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________________ अङ्क ११] विचित्र ब्याह । . करिए मेरे पर विश्वास, तनिक न होवें आप उदास ॥ ३४ ॥ रूपचंद तब खड़ा हुआ, किड़क झिड़क कर कड़ा हुआ। फिर 'अच्छा' कह लौटा गेह, दिखा लोभके झठे स्नेह ।। ३५।। दो दिवसोंके बाद वहाँ पर फिर वह आया, उसने पाकर द्रव्य चित्तमें अति सुख पाया। रूपचन्द था बड़ा मतलबी और सयाना, . उसने पलमें किया ब्याहका ठीक ठिकाना । ... वह रुपये लेकर घर गया, सुचित सुशीला हो गई। मानो हरिसेवक-व्याहकी, चिन्ता उरसे खो गई। ३६ । । मम कन्या गुण-मंडी है मनो दर्शनी हुंडी है। उसको कहीं भैजा लूंगा, किन्तु नहीं तुमको दूंगा ॥ २५ ॥ जैसी लक्ष्मी सुन्दर है, हरिसेवक वैसा वर है। तदपि पाँच सौ में लँगा, तभी सुताको मैं दूंगा ॥ २६ ॥ बोला, अब मैं जाता हूँ, सत्य शपथ मैं खाता हूँ। कम न करूँगा कौड़ी एक, अपनी ही रक्खूगा टेक ॥ २७ ॥ बिक जावेगी सुता कहीं, ग्राहककी है कमी नहीं। जो कहना हो साफ कहो मत सोचो, मत मौन रहो ॥ २८ ॥ कहा सुशीलाने कर जोड़, . जो न आप कुछ सकते छोड़। तो फिर क्यों होते हैं रुष्ट, द्रव्य लीजिए रहिए तुष्ट ॥ २९ ॥ हरिसेवकका करिए ब्याह, अपनी पूरी करिए चाह ।। बात आपकी है मंजूर, चिन्ता आप कीजिए दूर ॥३०॥ यदि तुमको करना है काज, रोक रुपैया दो सौ आजदेकर मुझे बयाने दो, खाली हाथ न जाने दो॥३१॥ हुई व्यग्र वह बेचारी, क्योंकि अनाथा थी-नारी । बोली बड़ी विनय करके, आँखोंमें आँसू भरके ॥ ३२॥ रुपये दूंगी दो दिन में, चिन्ता मत करिए मनमें। आज कहाँ मैं पाऊँगी, कर्ज कहींसे लाऊँगी ॥३३॥ दो दिनमें फिर आवे आप, -दो सौ ले जावें चुपचाप । षष्ठ सगे। रुपये लेकर रूपचन्द जब घर पर आया, उसने प्रेमसमेत त्रियाको निकट बुलाया । रुपये देने लगा उसे तो वह हँस बोली, कहिए किसने आज आपकी भर दी झोली। किसभाँति आपको एकदम, इतने रुपये मिल गये क्यों अहो अचानक व्योममें, अमित कमल-दल खिल गये ॥१॥ विना मेघकी वृष्टि हुई है आज कहाँसे ? महा दीनको आज मिला है राज कहाँसे? गरल-सिन्धुसे सुधा-कुण्ड कैसे निकला है ? दुर्विधिका हृद्वज्र आज कैसे पिघला है ? सच कहिए कैसे द्रव्य ये आज मिले हैं आपको ।। सुरलोक ओक कैसे अहो आज मिला है पापको १२ दावानलसे शीत समीरण कैसे आया ? । नेत्रहीनने दिव्य दृष्टिको कैसे पाया ! पानीमें उत्पन्न हुआ है मक्खन कैसे ? स्नेह-ढेरमें प्रकट हुआ है कञ्चन कैसे ? दिननाथ नाथ ! कैसे उगा, आज प्रतीची गोदमें । किस विधसे किंशुक-कुसुम भी,आज सना आमोदमें? हँसकर बोला रूपचन्द्र तब गर्वसहित हो... वही काम है ठीक जिसे करनेसे हित हो। जिसकी घरनी रमा और लक्ष्मी कन्या हो, उसकी जीवन-वृत्ति नहीं कैसे धन्या हो? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522837
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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