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________________ छदाम २९६ जैनहितैषी [भाग १४ हिन्दीके स्थानकवासी इस ग्रन्थकी भाषा कुछ प्राचीन अवश्य है, परन्तु है प्रसादगुणसंपन्न । इसकी रचना ज्ञातधर्मकजैन लेखक । थाङ्गके प्रथम अध्यायके आधार पर हुई है । इसमें जो'नखशिखवर्णन है वह औपपतिको पाङ्ग के आधार पर लिखा गया है । इस ग्रन्थका (लेखक-बाबू मातालालजा जन, एम. ए.) निर्माण संवत् १९३९ में हुआ था । तत्पश्चात् १-मगन मुनि। मनि महाराजके शिष्य माधव मानने इस ग्रंथके आप श्वेताबर स्थानकवासी संप्रदायके साधु कया। इस कारण हैं । आपका जन्म भरतपुर रियासतके अन्त- इसमें कहीं कहीं गुजराती शब्दोंका भी समावेश हो गया है। यह ग्रंथ अभी प्रकाशित नहीं हआ र्गत डीग नामक नगरमें हुआ था । विक्रम संवत् और इसकी केवल एक हस्तलिखित प्रति उप१९१८ में आपने पूज्य मुनिवर धर्मदासकी " लब्ध है. जो माधव मनिके पास सरक्षित है। संप्रदाय ( गच्छ ) में दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा । लेनेके पश्चात् आप ५-६ वर्ष तक मालवा उन्होंकी कृपासे मुझे इस ग्रंथके देखनेका प्रान्तके इन्दौर इत्यादि स्थानों में देशाटन करते सौभाग्य प्राप्त हुआ है । इस ग्रंथमें जो कथा रहे। पनः आपने कोटा, बँदी, बजरङगढ, लश्कर वर्णन की गई है वह संक्षेपमें इस प्रकार है। इत्यादि अनेक स्थानोंमें भ्रमण किया और जनता- कथाके साथ कविताके नमूने भी दिये जाते हैं:को जैनधर्मका उपदेश दिया । आज कल आप मगधाधिपति राजा श्रेणिककी धारिणी नामक जयपुर राज्यके अंतर्गत मँडावर नगरमें ही अधि- रानी थी। उस रानीके उदरसे मेघकमार नामक कतर रहते हैं और उसीके आसपासके ग्रामोंमें पुत्र उत्पन्न हुआ। गर्भिणी रानीके मनमें जो देशाटन करते हैं । कालू मुनि, शोभाचन्द मुनि, माधव मुनि और हंसरत्न मुनि आपके दोहद उत्पन्न हुआ था उसका वर्णन कविने इस चार शिष्य हैं। प्रकार किया है:.. आपको हिन्दी कवितासे बहत प्रेम रहा है। “ बिना काल वारिदं होवें, धन बरसै अति जोर । आपकी समस्त रचना हिन्दी-पद्यमें है। आपकी तड़ तड़ात तड़के तड़ित गाज रहा चहुँ ओर ॥ रचना विविध छंदोंमें है, परन्तु आपने अधिक- वारिद पंच बरणके न्यारे हैं। तर झूलना छंदका ही प्रयोग किया है । काव्यकी घनघटा उठी उमगी आवें मनो इंदर बान समारे हैं । दृष्टिसे आपकी रचना साधारण है, परन्तु कहीं मारेगा दुस्मन सूखाकूँ, वो सूर रूप अवधारे हैं। कहीं आपकी रचनामें चमत्कार भी पाया जाता इम विविध भाँति अँबरकी सोभा हो मुझ मन अनुसारे हैं। है। आपकी भाषामें कतिपय प्राकृत शब्दोंका विहग विविध क्रीड़ा करें, निज तिय सँग लवलीन । प्रयोग हुआ है । आपने कुल मिला कर चार हों षट रितु फल फूल युत, सब तरु रम्य नवीन । ग्रंथ लिखे हैं। सर्ज अर्जुन. सहकार कलंबू हैं। .१ मेघमुनिचरित । यह एक खण्ड काव्य पुंगीफल श्रीफल नारंगी केला दाडिम अरु जंबू है ॥ है। विविध छन्दोंमें लिखा गया है । बड़ा रोचक चारोली पिस्ता खरजूरी बादाम सेब पुनि निंबू हैं। है। आपकी रचनाओंमें यही ग्रंथ सर्वश्रेष्ठ है। इत्यादि वृक्ष भूमें राजें, मनो विहग-वसन ये तंबू हैं ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522883
Book TitleJain Hiteshi 1920 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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