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अङ्क ८] ... रानी सारन्धा।
३४३ सारन्धा भाई पर जान देती थी। उसके ही उसने मुगल बादशाहोंको कर देना बन्द कर मुंहसे यह धिक्कार सुनकर अनिरुद्ध लज्जा और दिया और वह अपने बाहुबलसे राज्यविस्तार खेदसे विकल हो गया। वह वीराग्नि जिसे क्षण करने लगा। मुसलमानोंकी सेनायें वार वार उस पर भरके लिये अनुरागने दबा दिया था, फिर ज्वलन्त हमले करती थीं और हार कर लौट जाती थीं। हो गई । वह उल्टे पाँव लौटा और यह कहकर । यही समय था जब अनिरुद्धने सारन्धाका चला गया कि “सारन्धा! तुमने मुझे सदैवके चम्पतरायसे विवाह कर दिया। सारन्धाने मुँहलिए सचेत कर दिया। ये बातें मुझे कभी न माँगी मुराद पाई। उसकी यह अभिलाषा कि भूलेंगी।"
मेरा पति बुंदेला जातिका कुलतिलक हो, पूरी अँधेरी रात थी । आकाशमण्डलमें तारोंका हुई। यद्यपि राजाके रनिवासमें पाँच रानियाँ प्रकाश बहुत धुंधला था। अनिरुद्ध किलेसे बाहर थीं, मगर उन्हें शीघ्र ही मालूम हो गया कि वह निकला । पलभरमें नदीके उस पार जा पहुँचा, देवी जो हृदयमें मेरी पूजा करती है सारन्धा है ।
और फिर अन्धकारमें लुप्त हो गया । शीतला परन्तु कुछ ऐसी घटनायें हुई कि चम्पतराउसके पीछे पीछे किलेकी दीवारों तक आई, मगर को
र यको मुगल बादशाहका आश्रित होना पड़ा। . जब अनिरुद्ध छलाँग मारकर बाहर कूद पड़ा तो
" उसने अपना राज्य अपने भाई पहाड़सिंहको सौंपा
र वह विरहिणी एक चटान पर बैठकर रोने लगी। और आप देहलीको चला गया। यह शाहजहाँके इतनेमें सारन्धा भी वहीं आ पहुँची । शीत
शासनकालका अन्तिम भाग था । शाहजादा लाने नागिनकी तरह बल खाकर कहा-मर्यादा
दारा शिकोह राजकीय कार्योको सँभालते थे। इतनी प्यारी है !
युवराजकी आँखोंमें शील थी, और चित्तमें सारन्धा-हाँ।
उदारता । उन्होंने चम्पतरायकी वीरताकी शीतला-अपना पति होता तो हृदयमें छिपा
कथायें सुनी थीं, इसलिए उसका बहुत आदर लेतीं।
सम्मान किया, और कालपीकी बहुमूल्य जागीर सारन्धा-न-छातीमें छुरी चुभा देती।
उसके भेंट की, जिसकी आमदनी नौ लाख थी। शीतलाने ऐंठ कर कहा-डोलीमें छिपाती
यह पहला अवसर था कि चम्पतरायको आये फिरोगी-मेरी बात गिरहमें बाँध लो।
दिनकी लड़ाई झगड़ेसे निवृत्ति हुई और उसके सारन्धा-जिस दिन ऐसा होगा, मैं भी अपना
साथ ही भोगविलासका प्राबल्य हुआ। रात दिन वचन पूरा कर दिखाऊँगी।
आमोदप्रमोदके चर्चे रहने लगे। राजा विलासमें ___ इस घटनाके तीन महीने पीछे अनिरुद्ध मह- .
डूबे, रानियाँ जड़ाऊ गहनों पर रीझीं। मगर रौनाको विजय करके लौटा। साल भर पीछे ,
सारन्धा इन दिनों बहुत उदास और संकुचित सारन्धाका विवाह ओरछाके राजा चम्पतरायसे .
रहती । वह इन रहस्योंसे दूर दूर रहती, ये हो गया। मगर उस दिनकी बातें दोनों महिला
नृत्य और गानकी सभायें उसे सूनी प्रतीत होतीं। ओंके हृदय-स्थलमें काँटेकी तरह खटकती रहीं। [३]
एक दिन चम्पतरायने सारन्धासे कहाराजा चम्पतराय बड़े प्रतिभाशाली पुरुष थे। सारन ! तुम उदास क्यों रहती हो ? मैं तुम्हें कभी सारी बुंदेला जाति उनके नाम पर जान देती थी हँसते नहीं देखता । क्या मुझसे नाराज हो ? और उनके प्रभुत्वको मानती थी । गद्दी पर बैठते सारन्धाकी आँखोंमें जल भर आये । बोली
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