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________________ .३७४ जैनहितैषी [भाग १३ काम करनेका उत्साह लार्ड मांटेगू भारतमें. और इसका सबसे अच्छा उपाय आन्दोलन है। अन्याय है कि एक व्यक्तिकी स्वाधीनता हरण कर इस विषयके लेख लिखवाना, उन्हें समाचारपत्रोंमें ली जाती है, वह वर्षोंतक जेलमें सडाया जाता है, प्रकाशित कराना, छोटे छोटे ट्रेक्टोंके रूपमें बहुलताके परन्तु उसे यह नहीं बतलाया जाता कि उसका साथ बॉटना, जगह जगह सभा सुसाइटिया में व्याख्या- अपराध क्या है । यदि सेठीजी दोषी हैं. न दिलवाना, पंचायतियोंको और उनके मुखियोंको उन्होंने कोई अपराध किया है, तो क्यों समझाकर अपनी ओर करना, सम्मतियोंका संग्रह नहीं उन पर मुकद्दमा चलाया जाता और क्यों वे करना, और कमसे कम पाँच हजार सम्मतियोंके एक- दोषी सिद्ध नहीं किये जाते । क्या इन तीन वर्षाम वित हो जाने पर इस तरहके दश बीस विवाहोंको भी सरकार उनके विरुद्ध प्रमाणोंको संग्रह न कर उदाहरणके लिए करा देना, यही अथवा इसीस सकी ? हमारा विश्वास है कि सेठीजी निर्दोष मिलती जलती पद्धति आन्दोलनकी होनी चाहिए। हैं, उन्होंने कोई अपराध नहीं किया. वे राजकर्मबाबु चन्दसेनजी बड़े उद्योगी और परिश्रमी पुरुष चारियों के किसी बहुत बड़े भ्रमके कारण ही संकट हैं। हमें आशा है कि वे अपनी इस नूतन संस्थाको भोग रहे हैं। एक काम करनेवाली संस्थाके रूपमें चलावेगे, नाम जैनसमाजको चाहिए कि वह अपने इस निः करनेवाली अन्यसंस्थाओंके रूपमें नहीं। जैनसमाजके स्वार्थ सेवकको भूल न जाय । भारतमंत्री नवयवकोंको-जिनके रक्त में काम करनेका उत्साह आ रहे हैं । श्रीमती है--पस कार्यमें योग देना चाहिए और इसके उद्देश्यों ३६२चा- एनी बीसेण्ट, उनके साथी और मि० शौकत का घर घर प्रचार घरना चाहिए । अली आदि राजनीतिक नजरबन्द लोग छोड़े जा ८ पं० अर्जुमलालजी सेठीका कष्ट । रहे हैं, और भी बहुतसे राजनीतिक कैदी छोड़े जा अपना सर्वस्व लगाकर जैनसमाजकी सेवा करने- यँगे, ऐसी खबरें सुन पड़ रही हैं। ऐसे समयमें वाले पं० अर्जुनलालजी सेठी बी. ए. के दुःखोंका जैनसमाजको सेठीजीके विषयमें फिर आन्दोलन अन्त अब तक नहीं आया। तीन वर्ष होनेको आये करना चाहिए और एक डेप्यूटेशन लेकर लार्ड वे अभीतक बिना किसी अपराधके जयपुरकी जेलमें मांटेगूसे मिलना चाहिए । वे उदार राजनीतिज्ञ सुने पडे हुए अपने बहुमूल्य जीवनको व्यर्थ व्यतीत जाते हैं। कोई कारण नहीं कि वे हमारी उचित कर रहे हैं। सुना है, कुछ समयसे उनके कष्ट और प्रार्थना पर ध्यान न दें, और सेठीजीको इस अभी अधिक बढ़ गये हैं । राजकर्मचारियोंकी वक्र- न्यायसे मुक्त करनेके लिए भारत सरकारसे सिफा. दृष्टिके कारण उन्हें जो थोड़े बहुत सुभीते मिले थे, रिश न करें। वे भी अब नहीं रहे हैं। उनका स्वाथ्य बिगड़ हम अपने समस्त देशभक्त नेताओंका ध्यान गया है और यदि वे शीघ्र न छोडे जायेंगे तो डर । भी इस ओर आकर्षित करते हैं । उन्हें श्रीमती है कि उनका मस्तक भी न बिगड़ जाय ! उनकी मानसिक अवस्था पहले की अपेक्षा बहुत ही खराब बीसेण्ट और उनके साथियोंको ही बन्धमुक्त कराके है। मालूम नहीं सरकारको हन बातोंकी कुछ निश्चिन्त न हो जाना चाहिए। क्या सेठीजी और खबर है या नहीं। उन्होंके समान और भी जो सैकड़ों देशसेवक विना - हमें यह कहनेमें कुछ भी संकोच नहीं है कि किसी अपराधके कैद हैं उनकी स्वाधीनताका कुछ श्रीयुत सेठीजीके मामलेका उत्तरदायित्व यद्यपि मूल्य ही नहीं है ? क्या हमारे आन्दोलनोंमें भी गोरे जयपुर राज्यपर है, परन्तु यह कह देनेसे भारत रंगको ही अधिक प्रतिष्ठा दी जायगी ? देशके प्रत्येक गवर्नमेंट निर्दोष नहीं ठहर सकती । यद्यपि इसमें व्यक्तिकी--छोटे बड़ेकी स्वाधीनताकी रक्षा करना उसका कोई प्रत्यक्ष हाथ नहीं है; परन्तु वास्तवमें हमारा धर्म होना चाहिए । परोक्ष रूपसे वही इसकी विधाता है । यह कितना बड़ा .. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522834
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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