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जैनहितैषी
[भाग १३
भगवन् ! क्या ही दीन दशा है । विश्वबन्धुके बारशनकी (गर्भपात करनेकी) दवा पूछने लगे। मकानके पास ही एक कुलीन ब्राह्मण महाशयका साहब लाल हो गये । जमीन पर जोरसे पैर घर था। उनके यहाँ एक परम रूपवती युवती पटककर और 'छिः' कहकर लौट गये । बंगले विधवा थी। उनके घर परदेका कड़ा नियम पर पहुँचकर उन्होंने इस बातकी सूचना पुलिस था । तो भी विश्वबन्धु उनके यहाँ बेरोकटोक कप्तानके पास भेज दी। जाया करते थे। कुछ दिनोंके बाद जब न उसी दिन रातको देवदत्तकी चचेरी बहिन जाने क्यों ब्राह्मण महाशयने मकान छोड़ देनेका अकस्मात् मर गई और रातोंरात चिता पर भस्म निश्चय किया, तब विश्वबन्धुने अपनी माँसे कह कर दी गई। यह विधवा थी। कई दिनके बाद सुन कर उस मकानको खरिदवा लिया। ब्राह्मण देवदत्तकी तलबी कोतवालीमें हुई । सुना जाता महाशय सपरिवार अपने देश ( कन्नौज) चले है कि वहाँके देवताने अपनी पूजा पाई और गये और उस मकानकी मरम्मत शुरू हुई। रिपोर्ट में लिख दिया कि देवदत्त प्रतिष्टित रईस एक कोठरी, जिसे पण्डिताइन ठाकुरजीकी हैं । उस दिन, उनकी बहिनको हैजा हो गया कोठरी कहा करती थीं, और जो सालमें था, इसीलिए साहबको बुलाया था। वे एबारशन केवल कुलदेवकी पूजाके समय खोली नहीं बल्कि रेस्ट्रिक्टिव चेक ( restrictive जाती थी, बड़ी सड़ी नम और बदबूदार heckc ) की या बन्धेजकी दवा पूछना चाहते थी। उसे पक्की करा देना निश्चय हुआ । नम थे, और यह कानूनन कोई जुर्म नहीं है। मिट्टीको खोद कर फेंक देनेके लिए मजदूर यह दोहरे खूनका नमूना है । यहाँ तो समाखोदने लगे । सुना जाता है कि उसमेंसे एक ही जमें जबतक बात छिपी है, तबतक सब ठीक, उमरके कई बच्चोंके पंजर निकले ! एक तो और यदि खुलनेकी नौबत आई तो बस 'विष' बिलकुल हालहीका दफनाया जान पड़ता था ! या 'त्याग'। ले जाकर कहीं दूरके शहरमें या प्रभो ! भारतको ऐसे भयंकर पापोंसे बचाइए। तीर्थस्थानमें छोड़ आये। कुछ दिनों तक मुहहमें बल और निर्मल बुद्धि प्रदान कीजिए, ब्बतके मारे कुछ खर्च भेजा और फिर बन्द कर जिससे हम इन कुरीतियोंका अन्त कर सकें। दिया । ऐसी अनाथा स्त्रियोंकी क्या दशा होती
सिविल सर्जन साहब जेल और अस्पताल होगी उसे पाठक स्वयं विचार सकते हैं। आदिसे लौटकर लगभग एक बजे बंगले पर आये। भारतकी ऊपर बतलाई हुई कई लाख वेश्यायें टेबुलपर एक तार मिला, जिसका आशय यह कौन हैं ? हम भारतवासियोंके घरकी विधवायें, था कि “ रोगी सख्त बीमार है । जल्दी आनेकी हमारी ही बहिनें और बेटियाँ, या उनकी कृपा कीजिए । देवदत्त ।” साहब बड़े ही सन्तति । हमारी ही असावधानी, निर्दयता और दयालु हैं । उसी समय घोड़े पर सवार होकर निष्ठुरताके कारण उनकी यह दशा हुई है। रवाना हो गये। उन्होंने देवदत्तके घर पहुँच कर १ रामकली, विन्ध्याचल-" मैं क्षत्रानी हूँ। पूछा कि रोगी कहाँ है ? देवदत्त हाँफते हाँफते बालविधवा हूँ। मेरे भाई दर्शन करानेके हीलेसे मुझे आये और बोले हुजूर, बड़ी गलती हुई, माफ यहाँ छोड़ गये । उनके इस तरह त्याग करदेनेका कीजिए । साहबने डपटकर पूछा कि बतलाओ कारण मैं समझ गई, इस लिए मैंने कभी पत्र रोगी कहाँ है । देवदत्त गिड़गिडाते हुए साहबके नहीं भेजा और न लौटनेकी चेष्टा की। हाथमें फीस रखकर पैरों पर लोट गये और ए- अब भीख माँगकर अपना गुजर करती हूँ।
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