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________________ अङ्क १२] . स्वराज्य-सोपान। म्बरीय ग्रंथोंका पता न होगा, जो इस तरह आचार्योंको भी १० वीं शताब्दिके कल्किका उन्होंने महावीर-निर्वाणकी १० वीं शताब्दिके पता न लगा होगा और इस कारण उन्होंने उक्त भूतपूर्व कल्किको २० वीं शताब्दिवाले भविष्य- दिगम्बरीय कथमको अविश्वस्त समझ कर कालमें ले जानेका प्रयत्न किया? इस विषयमें कल्किके जन्मकी मर्यादाको १००० वर्ष और हमने दो बातें सोची हैं; एक तो यह कि या तो आगे बढ़ा कर उसे भविष्यके लिए रख छोड़ा होगा। दिगम्बरीय कथनका हाल श्वेताम्बरोंको मालूम मैंने एक ग्रन्थ ऐसा भी देखा है जिसमें कल्किके ही नहीं था, और दूसरी यह कि मालूम होने जन्मको वीरनिर्वाण १९१४ से उठाकर विक्रम पर भी उन्होंने ऐसा लिखा हो तो, इसमें यह संवत् १९१४ में फेंक दिया गया है ! और इस कारण हो सकता है कि वह १० वीं शताब्दि- समय यदि यह क्यों' और 'क्या' का युग न वाला काल उन आचार्योके उतने ही निकट उपस्थित हो जाता, तो उसकी मर्यादा और भी था जितना कि हमें २० वीं शताब्दिवाला है। हजार पाँचसौ वर्ष बढ़ा दी जाती; परंतु अब जिस तरह हमें २० वीं शताब्दिके कल्किका . तो लोग या तो कल्किका पता ही लगा लेना कोई पता नहीं लगता और इस कारण उक्त चाहते हैं, या उसके अस्तित्वको आकाशकुसुम कथन पर विश्वास नहीं आता, उसी तरह उन ही बना देना चाहते हैं। खराज्य-सोपान । (लेखक, पं० रामचरित उपाध्याय ।) .... क्या स्वराज्य है खेल तमाशा ? उसको समझो देढ़ी खीर, पर तो भी वह मिल जावेगा, मनमें होना नहीं अधीर । उसका पूरा मूल्य आपने, क्योंकि अभी तक दिया नहीं, या कि आपने समुचित उसका, यत्न अभी तक किया नहीं॥१॥ करके पूर्ण विचार-पर्वको, अब उद्योग-पर्व पढ़िए, • कच्छप-गतिको छोड़ सिंहकी गतिसे झट आगे बढ़िए । क्षुद्र विन्न-पशु तुरत मार्गसे देख तुम्हें हट जावेंगे, सुखके साधन सभी तुम्हारे, सम्मुख दौड़े आवेंगे ॥२॥ जो भारतको योग्य न कहते, वे करते हैं भारी भूल, . ---- या उनकी मंति पर बैठी है, गाढ़ स्वार्थकी गन्दी धूल। राज-काजका सूत्र कभी क्या, हाथ हमारे रहा नहीं? ... .... क्या आर्योका रक्त, पसीना देश-विदेशों बहा नहीं ? ॥ ३॥ मोह-विवश जो मतिके अन्धे, करते हैं भारत-उपहास.. ... .. . मनो उन्होंने नहीं पढ़ा है, कभी हमारा कुछ इतिहास ।
SR No.522838
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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