___ तामिल साहित्यमें जैनियोंके लिखे हुए ग्रंथ हमेशा अपने गुरुकी आज्ञाके अनुसार काम महाकाव्य, नीतिकाव्य, व्याकरण, कोश और करना चाहिये; (४) शत्रुओंको वशमें करनेके फलितज्योतिष इन पाँच भागोंमें विभाजित किये लिये मनुष्यको धैर्यपूर्वक सुअवसरकी प्रतीक्षा जा सकते हैं। करनी चाहिये; (५) मनुष्यको चाहिये कि यदि किसी जीवको दुःखमें देखे तो उसे दुःखसे महाकाव्य । छुड़ाकर उसकी रक्षा करे; (६) प्रत्येक १ जीवक-चिन्तामणि । इस महाकाव्यके व्यक्तिको अपने मातापिताकी आज्ञाका सदा रचयिता थिरुथ्थक देवर ( Tniruththaka पालन करना चाहिये; (७) जिस व्यक्तिका devar) हैं । इसको बने हुए लगभग १०२० साथी बुद्धिमान और दयालु होता है वह जिस वर्ष हुए हैं और यह ९०० ईसवीसे बादका बना कामको चाहे कर सकता है; (८) सुख और हुआ मालम नहीं होता। इसमें भगवान महावी- दुःखमें मनुष्यको अपना चित्त हमेशा समभाव रके समकालीन राजा जीवककी जीवनकथा रूपसे स्थिर रखना चाहिये और यह समझना है, जो कि हेमांगदमें राज्य करते थे । कथा १३ चाहिये कि जीवनकी प्रत्येक घटना उसके डों और ३१४५ पद्योंमें वर्णित है । वर्णन- कर्मोंका नतीजा है; (९) दान उन्हींको देना सौंदर्य और अत्युत्तम लेखनशैलीके कारण तामिल चाहिये जो अच्छे भले आदमी, धर्मात्मा तथा साहित्यमें जीवक-चिन्तामणिको प्रथम स्थान पात्र हों; (१०) जो लोग ठीक रास्तेपर नहीं हैं दिया गया है । तामिल साहित्यके पाँच महा उनके साथ सहानुभूति रखनी चाहिये और काव्योंमें यह सबसे प्रधान काव्य है । इसमें उन्हें मुक्तिके यथार्थ मार्गपर लानेका यत्न करना राजा जीवकके साहसिक जीवनका मनोरंजक चाहिये और (११) जिन्होंने अपने ऊपर वर्णन देनेके साथ साथ लोगोंके रहन-सहन, उनके उपकार किया है अथवा जो अपने सहायक रहे सामाजिक रीति-रिवाजों और व्यापार, धन तथा है उन्हें कभी न भूलना चाहिये। वैभवका भी सजीव वर्णन दिया है । २ सीलप्पथिहरम् (Silppathiharam)। संस्कृतमें प्रसिद्ध वाल्मीकि रामायणके सदृश इसका नम्बर पाँचों महाकाव्योंमें दूसरा है । इसे अनुपम काव्य-सौन्दर्यको लिये हुए, चिन्तामाण भी पहले महाकाव्यकी तरह अतिशय प्राचीन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522883
Book TitleJain Hiteshi 1920 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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