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४२४ जैनहितैषी
[भाग १३ जैनजातियों के पारस्परिक बेटी- उन धनिक जातियोंके लोग जिनमें कन्यायें कम व्यवहारमें
हैं छोटी जातियों पर टूट पड़ेंगे और उनकी सारी
कन्याओंको हथया लेंगे। इसका फल यह होगा हानिकी कल्पना।
कि छोटी जातियोंके लड़के कुंआरे रह जायेंगे
और निधन होनेके कारण अन्य जाति के लोग कुछ समय पहले सूरतके 'दिगम्बर जैन' उन्हें कन्या देंगे नहीं । परन्तु वास्तवमें यह शंका
में श्रीयुत पण्डित पन्नालालजी वाकली. निरर्थक है। कारण एक तो ऐसी जाति शायद वालने एक छोटासा लेख प्रकाशित कराया था ही कोई हो जिसमें निर्धन ही निर्धन हो, धनी
और उसमें यह प्रतिपादन किया था कि, जब कोई न हो । सभी जातियों में धनी और निधन एक जाति दूसरीसे सम्बन्ध करने लगेगी तब पाये जाते हैं और जिन जातियों में एनी अधिक निर्धन जातिकी पुत्रियों को दूसरी जातिके धनिक हैं, उनमें निर्धन भी बहुत हैं जो दूसरी जातिके ब्याह ले जायेंगे, वृद्धविवाहकी वृद्धि होगी निर्धनोंको अपनी लड़कियाँ खुशीसे देनेको
और कंगालों के लड़के आधिक अविवाहित रहेंगे। तैयार हो जायेंगे। तासरे धनी प्रायः धनियोंके ही यह लेख पारस्परिक बेटी-व्यवहारके विरोधि- साथ सम्बन्ध करते हैं; गरीबोंके साथ तो उस यों को इतना पसन्द आया कि उन्होंने उसे कई समय करते हैं अब उनकी उम्र बहुत अधिक पत्रोंमें उद्धृत करके प्रकाशित किया। इच्छा हो जाती है। सो ऐसे लोगोंको तो रुपयोंके हुई कि उक्त लेखके विरुद्धमें हम भी कुछ लिखें, जोरसे कहीं न कहीं लड़कियाँ मिल ही जायगी; परन्तु उसके कुछ ही समय पहले जैनहितैषी चाहे वे जातिमें मिलें या दूसरी जातियोंमें । भाग ११ पृष्ठ ६२८ में हमारा एक 'जैन यदि वे दूसरी जातिकी कन्यायें ले आयेंगे तो जातियों में पारस्परिक विवाह' शीर्षक विस्तृत उनकी जातिकी कन्यायें औरोंके लिए बची लेख प्रकाशित हो चुका था और उसमें उक्त रहेंगी। बात यह है कि इस प्रश्नका विचार लेखकी प्रायः सभी बातोंका उत्तर दिया जा समग्र जैन समाजके हानिलाम पर दृष्टि रखकर चुका था, इस लिए हमने उस समय इस विष- करना चाहिए । तगाम जैन जातियोंमें जितनी यो मौन रहना ही उचित समझा; पर देखते हैं कन्यायें हैं, यदि उन सबका यथोचित सम्बन्ध कि वह लेख हाईकोर्टकी 'नजीर' बन रहा है। हो जाय, किसीको कुँआरी न रहना पड़े और जैनगजटके सम्पादकने ता. १७ सितम्बरके विवाहका क्षेत्र बढ़ जानेसे यह निस्सन्देह है कि गजटमें उसे फिर पेश किया है, इस लिए आव- लड़कियाँ कुँआरी न रहेंगी तो समझना होगा श्यक हुआ कि उसकी भ्रामकता प्रकट कर दी कि पारस्परिक विवाहसम्बन्ध लाभकारी है । यदि जाय । पहले हम अपने पूर्वोल्लिखित लेखका ही इससे किसी एक जातिको कुछ हानि भी हो वह अंश उध्दृत कर देते हैं, जिसमें इस विष- और आरंभमें ऐसा होना कई अंशों में संभव भी यकी चर्चा की गई है:
है, तो सारे जैनसमाजके लाभके खयालसे “ यह शंका की जाती है कि पारस्परिक उसको दर गुजर करना होगा। विवाहसम्बन्ध जारी होनेसे पहले पहल उन कुछ लोगोंका यह खयाल है कि सब जातिजातियोंको बहुत हानि उठानी पड़ेगी, जिनकी योंमें बेटीव्यवहार होने लगनेसे कन्याविक्रय संख्या थोड़ी है और जो निर्धन हैं। क्योंकि बढ़ जायगा । ऐसे लोग अपने विचारोंकी पुष्टिमें
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