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________________ wwwrainrmwarananaara ४९२६ जैनहितषी [भाग १४ . णिञ्चिदरधादुसत्त य उपर्युक्त, 'उक्तंच ' गाथायें 'गोम्मटसार ' ग्रंथसे 'तरुदस वियलिदिएसु छच्चेव । उद्धृत नहीं की गई, यह कहनेमें कोई संकोच सुरणिरय तिरिय चउरो नहीं हो सकता। राजवार्तिकके प्रकरणों तथा चोद्दस मणुए सदसहस्सा ॥२॥ कथनशैलीको देखते हुए, ये गाथायें 'क्षेपक' णिद्धस्स णिद्धेण दुराहिएण भी मालूम नहीं होती । एक स्थान पर, ९ वें लुक्खस्स लुक्खेण दुराहिएण। अध्यायमें चौथे नम्बरकी गाथाको उद्धृत करके गिद्धस्स लुक्खेण उवेदि बंधो जहण्णवजे विसमे समे वा ॥ ३ ॥ और उसके नीचे ' इत्यागमप्रामाण्यादेकस्मिएगनिगोदसरीरे, निगोदशरीरे जीवाः सिद्धानामनंतगुणाः' इत्यादि जीवा दवप्पमाणदो दिवा। वाक्य देकर भट्टाकलंकदेव उसे स्पष्ट रूपसे सिद्धेहिं अणंतगुणा किसी आगम ग्रंथका वचन भी सूचित करते सव्वेण वितीदकालेण ॥ ४ ॥ हैं। तब यह जरूर कहना होगा कि उक्त गाथायें सम्वद्विदीण मुक्कस्सगो दु किसी दूसरे ही ग्रंथ अथवा ग्रंथोंपरसे उद्धृत की उक्कस्स संकिलेसेण । गई हैं जिसका अथवा जिनका निर्माण भट्टाकलंक विवरीदेण जहण्णो देवके पहले हो चुका था । और बहुत संभव है कि आयुगतिगवजसेसाणं ॥ ५ ॥ नेमिचंद्र सिद्धान्तचक्रवर्तीने भी वहींसे उनका सुहपयडीण विसोही संग्रह किया हो । क्योंकि 'गोम्मटसार' एक तिव्यो असुहाण संकिलेसेण । संग्रहग्रंथ है और उसका असली नाम भी विवरीदेण जहण्णो 'गोम्मट-संगह-सुत्त' है। आश्चर्य नहीं, जो __ अणुभावो सब्व पयडीणं ॥ ६ ॥ इस ग्रंथकी अधिकांश गाथायें दूसरे प्राचीन इनमेंसे पहली चार गाथायें वे हैं, जो श्री- ग्रंथोंपरसे ही अविकल रूपसे संग्रह की गई नेमिचंद्राचार्यविरचित 'गोम्मटसार' ग्रंथके जीवकांडमें क्रमशः नं. ३३३,८९, ६१४ और 'चामंडराय' के प्रश्न पर रचा गया है। उक्त राचमल्ल१९५ पर दर्ज हैं । शेष दोनों गाथायें उक्त ग्रंथके का समय विक्रमकी ११ वीं शताब्दीका पूर्वाध है। कर्मकांडमें क्रमशः नं० १३४ और १६३ पर चामुंडरायने 'चामुंडराय-पुराण ' नामका एक ग्रंथ पाई जाती हैं । भट्टाकलंकदेव विक्रमकी ८ बनाया है जिसमें २४ तीर्थंकरोंका चरित्र है और वीं और ९- वीं शताब्दीके ग्रंथकार हैं और जिसके अंतमें उसके बननेका समय शक सं० ९.. गोमरसार कर्ना श्रीति गोम्मटसारके कर्ता श्रीनेमिचंद्र सिद्धान्तचक्र- (वि मिटानक (वि० सं० १०३५ ) 'ईश्वर' संवत्सर दिया है. वर्तीका समय विक्रमकी ११ वीं शताब्दि निश्चित । ऐसा मिस्टर राइस साहबने अपनी 'इंस्क्रिपशन्स ऐट् श्रवणबेल्गोल' नामक पुस्तककी भूमिकामें उल्लेख है * । ऐसी हालतमें तत्त्वार्थराजवार्तिककी । किया है। इसके सिवाय 'रन' नामके कविने अपने ____* नेमिचंद्र और चामुंडराय दोनों समकालीन ही 'पुराण-तिलक' नामक ग्रंथमें, जो शक सं० ९१५ नहीं थे, बल्कि उनमें परस्पर गुरुशिष्य जैसा सम्बंध (वि० सं० १०५० ) में बनकर समाप्त हुआ है, था, इसमें किसीको विवाद नहीं है। नेमिचंद्रके प्रधान अपने ऊपर चामुंडरायकी विशेष कृपा होनेका उल्लेख शिष्य माधवचंद्र विद्यदेवने, और केशववर्णीने भी, किया है। इन सब प्रमाणों तथ इसी प्रकारके और भी गोम्मटसारकी अपनी टीकामें यह सूचित किया है कुछ प्रमाणोंसे नेमिचंद्रका समय विक्रमकी ११ वीं कि गोम्मटसार ग्रंथ 'राचमल्ल' राजाके महामंत्री शताब्दि निश्चित किया जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522837
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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