SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अङ्क १२] लोकविभाग और त्रिलोकप्रज्ञप्ति । ५३३ वीरजिणं सिद्धिगदे चउसद इगिसहि वास परिमाणो। णिवाणगदे बारे चउसद इगिंसहि वासविच्छेद । कालंमि अदिक्कंते उप्पणो एत्थ सगराओ ॥८६॥ जादो च सगणरिंदो रज्जं वस्सस्स दुसय वादाला ९३ अहवा वीरोसिद्धे सहस्सणवकमि सगसयन्भहिये। पणसीदिमि यतीदे पणमासे सगणिओ जादा ॥८॥ दोणिसदा पणवण्णा गुत्ताणं चउमुहस्स वादालं । (पाठान्तरं वस्स होदि सहस्सं केई एवं परूवंति ॥ १४ ॥ चोइस सहस्स सग सय ते णउदी वासकालविच्छेदे । अर्थ-वीरनिर्वाणके ४६१ वर्ष बीतने पर वीरेसरसिद्धीदो उप्पण्णो समणिओ अहवा ॥ ८८ ॥ शक राजा हआ और इस वंशके राजानि (पाठान्तरं) ... २४२ वर्ष राज्य किया। उनके बाद गुप्तवंशके णिव्वाणे वीरजिणे छव्वास सदेसुपंचवरिसेसु। ... राजाओंका राज्य २५५ वर्षतक रहा और फिर , 'पणमासेसु गदेसुं संजादो सगणिओ अहवा ॥ ८९ ॥ चतुर्मुख ( काल्कि ) ने ४२ वर्ष राज्य किया। अर्थ-वीर भगवानके मोक्षके बाद जब कोई कोई लोग इस तरह (४६१+२४२+२५५ ४६१ वर्ष बीत गये, तब यहाँ पर शक नामका +४२=१०००) एक हजार वर्षे बतलाते हैं। राजा उत्पन्न हुआ। अथवा भगवानके मुक्त जं काले वीर जिणो णिस्सेयससंपर्य समावण्णो। होनेके बाद ९७८५ वर्ष ५ महीने बीतने पर शक राजा हुआ । (यह पाठान्तर है।) तक्काले अभिसित्तो पालयणामो अवंतिसुदो ॥९५॥ अथवा वीरेश्वरके सिद्ध होनेके १४७९३ वर्ष पालकरजं सहि इगिसय पणवण्ण विज पवंसभवा । बाद शक राजा हुआ।(यह पाठान्तर है।) अथवा चाले मुरुदयवसा तीसं वंसा सु पुस्समित्तंमि ॥५६॥ वीर भगवानके निर्वाणके ६०५ वर्ष और ५ वसुमित्त अग्निमित्ता सही गंधब्बया विसयमेक्कं । महीने बाद शक राजा हुआ ॥ ८६-८९ ॥ णरवाहणो य चालं ततो भच्छद्रणा जादा ॥ ९७ ॥ __ *इन गाथाओंसे मालम होगा कि इस समयसे भच्छ?णाण कालो दोणि सयाई हवंति वादाला । लगभग १२०० वर्ष पहले भी महावीर भगवानके तत्तो गुत्ता ताणं रजे दोणियसयाभि इगितीसा ॥९८ निर्वाणकालके विषयमें सन्देह था। एक मत था कि तत्तो कक्की जादो इंदसुदो तस्स चउमुहो णामो। उनका निर्वाण शकसे ४६१ वर्ष पहले हुआ है और दूसरा सत्तरि वरिसा आऊ विगुणिय-इगिवीस रज्जत्तों ॥ ९९ था कि नहीं ६०५ वर्ष पहले हुआ है । (त्रैलोक्यसार अर्थ-जिस समय वीर भगवानका मोक्ष और हरिवशपुराण आदिमें यह दूसरा मत ही माना गया है।) इनके सिवाय तीसरे और चौथे मत भी हुआ, ठीक उसी समय अवन्ति (चण्डप्रद्योत )थे जो बहुत ही विलक्षण थे। उनके विषयमें तो का पुत्र पालक नामक राजा अभिषिक्त हुआ कुछ कल्पना ही नहीं की जा सकती। उनके अनुसार उसने या उसके वंशने ६०वर्ष तक राज्य किया, शकसे हजार पाँचसौ नहीं, किन्त नौ हजार और चौदह उसके बाद १५५ वर्षतक विजयवंशके राजाओंने, हजार वर्ष पहले भगवानका निर्वाण हुआ था! और बड़े आश्चर्य की बात तो यह है कि यह बात उस समय एक यह बात हिन्दुओंके पुराणोंसे और जैनग्रन्थोंसे सिद्ध बड़े भारी ग्रन्थमें भी उल्लेख करने योग्य समझी जाती होती है। आश्चर्य नहीं जो उसीकी कृपासे जनथी। जो लोग उपलब्ध जैनग्रन्थोंको भगवानकी साक्षात् साहित्य नष्ट किया गया हो और जैनधर्मके मुख्य दिव्यध्वनिकी निधान्त 'कापी' समझते हैं और उनमें प्रदेशोंमेंसे जैनधर्म निर्वासित कर दिया गया हो। जरासा भी सन्देह करनेको स्थान नहीं पाते हैं, इसीसे तो जैनधर्मका छठी शताब्दिसे पहलेका साहित्य उन्हें इस मतभेद पर खास तौरसे ध्यान देना चाहिए। बहुत ही कम नाम मात्रको मिलता है। विद्वानोंको इस कल्कि राजा जैनधर्मका बहुत बड़ा शत्रु था। विषयमें कुछ अधिक प्रकाश डालना चाहिए।
SR No.522838
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy