SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ monarannnnnn अङ्क ८] पुस्तक परिचय। ३५५. है, क्योंकि धर्मशास्त्रमें जो विषय कहा गया है वह संग्रहणीय है । पत्रका वार्षिक मूल्य तीन रुपया है। ज्योतिःशास्त्रमें नहीं है और जो ज्योतिःशास्त्रमें है इस अंकका मूल्य लिखा नहीं । बह धर्मशास्त्रमें नहीं, तब दोनोंमें क्यों विरोध हो ! ५जैननित्यपाठसंग्रह । कलकत्तेकी जैनमित्र यही बात बौद्ध जैन साहित्यके विषयों की समझनी मंडलीने इस पाठसंग्रहको छपाया है। इसमें सब मिलाचाहिए । हमारे ऋषियोंने अन्य विषयोंका वर्णन कर ३५ पाठ हैं। भक्तामर और तत्त्वार्थ सूत्र ये दो किया है और बौद्ध जैनोंने अन्यका । जिस तरह कोई पाठ संस्कृतके हैं, शेष सब भाषाके । बम्बईमें जो धर्मशास्त्र पढ़ता है, कोई ज्योतिःशास्त्र पढ़ता है, भाषा नित्यपाठसंग्रह छपा था, उससे इसमें कई पाठ पर ये एक दूसरे पर कटाक्ष नहीं करते । इसी प्रकार ज्यादा हैं। पाण्डे हीरानन्दकृत एकीभाव और किसीका अनुराग आर्ष साहित्यमें है, किसीका पं० शान्तिदासकृत विषापहार, ये दो पाठ ऐसे हैं बौद्धमें और किसीका जैनमें । इस विषयमें लोग जो अभीतक कहीं भी प्रकाशित नहीं हुए थे। स्वतंत्र हैं।” शारदामें जैनसाहित्यसम्बन्धी भी छपाई अच्छी और कागज बढ़िया है, तिसपर भी कई लेख निकल गये हैं । जैनसाहित्यसम्बन्धी डबल क्राउन सोलह पेजी साइजके १९२ पृष्ठकी लेखोंको प्रकाशित करनेके लिए वे उत्सुक भी रहते पुस्तकका मूल्य बारह आने कम है । पुढेवाली हैं। क्या हम अपने समाजके संस्कृतज्ञ पण्डितोंसे पुस्तकका मूल्य चौदह आने है । मित्रमण्डलीका आशा करें कि वे शारदाको मँगाकर पढ़ा करें और ठिकाना 'नं. ९ विश्वकोश लेन, बाग बाजार' है। उसके द्वारा समय समय पर जैनसाहित्यका सन्देशा ६-शत्रंजय तीर्थोद्धारप्रबन्ध । सम्पादक, जैनेतर विद्वानों तक पहुँचाया करें । हमारी समझमें मुनि जिनविजयजी । प्रकाशक, जैन आत्मानन्दशास्त्रार्थोंकी अपेक्षा इस मार्गसे जैनधर्मकी अधिक सभा, भावनगर । डिमाई अठपेजी आकारके ११२ प्रभावना होगी। शारदाका प्रचार हम हृदयसे पृष्ठ । कपड़ेकी जिल्द, मूल्य दश आने । श्वेताम्बर चाहते हैं। सम्प्रदायमें शत्रुजय तीर्थका बड़ा माहात्म्य है । इस * मल्लारि-मार्तड-विजयका नागपंचमी- तीर्थके अनेक पुरुषोंने अनेक बार उद्धार किये का अंक । इन्दौर दरबारकी ओरसे यह साप्ताहिक हैं और उनका वर्णन श्वेताम्बर ग्रन्थों में मिलता पत्र हिन्दी और मराठी में प्रकाशित हुआ करता है। है । सबसे अन्तिम सातवाँ उद्धार विक्रम संवत् इसके मराठी विभागके सम्पादक श्रीयुत वी. सी. सर्वटे १५५७ को कर्मासाह नामके श्रावकने कराया बी. ए. एल एल. बी. और हिन्दी विभागके श्रीयुत था । यह धर्मात्मा श्रावक चित्तौड़का रहनेवाला मुखसम्पत्तिराय भण्डारी (जैन) हैं । इन्दौरमें नाग- था और ओसवालज्ञातीय था । कपड़ेका बहुत बड़ा पंचमीका त्योहार बड़े ठाटवाटसे मनाया जाता है। व्यापारी और धनी था। इसने शत्रुजयके मुख्य यह अंक. भी उसीके उपलक्ष्यमें निकला है । इसमें मंदिरका उद्धार कराके मुसलमानों द्वारा खण्डित ‘मराठीके १७ और हिन्दीके ९ लेख हैं और यह विशे- हुई सारी प्रतिमाओंके स्थानमें नवीन प्रतिमायें षता है कि उन सबके लेखक इन्दौरके ही निवासी हैं। बनवाकर स्थापित करवाई और बड़ी धूमधामके मराठीके लेखोंमें संस्कृत भाषाका अभ्यास, सुखदुः- साथ तीर्थप्रतिष्ठा कराई । इस कार्यमें उसने अखमीमांसा आदि लेख महत्त्वके हैं और हिन्दीमें गणित धन खर्च किया । यह यतिष्ठा विद्यामण्डन सवाजसेवा, मद्यपान, आदि । प्रायः सभी लेख उच्चा- नामक आचार्यके द्वारा हुई । इन्हीं विद्यामण्डनके श्रेणीके हैं । साधारण लोगोंके उपयोगमें आ सकने- शिष्य विवेकधीर गणि नामके विद्वानने 'शत्रुजयवाले लेखोंका इसमें एक तरहसे अभाव है। अंक तीर्थोद्धारप्रबन्ध । नामका संस्कृत ग्रन्थ लिखा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522834
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy