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________________ marnama Annanana अ जैनहितैषी [भाग १४ कि जैनसमाजकी जो कुछ अवस्था है, उसके होलीकी बची-खुची गुलाल । अनुसार उसने उनके लिए, जो कुछ वह कर सकता था, किया है। यह बात दूसरी है कि नये सम्पादकजी, इतनी बडी होली हो ली, उसकी शक्ति बहुत थोडी है, उसकी आवाज पर तुमने एक बार भी अपने इस बड़े बूढ़े . नी बहुत बलन्द नहीं है, राजनीतिक क्षेत्रमें उसकी शा शास्त्रीको याद नहीं किया । तुम्हारे ये ढंग पैठ भी बहत ही कम है। फिर भी उसने जो कछ अच्छे नहीं। और नहीं तो कमसे कम तीजकिया है उसका मूल्य है। वह अपने किये पर त्योहारको तो अपने गुरुजनोंकी पछताछ कर संतुष्ट नहीं है, यदि वह इससे अधिक कर लिया करो । दूसरी शिकायत मुझे तुम्हारी ल सकता, तो अपना सौभाग्य समझता, जो कुछ तबीयतके बारेमें है। इस तरहकी रूक्ष और वह नहीं कर सका है उसके लिए उसे दुःख भी नीरस तबीयत लेकर सम्पादकी की जा है । परन्तु यह निश्चय है कि उसने इस कार्यमें सकती है, यह मुझे आज ही मालूम हुआ । अपनी शक्तिको छपाया नहीं है। आपके लिए बिना भंग छाने और प्रेमकी तीन अलापे. समउसके हृदय में वडा मान है। समाजके बने झमें ही नहीं आता कि तुम्हारी कलम कैसे चला बच्चेकी जीभ पर आपका नाम है। हजारों करती है । यहाँ तो जब तक भंग भगवतीकी युवक आपको हृदयसे चाहते हैं और उनका आराधना नहीं कर लेता, लिखनेकी तो कौन विश्वास है कि आपको पाकर जैनसमाज - कहे, अच्छी तरह बोल भी नहीं सकता हूँ। उन्नतिके मार्गमें फिर तेजीसे कदम बढ़ायगा। का और भैया, यदि तुम्हारे पत्रमें महीने भरमें दो चार भी हँसी मजाककी चुलबुली बातें न रहेंगी - देशको आपसे बड़ी बड़ी आशायें हैं। अब तो उसे पढ़ेगा ही कौन ? लोग ऐसे मूर्ख नहीं आप वह काम कर सकेंगे, जिसके करनेकी हो गये हैं जो गाँठके पैसे खर्च करके तुम्हारी शक्ति इस समय जैनसमाजकी किसी भी व्य- ये पुराने जमानेकी मगज चाट जानेवाली बातें क्तिमें नहीं है। आपने छःवर्षतक कठिन तपस्या पढ़ने के लिए पत्र खरीदें । मेरा तो तुम्हारे पत्रके की है। अब उसकी सिद्धिका समय है। आपका हैडिंग देखकर ही सिर भिन्ना उठता है । यदि नाम इस समय देशव्यापा है। आपके द्वारा सतजुग होता तो इस समय मैं तुम्हें शाप दिये जनसमाज सामाजिक, धार्मिक, और राजनी- विना नहीं छोड़ता । यदि तुम्हें इस बड़े बूढ़ेके तिक आदि सभी क्षेत्रोंमें आशातीत प्रगति कर अनुभवोंसे लाभ उठाना है तो सुनो, इस पागलसकता है। पनको छोड़ दो और कुछ मतलबकी बातें राजकीय घोषणाके अनुसार महात्मा भगवा- लिखनेका अभ्यास करो । कोरे इतिहासके नदीनजी भी छोड़ दिये गये हैं। हम अपने इस पीछे पड़कर अपना और दूसरोंका मस्तक । बन्धुका भी सादर स्वागत करते हैं। खाली करनेकी आदत छोड़ दो। लो, इस समय मैं गहरी छानकर आया हूँ। इस समयकी एक एक बात लाख लाख रुपयेकी होगी। यदि चाहो तो नोट करते जाओ, मौका मिलनेपर प्रकाशित कर देना।
SR No.522877
Book TitleJain Hiteshi 1920 01 02 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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