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जैनहितैषी
[भाग १४
अच्छी मालूम होती हैं, परन्तु जरा गहरे पैठनेसे दुर्बल, मूर्ख दुराचारी ब्याहे न जायँगे,-पढ़ी जान पड़ेगा कि ये कितनी भयंकर हैं। ज्यों ही लिखी लड़कियाँ उनके साथ क्यों ब्याह करने वे पूजा-पाठसे आगे बढ़ेगी, त्यों ही उनमें सद- लगी ? इसके बाद जाति-पाँतिका बन्धन भी सद्विवेक बुद्धि जायत होगी; उन्हें अपने व्यक्ति- उन्हें असह्य प्रतीत होगा । अपनी जातिमें त्वका ज्ञान होगा; वे समझने लगेंगी कि संसा- अनुरूप वर न मिलेगा तो वे दूसरी जातियोंमेंसे रमें पुरुष ही सब कुछ नहीं हैं हम भी कोई चीज ढूँढने लगेंगी । यदि कोई दुर्भाग्यसे विधवा हो हैं, हमारा भी आत्मा है, हमारे भी स्वतंत्र गई और उसने समझा कि मैं अपनी इन्द्रियोंसे सुख-दुःख हैं, हमारे आत्माको भी स्वाधीन नहीं जूझ सकूँगी तो दूसरा विवाह करनेके लिए सुखकी प्यास है; केवल पुरुषोंके लिए ही तैयार हो जायगी । इस तरह विधवा-विवाह भी हमारी सृष्टि नहीं हुई है। हम भी अपने आत्मा- जारी हो जायगा ! यदि इतना ही होकर रह की उन्नति करनेकी अधिकारिणी हैं । हमसे जाता तो भी गनीमत थी; स्त्रीशिक्षाका यह हमारी इच्छाके विरुद्ध कोई काम करानेका, विष यहीं तक असर न करेगा, वह धीरे धीरे या किसी कामसे रोकनेका उन्हें कोई अधिकार तलाक ( डाइबोर्स ) की रीतिको भी चलायगा नहीं है। माना कि पातिव्रत, पर्तिसेवा, वैधव्य और अन्तमें बहुतसी स्त्रियोंको यहाँ तक भी आदि व्रत अच्छे हैं, और कल्याणकारी हैं। हमें कहनेके लिए आमादा करेगा कि हम बच्चे अपने कल्याणकी इच्छा होगी तो हम स्वयं उन्हें जननेकी झंझटमें क्यों पड़ें ? कुमारी रहना पाल लेंगी; परन्तु इन्हें जबर्दस्ती पलवानेका क्या बुरा है ? परदा-सिस्टम, घरोंके पिंजरेमें पुरुषोंको-उन नीच पुरुषोंको-क्या अधि. कैद रहना, मोंसे बात न करना, दिन भर कार है जिन्हें व्यभिचार करनेमें, एकाधिक दासियोंके समान काम करना, आदि बातें पत्नियाँ रखनेमें, एकके मरते ही दूसरीको और तो ऐसी हैं कि स्त्रीशिक्षाप्रचारके एक साधारण फिर तीसरी चौथी पाँचवीं आदिको ब्याह झोंकेसे ही उड़ जावेंगी । गरज यह कि ब्रह्मलानेमें कोई संकोच नहीं होता है ? जैसे धूमके चारीजीने जिस स्त्रीशिक्षाके प्रचारका आन्दोलन साथ अग्निकी व्याप्ति है, उसी प्रकार शिक्षाके उठाया है, उसके उक्त परिणाम अवश्यंभावी हैं साथ इस प्रकारके विचारोंके होनेकी व्याप्ति है। और इससे शास्त्रीय बुद्धि कहती है कि ब्रह्मचालड़कियोंको ज्यों ही थोड़ीसी ऊँची शिक्षा रीजी कट्टर सुधारक हैं और उन सुधारकोंसे मिलेगी, वे अपने मातापिताके पसन्द किये हुए भी भयंकर हैं जो स्पष्ट शब्दोंमें अपने सुधारवरको पसन्द करनेसे इंकार करने लगेंगीं। माता- विचारोंका प्रचार करते हैं । ये हजरत छुपे रुस्तम पिता कहेंगे इस बूढ़ेके साथ तुम्हारी शादी हैं, मिल कर मारनेवाले हैं, और पालिसीके धुरन्धर होगी, इसने हमें दस हजार रुपये दिये हैं । वे आचार्य हैं । इनसे सावधान रहनेकी जरूरत कहने लगेंगी-यह बूढ़ा खूसट यदि हमारे सामने
है। पं० खूबचन्दजी शास्त्रीने एक बार सत्यभी देखेगा तो हम इसकी झाइसे पूजा करेंगी ! इसका परिणाम यह होगा कि समाजके स्तंभ वादीमें बिलकुल सत्य लिखा था कि “जैनिस्वरूप बड़े बड़े धनी मानी अपने एकाधिक योंमें आर्यसमाजके आदिब्रह्मा प्रकट हो गये!" पत्नियोंको प्राप्त करनेके परम्परागत अधिकारसे शास्त्री लोगोंको ही ऐसी बातें इतने पहले सूझा वञ्चित होने लगेंगे, अन्धे काने, लूले लँगड़े, रोगी करती हैं !
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