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________________ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के ग्रन्थोंमें कल्किका वर्णन । अङ्क १२ ] संकटको देखकर शन्द्रका स्मरण करेंगे। तब शक्रका सिंहासन कंपित होगा, और इससे वह श्रमण संघका संकट जानकर एक वृद्ध ब्राह्मणके वेषमें कल्किके पास पहुँचेगा, और उसे श्रमणों को छोड़ देने के लिए तथा उनसे भिक्षाका षष्ठांश न माँगनेके लिए बहुत समझायगा । परन्तु अंतमें जब वह कुछ भी न सुनेगा, उलटा उसका ही तिरस्कार करनेके लिए उद्यत हो जायगा, तब शत्र उसे सिंहासन परसे नीचे पटक देगा और लातों तथा मुक्कोंसे मार मार कर मार डालेगा । इस प्रकार ८६ वर्षकी आयु पूरी करके वह नरकको प्रयाण करेगा । इसके बाद इन्द्र उसके दत्त नामक पुत्रको राजा बनाकर और जैनधर्मकी शिक्षा देकर स्वर्गलोकको चला जायगा । यह दत्त राजा नीतिपूर्वक राज्य करेगा, जैनधर्मकी प्रभावना करेगा और पृथ्वीको जैनमन्दिरोंसे मण्डित कर देगा। इसके बाद पाँचवें कालके अंततक धर्मकी निरंतर प्रवृत्ति रहेगी । हेमचन्दाचार्यकृत महावीरचरित्र में भी अक्षरशः इसी तरहका वर्णन है । इसमें भी कल्किका जन्मकाल महावीर - निर्वाणासे १९१४ वर्षबाद बतलाया है । विशेषमें उसके जन्मका महीना भी लिखा है, जो चैत्र है । इसके सिवाय उसके कल्कि, रुद्र और चतुर्मुख ये तीन नाम भी बतलाये हैं: मन्निर्वाणाद्द्वतेष्वब्दशतेऽत्रे कोनविंशतौ । चतुर्दशायां च म्लेच्छकुले चैत्राष्टमी दिने || विष्टौ भावी नृपः कल्की स रुद्रोऽथ चतुर्मुखः । नामत्रयेण विख्यातः पाटलीपुत्रपत्तने ॥ जिनप्रभसूरिने अपने ‘विविध तीर्थकरूप' के * अपापी कल्प' नामक प्रकरण में भी कल्किका १ महावीरचरित्र वि० संवत् १२२० में बना है । २ इसका रचना समय विक्रम संवत् १३८७ है । यह दक्षिणके देवगिरि ( दौलताबाद ) नगरमें बनाया गया था। ५३७ वर्णन लिखा है । इसमें ऊपरके दोनों चरित्रोंसे कहीं कहीं कुछ विशेषता है, पर जन्मकालमें कोई फर्क नहीं है। लिखा है, कि— "एगूणवीसासु ससुं चउद्दसाहिएसु वरिसेसु वकतेसु चउदससय बायाले विक्कमकाले पाडलिपुत्ते नयरे चित्तसुद्धहमीए अद्धरते विकिरणे मयर लग्गे वहमाणेसु मगह सेणाभिहाणस्स गि जसदेवीए उयरे चंडालकुले कक्विरायस्स जम्मो भविस्सइ । एगे एव मासु वीराओ इगुणवीसं सएहिं वरिसाण अट्टावीसाए । पंचमासेहिं होही चंडाल कुलंमि काक निवो ॥ "" इस अवतरण में महावीरनिर्वाणके १९१४ वर्ष के साथ विक्रमकाल १४४२ का भी स्पष्ट उल्लेख किया गया गया है, तथा कल्किके मातापिताका नाम भी क्रमसे जसदेवी और मगहसेण लिखा है, जो पूर्वोक्त चरित्रोंमें नहीं है । इस कल्प में यह भी लिखा है कि कल्कि अपने राज्यके ३६ वें वर्ष में भरतक्षेत्रके तीन खण्डों का स्वामी बनेगा । (इनका 'स्वामी, जैनग्रन्थोंके अनुसार, वासुदेव और प्रतिवासुदेव के सिवाय, और कोई नहीं हो सकता । ) कल्किके खजाने के धनका और सैन्यका परिमाण भी इसमें विशेष दिया हुआ है । यथा 66 'तस्स य भंडारे नवनवइ सुत्रण कोडाकोडीओ, चउदस सहस्सा गयाणं, सत्तासी लक्खा अस्साणं, पंचकोडीओ पाइक्काणं हिंदु-तुरुक्क - काफराणं । " * अर्थात् - कल्किके पास ९९ कोटाकोटी मुहरें, १४ हजार हाथी, २७ लाख घोड़े तथा हिंदू, तुरुष्क और काफिरों (?) की- ५ करोड़ पैदल सेना थी ! * प्रचलित मतसे महावीरनिर्वाण संवत् १९१४ में विक्रम संवत् १४४४ होते हैं, पर यहाँ पर १४४२ लिखे हैं | मालूम नहीं यह २ वर्षका अंतर क्यों है । - लेखक । पड़ता
SR No.522838
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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