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________________ अङ्क ९ विविध-प्रसङ्ग । २६९ स्थिर हो जाता है। महफिलोंमें अपनी संतानको विवाहमें भी, जोकि अजमेरके रायबहादुरसेठ साथ बिठाकर वेश्यानृत्य दिखलाना मानों उनको टीकमचंदजी सोनीके पुत्रके साथ हुआ है, बड़ी वेश्याव्यसनकी शिक्षा देना है । इस लिये सज्जनो ! धमधामके साथ फिर वेश्यानृत्य कराया है ! इन कुरीतियोंको दूर कर. जातिको निर्मल बनाइये। और बडे तमाशेकी बात यह हुई कि आपको यहाँ यह कहना ठीक होगा कि कुरीतियों या उन्नतिके अपना यह नृत्य उस वक्त बंद करना पड़ा उपायोंके सबसे ज्यादा प्रचार करनेवाले जातिके जब कि बारात आई; क्योंकि ऐसी हालतमें सेठ मुखिया ही हैं। क्योंकि जातीय मुखियोंकी देखादेखी ही अन्य सामान्य लोगोंकी वैसी ही प्रवृत्ति होती है। यदि टीकमचंदजी शामिल नहीं होते थे, उनके वेशाजातीय मुखिया अपने अपने घरोंसे इन कुरीतियोंको नृत्यके न देखने. तककी प्रतिज्ञा थी और निकाल दें तो जातिसे कुरीतियाँ दूर होनेमें कुछ भी उन्होंने स्वयं अपनी ओरसे इस विवाहमें कतई · देरी नहीं है । अतएव जातिकी उन्नति और वेश्यानृत्य नहीं कसया; जैसा कि 'जैनमित्र' और - अधोदशाका श्रेय या अश्रेय जातीय मुखियों पर ही 'दिगम्बर जैन' के हालके समाचारोंसे प्रकट है *। है। इस लिये जातीय मुखियोंको इन कुरीतियोंके दूर करनेके लिये पूर्ण प्रयत्न करना चाहिये।" इन सब बातोंसे पाठक भले प्रकार समझ . सकते हैं कि सेठ हुकमचंदजी वेश्यानृत्यके परंतु इतने पर भी आपने, उक्त कथनसे अथवा प्रकारान्तरसे वेश्याके कितने बड़े प्रेमी कुछ ही वर्ष बाद, अपने पुत्रके विवाहमें बड़े और भक्त हैं। उनका नैतिक बल, इस विषयमें जोर शोरके साथ वेश्याओंका नृत्य कराया था सेठ टीकमचंदजीके नैतिक बलके सामने, निःसऔर उसकी सामाको यहाँ तक बढ़ाया था कि न्देह, पराजित हुआ है। उन्हें इस बातका जरा नृत्यकी एक स्पेशल महाफल अपने अन्तःपुरमें भी खयाल नहीं आया कि संसारमें मेरा क्या भी लगवाई थी और इस तरह अपने कुटुंब पदस्थ है. जैनसमाज मुझे किस गौरवकी दृष्टिसे परिवार, रिश्ते नाते, गलीमहोल्ला और नगरकी देखता है, देश तथा समाजमें वेश्यानृत्यके स्त्रियोंको भी खास तौरसे रंडीका नाच दिखलाया सम्बंधमें कैसी हवा बह रही है, मैं स्वयं उसके था। इसपर समाजके तथा दूसरे अनेक पत्रोंमें विरुद्ध भरी सभाओंमें क्या कुछ कह चुका है सेठजीपर बहुत कुछ फटकारें पड़ी थीं और और वेश्यानृत्यके करानेवाले आजकल किस यह आशा की गई थी कि आगामीको सेठजी हीन दृष्टिसे देखे जाते हैं। हमें सेठजीकी इस फिर वेश्यानृत्यका नाम नहीं लेंगे, बल्कि 'दिगम्बर नीची प्रवृत्ति और परिणतिपर बहत खेद जैन' का तो यहाँतक कहना है कि तब सेठ- होता है। जान पड़ता है आपके सलाहकार जीने इन्दौर में एक सभामें खास प्रतिज्ञा ली थी भी अच्छे नहीं हैं। उन्हें, अपनी अदुरदृष्टिके कि मैं अबसे वेश्यानृत्य नहीं कराऊँगा । परंतु कारण. . इस बातका जरा भी ध्यान नहीं है • जान पड़ता है सेठजी पर उस फटकार-वर्षाका कि सेठजीका गौरव वास्तवमें किन बातोंसे कुछ भी असर नहीं हुआ। और यदि सचमुच बढता और किन बातोंसे घटता है। अच्छा ही उस वक्त आपन; अपनी उस कृति पर पश्चा- होता यदि सेठजी इस विवाहके अवसर पर नाप करके, उक्त प्रकारकी कोई प्रतिज्ञा ली थी कुछ भी दान न करते परंतु वेश्यानत्य न तो वह वेश्यानृत्यके प्रेमोद्रेकमें विस्मरण अथवा उसके भक्तिरसमें निमग्न हो गई मालूम होती " * देखो ‘जैनमित्र' अंक ३१ और 'दिगम्बर है । इसी लिये हालमें आपने अपनी पुत्रीके जैन ' अंक २।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522882
Book TitleJain Hiteshi 1920 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size5 MB
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