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श्रीवर्द्धमानाय नमः।
भाग १४।
जैनहितैषी।
अंक ४-५।
माघ, फाल्गुन १९७६। जनवरी, फरवरी १९२० ।
विषय-सूची। eGo
पृष्ठ संख्या। १ वनवासियों और चैत्यवासियोंके सम्प्रदाय २ गन्धहस्ति महाभाष्यकी खोज ...
१०८ ३ऐतिहासिक जैन व्यक्तियाँ .......
१२८ ४ विचित्र ब्याह (कविता)
१२२ ५ दृष्पाप्य और अलभ्य जैनग्रन्थ ... ... ... १२७ ६ धनिक-सम्बोधन (कविता) ... ... ... १३० ७ सिद्धसेन दिवाकर और स्वामी समन्तभद्र ... १३१ ८ जैनधर्म अनीश्वरवादी है
१३५ ९ लिखितका मुद्रितसे मीलान ... ... ... १० विविध प्रसंग (१ प्राचीन पुस्तकोंका मूल्य,
२ ईश्वरके विषयमें बोलशेविकोंकी राय, ३ धर्मप्रचारके सम्बन्धर्म गाँधीजकेि विचार,४ बीस करोड़का दान, ५पारसी जातिकी दानशीलता, ६ एक और बड़ा भारी दान, ७ जैनोंकी दानशीलता, ८ परवारजातिकी दुरवस्था, ९ माणि
चन्द-ग्रन्थमाला, १० सेठीजीका छुटकारा) १४१ ११ होलीकी बची खुची गुलाल ... ...
१४८ १२ त्रुवल्लुव नायनार त्रुकुरल
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१५०
१५-३-१९२० । सम्पादक, बाबू जुगलकिशोर मुख्तार।
मुंबई वैभव प्रेस.