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________________ ४०३ जैनहितैषी [भाग १३ हमारे देशका व्यभिचार। सदृश कुचरित्र लोग भी इस समाजमें हैं, पर (लेखक, श्रीयुत ठाकुर शिवनन्दनसिंह बी. ए.) एकदम सारे समाजको अनाचारी मान लेना हम भारतवासी यह माने बैठे हैं कि पहले तो अन्याय है । कुछ दिनांके लिये एक स्कूलमें मैं भारतमें सदाचार छोड़ व्यभिचारका लेश भी अवैतनिक असिस्टेन्ट हेडमास्तर था। स्कूलके नहीं है और यदि किसी अंशमें है भी, तो नाम- 19 " प्रिंसपलसे मुझसे बहुत मेल बढ़ गया था । मैं मात्रको । कमसे कम विलायतवालों के मकाबले तो प्रायः नित्य ही अपना सन्ध्याका समय उनके इस देशके स्त्रीपुरुष अत्यंत सच्चरित्र हैं। सुबतमें बंगले पर बिताता था । ये सपरिवार बड़े ही कहा जाता है कि विलायतमें तो व्यभिचारके सज्जन थे और सबका बर्ताव मेरे साथ बहुत ही ऐसे घर बने हैं जहाँ स्त्रियाँ छिप कर बच्चे जन भला था। हम सब एक साथ · बैड मिन्टन,' . 'टेनिस' या 'चेस ' आदि खेल खेला करते आती हैं और उन बच्चोंको दाइयाँ जिलाती हैं * । उनके यहाँ परदा न होनेसे जो जिसे चाहता है, था, थे। इसमें मेमसाहिबा और उनकी युवा पुत्रियाँ भी अपना लेता है। पराई स्त्रियाँ पराये परुषों के शामिल रहती थीं । वे हारमोनियम या पियानो साथ घूमती हैं और मनमाना आनन्द करती हैं; बजाकर बड़ी आजादीसे गाकर सुनाती थीं, खूब वे रोकी तक नहीं जातीं । असलमें, उनके यहाँ __ अच्छी तरह दिल खोल कर बातें करती थीं, बहस मुबाहिसा करती थीं, और सभ्यतापूर्ण हँसी व्याभिचारका विचार ही नहीं है। ___ दिल्लगी भी करती थीं । अर्थात् जिस आजादीसे यह बात कहाँ तक सत्य है इसका निश्चय , १ दो सभ्य पुरुषमित्र आपसमें व्यवहार रखते हैं करना अत्यन्त कठिन ही नहीं, असम्भव है । . ' उसी तरह प्रिंसपलसाहबके घरकी स्त्री और पुरुष हमारे यहाँका रिवाज और रहनेका ढंग उनके दोनोंके साथ मेरा व्यवहार था। रहनसहनसे ऐसा विरुद्ध है कि हम खामखाह बार मेरे इस मेलजोलकी खबर धीरे धीरे स्कूलमें उनके चरित्रमें धब्बा लगाते हैं और उनका जीवन पहुँची । फिर क्या था, हर तरफसे मास्टर लोग यदि पवित्र भी हो तो भी हम उन्हें कलंक लगाते कटाक्ष करने लगे। फुरसतके घण्टेमें सब लोग और पापाचारी कहा करते हैं। समाजमें, हर तर एक साथ बैठकर मेरी मीठी मीठी चुटकियाँ हके लोग होते हैं । यद्यपि आगरके सिविल सर्जन लेने लगे। मिस्टर क्लार्क और मिसेस फुलहम + आदिके दैव-संयोगसे वहाँ एक नये कलेक्टर बदलकर ___ * छिप कर बच्चे जने जानेका ब्योराः- आये। ये अकसर प्रिंसपल साहबके बँगले पर सन् इंग्लैण्ड फ्रांस जर्मनी आने लगे । कभी कभी खाना भी यहीं १९०४ ३८,४१२ ७१,७३५ १,७४,७९४ खायें और रातको भी रह जाय । मेम साहिबाने १९०५ ३६,८१४ ७१,५०० १,७७,०६० तो अपना और कलेक्टरका बंगला एक कर रक्खा १९०६ ३९,३१५ ७१,४६६ १,७९,१७८ " था । जब देखिए, वे कलेक्टरसाहबकी जोड़ी १९०७ ३६,१८९ ७१,३०५ १,८०,५८७ १९०८ ३७,५३१ ७१,००९ १,८४,११२ पर नजर आती थीं । हवा खाने दोनों एक साथ, १९०९ ३७,५०९ ७१,२०३ १,८३,७०० नदीकी सैर एक साथ, जहाँ देखिए प्रिंसपलकी ___ + Vide the pioneer and the मेम और कलेक्टर साहब एक ही साथ दिखाई Leader Etc. for March 1913 in which देते थे । दुर्भाग्यवश एक दिन प्रिंसपल साहब the shameful cose was published. भले चंगे स्कूलसे आये और एकाएक बेहोश हो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522836
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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