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________________ अङ्क ९-१०] पछतावा । आरम्भ किया। सबेरेसे ८ बजे तक वे गरीबोंको बोले-कोई है ! जरा इस बुड्ढेका कान तो विना दाम ओषधियाँ देते, फिर हिसाब किता- गरम करे, यह बहुत बढ़ बढ़ कर बातें करता बका काम देखते । उनके सदाचरणने असामि- है। उन्होंने तो कदाचित् धमकानेकी इच्छायोंको मोह लिया । मालगुजारीका रुपया से कहा, किन्तु चपरासियोंकी आँखोंमें चाँदपार जिसके लिये प्रतिवर्ष कुरकी तथा नीलाम- खटक रहा था । एक तेज़ चपरासी कादिर की आवष्यकता होती थी इस वर्ष एक इशारे खाँने लपक कर बूढेकी गर्दन पकड़ी और ऐसा पर वसूल हो गया। किसानोंने अपने भाग धक्का दिया कि बेचारा ज़मीन पर जा गिरा। सराहे और वे मनाने लगे कि हमारे सरकारकी मलूकाके दो जवान बेटे वहाँ चुप चाप खंडे दिनोंदिन बढ़ती हो। थे । बापकी ऐसी दशा देखकर उनका रक्त गर्म हो उठा । वे दोनों झपटे और कादिरखाँ पर टूट कुवर विशालसिंह अपनी प्रजाके पालन पोषण पड़े। धमाधम शब्द सुनाई पड़ने लगा । खाँ पर बहुत ध्यान रखते थे। वे बीजके लिए अनाज साहबका पानी उतर गया। साफ़ा अलग जा देते और मजरी और बैलोंके लिए रुपये । फस्ल गिरा । अचकनके टुकड़े टुकड़े होगये । किन्तु कटने पर एकका डेढ़ वसूल कर लेते । चाँदपारके ज़बान चलती ही रही। कितने ही असामी इनके ऋणी थे। चैतका मलूकाने देखा, बात बिगड़ गई। वह उठा और महीना था। फ़स्ल कट कट कर खालियानमें कादिरखांको छुड़ाकर अपने लड़कोंको गालियाँ आरही थी। खलियानमें से कुछ नाज घरमें भी देने लगा। जब लड़कोंने उसीको डाँटा, तब दौड़आने लगा था। इसी अवसर पर कुँवर साहबने कर कुँवरसाहबके चरणों पर गिर पड़ा । पर चाँदपारबालोंको बुलाया और कहा- हमारा बात ययार्थमें बिगड़ गई थी। बूढ़ेके इस विनीत नाज और रुपया बेबाक कर दो। यह चैतका भावका कुछ प्रभाव न हुआ। कुँवरसाहबकी महीना है । जब तक कड़ाई न की जाय तुम आँखोंसे मानों आगके अङ्गारे निकल रहे थे । वे लोग डकार नहीं लेते । इस तरह काम नहीं बोले-बेईमान, आँखोंके सामनेसे दूर हो जा। चलेगा । बूढ़े मलकाने कहा-सरकार, भला नहीं तेरा खन पी जाऊँगा । असामी कभी अपने मालिकसे बेबाक हो सकता है । कुछ अभी ले लिया जाय, कुछ फिर दे । बूढेके शरीरमें रक्त तो अब बैसा न रहा था देवेंगे । हमारी गर्दन तो सरकारकी मुट्ठीमें है । किन्तु कुछ गर्मी अवश्य थी । वह समझा था कि ... कुँवरसाहब-आज कौड़ी कौड़ी चुका कर . : ये कुछ न्याय करेंगे, परन्तु यह फटकार सुनकर यहाँसे उठने पाओगे । तुम लोग हमेशा इसी बाला बोला-सरकार बुढ़ापेमें आपके दरवाजे पर " पानी उतर गया और तिसपर सरकार हमीको तरह हीला हवाला किया करते हो। - मलूका ( विनयके साथ)-हमारा पेट है " १ डाँटते हैं । कुँवरसाहबने कहा-तुम्हारी इज्जत सरकारकी रोटियाँ हैं, हमको और क्या चाहिए। अभी क्या उतरी है, अब उतरेगी। जो कुछ उपज है वह सब सरकारहीकी है। दोनों लड़के सरोष बोले-सरकार अपना कुँवर साहबसे मलूकाकी यह वाचालता सही रुपया लेंगे कि किसीकी इज्जत लेंगे। न गई । उन्हें इस पर क्रोध आगया । राजा, कुँवरसाहब (ऐंठकर)-रुपया पीछे लेंगे। रईस ठहरे । बहुत कुछ खरी खोटी सुनाई और पहले देखेंगे कि तुम्हारी इज्जत कितनी है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522836
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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