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________________ अङ्क ११] अलंकारोंसे उत्पन्न हुए देवी-देवता। इन उदाहरणोंसे पाठकोंने जान लिया होगा इस प्रकार लक्ष्मी अर्थात् शोभाका वास कमलमें कि एक ही अलंकार अधिक काममें आनेसे किस माननेसे और लक्ष्मीको स्त्रीका रूपक देकर प्रकार आहिस्ता आहिस्ता देवी देवताका स्वरूप आलंकारिक वर्णनोंमें उसका अति व्यवहार कर. धारण करने लगता है। नेसे उसको सुन्दरताकी एक विशेष देवी मान ___ आदिपुराण जैसे संस्कृत काव्यग्रन्थोंको लिया है और फिर धीरे धीरे कमलोंको लक्ष्मी पढनेसे मालम होता है कि संस्कृतके कवि संसार देवीका ही निवासस्थान मान लिया है । अब भरकी सब वस्तुओंमें कमलको ही सबसे अधिक जरा आगे चालिए। सुन्दर और शोभायमान मानते हैं। इसी कारण अनेक रत्नोंकी किरणों से अत्यन्त मनोहर वे स्त्री-पुरुषोंके आँख, मख, हाथ, पैर और राजा सुबिधका विशाल वक्षःस्थल ऐसा स्तन आदि अंगोंको प्रायः कमलोंकी ही उपमा मालूम होता था, माना कमलनिवासिनी दिया करते हैं । इसीसे हिन्दीके एक प्रसिद्ध लक्ष्मीका अनेक जलते हुए दीपकोंसे शोभायमान लेखकने एक बार लिखा था कि संस्कृत कवि. निवासस्थान ही हो ।-'ज्वलद्दीपमिवांभोजेवाः योंने तो सुन्दर मनुष्यको मानो कमलोंका ही सिन्या वासगेहकं । ' (१०-१३१ )। मरुदे.. एक ढेर बना दिया है। वीने चौथे स्वममें अपनी ही शोभाके समान लक्ष्मी __ जब कमल इतने, सुन्दर माने गये हैं, तब देखी । लक्ष्मी कमलमय ऊँचे सिंहासन पर बैठी सुन्दरताकी आलंकारिक देवी लक्ष्मीका निवास हुई थी और दो देव-हाथी अपनी सँडमें दबाये हुए कमलोंको छोडकर भला और कहाँ हो सकता स्वर्ण घड़ोंसे उसका अभिषेक कर रहे थे।था ? पर्व २२ में ध्वजाओंकी शोभा वर्णन 'पद्मां पद्ममयोत्तुंगविष्टरे सुरबारणैः । स्नाप्या हिरकरते हुए लिखा है कि उन ध्वजाओंमें जो ण्मयैः कुंभैरदर्शत्स्वमिव श्रियं । (१२-१०७)। कमल बने हुए थे उनकी शोभा अद्वितीय इस प्रकार अलंकारोंसे ही सचमुचकी एक थी। इसी कारण लक्ष्मी सारे कमलोंको छोडकर देवी बनकर उसका निवासस्थान भी हिमवान् उनमें ही जा बसी थी।-'कंजान्युत्सृज्य कार्ये पर्वत पर कायम कर दिया है । पर्व ३२ के १२१ वें श्लोकमें लिखा है कि इस पर्वतके न लक्ष्मीस्तेषु पदं दधे । ' ( पर्व २२-२२७ )। . इस तरह कमलोंमें ही लक्ष्मी अर्थात् शोभाको वीका निवास है। यह सरोवर स्वच्छ जल और ___ मस्तक पर पद्मनामका सरोवर है जिसमें श्रीदेमानते मानते और सुन्दर स्त्री-पुरुषोंके चरणोंको कमलोंसे सुशोभित है :कमलोंकी उपमा देते देते उनके चरणोंमें ही 'मूर्ध्निपद्मह्रदोऽस्यास्ति धृतश्रीबहुवर्णनः । लक्ष्मीका निवास बतलाया जाने लगा । यथा- प्रसन्नवारिरुत्फुल्लहैमपंकजमण्डनः ॥ मरुदेवीके चरण कमलके समान थे और उनमें फिर इसी प्रकार छः कुलाचलॉमेंसे एक साक्षात् लक्ष्मी निवास करती थी । उन चर- एक पर क्रमसे छहों देवियोंका निवास स्थापन णोंकी अंगलियाँ कमलकी पंखरियों और नखोंकी कर दिया है और उन्हें जिनमाताकी सेवा करकान्ति कमलकी केसरके समान थी । मदं- नेवाली बतलाया है:गुलिदले तस्याः पादाब्जे श्रियमूहतुः । नखदीधि- कुलादिनिलया देव्यः श्रीह्रोधीधृतिकर्तियः । तसन्तानलसत्केसरशोभिनी । (१२-१९)। समं लक्ष्म्या षडेताश्च संमता जिनमातृकाः ३८-१२६ पर्व ४ के श्लोक १८७,१५ के २०६ और १६ इस प्रकार इन देवियोंके निवासस्थान कुलके श्लो० २२ में भी इसी तरह चरणोंको पर्वत स्थिर हो गये और फिर ये निवासस्थान भी कमल और लक्ष्मीका निवास वर्णन किया है। अलंकाररूपसे उपयोगमें लाये जाने लगे। देखिए: Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522837
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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