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अङ्क ८]
रानी सारन्धा।
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राजाने भवनमें जाकर सारन्धासे पूछा- बाहर निकल पड़े और उन्होंने तुरत ही नदीमें इसका क्या उत्तर दूं?
घोड़े डाल दिये । चम्पतरायने शाहज़ादा दारा सारन्धा-आपको मदद करनी होगी। शिकोहको मुलावा देकर अपनी फौज घुमा दी
चम्पतराय-उनकी मदद करना दारा शिको- और वह बुन्देलोंके पीछे चलता हुआ उसे पार इसे वैर लेना है।
उतार लाया । इस कठिन चालमें सात घण्टोंका सारन्धा-यह सत्य है परन्तु हाथ फैलानेकी विलम्ब हुआ, परन्तु जाकर देखा तो सात सौ मर्यादा भी तो निभानी चाहिए।
बुन्देला योद्धाओंकी लाशें फड़क रही थीं। चम्पतराय-प्रिये! तुमने सोचकर जवाब राजाको देखते ही बुन्देलोंको हिम्मत बँध नहीं दिया।
गई । शाहजादोंकी सेनाने भी 'अल्लाहो अकबर' सारन्धा-प्राणनाथ, मैं अच्छी तरह जानती की ध्वनिके साथ धावा किया। बादशाही सेनामें हूँ कि यह मार्ग कठिन है और हमें अपने योद्धा- हलचल पड़ गई । उनकी पंक्तियाँ छिन्न भिन्न ओंका रक्त पानीके समान बहाना पड़ेगा । परन्तु हो गई । हाथोंहाथ लड़ाई होने लगी, यहाँ तक । हम अपना रक्त बहायेंगे, और चम्बलकी लहरों- कि शाम हो गई । रणभूमि रुधिरसे लाल हो । को लाल कर देंगे। विश्वास रखिए कि जब तक गई और आकाश अँधेरा हो गया। घमसानकी । नदीकी धारा बहती रहेगी, वह हमारे वीरोंकी मार हो रही थी । बादशाही सेना शाहज़ादोंको. कीर्ति गान करती रहेगी। जबतक बुन्देलोंका दबाये आती थी। अकस्मात् पच्छिमसे फिर । एक भी नाम-लेवा रहेगा, यह रक्तबिन्दु उसके बुंदेलोंकी एक लहर उठी और इस वेगसे बादमाथे पर केशरका तिलक बनकर चमकेगा। शाही सेनाकी पुश्त पर टकराई कि उसके कदम __ वायुमण्डलमें मेघराजकी सेनायें उमड़ रही उखड़ गये। जीता हुआ मैदान हाथसे निकल थीं। ओरछेके किलेसे बुन्देलोंकी एक काली घटा गया। लोगोंको कौतूहल था कि यह दैवी सहाउठी और वेगके साथ चम्बलकी तरफ चली। यता कहाँसे आई । सरल स्वभावके लोगोंकी . . प्रत्येक सिपाही वीररससे झूम रहा था। सारन्धाने धारणा थी कि यह फतहके फिरिश्ते हैं । परन्तु दोनों राजकुमारोंको गलेसे लगा लिया और जब राजा चम्पतराय निकट गये तो सारन्धाने राजाको पानका बीड़ा देकर कहा-बुन्देलोंकी घोड़ेसे उतर कर उनके पद पर शीश झुका लाज अब तुम्हारे हाथ है।
दिया । राजाको असीम आनन्द हुआ। यह - आज उसका एक एक अंग मुसकिरा रहा है सारन्धा थी।
और हृदय हुलसित है। बुन्देलोंकी यह सेना समरभूमिका दृश्य इस समय अत्यन्त दुःखदेखकर शाहज़ादे फूले न समाये । राजा वहाँकी मय था। थोड़ी देर पहले जहाँ सजे हुए बीरोंके अगुल अंगुल भूमिसे परिचित थे। उन्होंने बुन्दे- दल थे वहाँ अब बेजान लाशें फड़क रही थीं। लोंको तो एक आडमें छिपा दिया और वे शाह- मनुष्यने अपने स्वार्थ के लिए आदिसे ही भाईजादोंकी फौजको सजा कर नदीके किनारे योंकी हत्या की है। किनारे पच्छिमकी ओर चले । दारा शिकोहको अब विजयी सेना लूट पर टूटी। पहले मर्द अम हुआ कि शत्रु किसी अन्य घाटसे नदी मर्दोसे लड़ते थे, अब वे मुर्दोसे लड़ रहे थे। उतरना चाहता है। उन्होंने घाटपरसे मोर्चे हटा वह वीरता और पराक्रमका चित्र था, यह नीचता लिये । घाटमें बैठे हुए बुन्देले इसी ताकमें थे। और दुर्बलताकी ग्लानिप्रद तसबीर थी। उस
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