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________________ अङ्क ५-६] दादा भाई नौरोजी। २८३ दी । समय समय पर अपनी सम्मति देकर लेनेके लिए गये। पर वहाँका जघन्य दृश्य देखकृतार्थ किया । प्रयागके यथार्थनामा दैनिक कर आपको शराबसे ऐसी घिन हुई कि फिर जीवपत्र लीडर ) के सम्पादक 'मालूमातकी नभर शराबको न छुआ । भोजन भी आप बहुत चलती फिरती इंसाइक्लोपेडिया' माननीय सी० सादा करते थे। एकबार आपने पूछने पर अपने वाई. चिन्तामणि महोदय सन् १९१५ ई० दीर्घजीवन और स्वस्थ जीवनका कारण मद्यरहित में बम्बईकी कांग्रेस देखकर यथानियम सादे भोजन और नियमित प्रवृत्तियोंको ही दादाभाईके दर्शनार्थ वर्मोवा-जहाँ दादाभाई बतलाया था । १०-११ वर्षोंसे एकान्त और शान्त जीवन दादाभाईने अनेक पुस्तकें लिखी हैं । अनेक व्यतीत कर रहे थे-गये थे । यद्यपि उस कमीशनोंके सामने दी हुई देशभक्तिपूर्ण आपकी समय उनकी अवस्था ८० वर्षसे ऊपर थी; अनेक गवाहियाँ भी राजनितिके हिसाबसे स्थायी किन्तु अपने संयमयुक्त सरल जीवनके कारण साहित्यसे किसी अंशमें कम नहीं हैं । आपकी वे खूब स्वस्थ थे । आप घंटों कांग्रेस और सबसे प्रसिद्ध पुस्तक Poverty and Un लीग-संक्रान्त विषयों पर चिन्तामणिजीसे Britiah rule in India है । बातचीत करते रहे । समुद्रतट पर बसे हुए दादा भाईमें सभी अवगणों की तरह लोभ भी वर्मोवा नगरको दादाभाईके कारण तीर्थकी नामको न था । जब आप विलायतसे लौटे थे, पदवी प्राप्त हो गई थी। बम्बईके अनेक गवर्न तब आपकी आर्थिक अवस्था बहुत शोचनीय थी। रोंकी अनेक भेटोंके सिवा भारतके भूतपूर्व भारतमें आते ही यहाँके कुछ सज्जनोंने ३००००) प्रजाप्रिय और नीतिज्ञ वाइसराय लार्ड हार्डिंजने की एक थैली भेंट की थी। उस आवश्यकताके भी दादाभाईके शान्तिनिकेतन पर उपस्थित समयमें भी आपने इस रकममेंसे एक पैसा भी होकर अपनी गुणज्ञताका परिचय दिया था। अपने खर्च में नहीं उठाया । यह रुपया देशहित__ साठ वर्षसे अधिक कर्मठ जीवन व्यतीत सम्बन्धी कामोंमें खर्च किया गया। करके दादाभाई पिछले १०-११ वर्षोंसे एकान्त भारतीय राजनीतिके प्रथम प्रचारक, कांग्रेसके जीवन व्यतीत कर रहे थे । कोई दो वर्ष हुए - मूलस्तम्भ दादाभाई नौरोजीने पार्लमेण्टकी बम्बई यूनिवर्सिटीने आपको एल एल० डी० की उपाधि देकर अपनेको गौरवान्वित किया था। मम्बरा, बड़ादका दावाना, बम्बइका लाजस्लाटव उससमय आप इस डिग्रीको ग्रहण करनेके लिए और कारपोरेशनकी मेम्बरी और वेल्बी कमीशनकी बम्बई गये थे । बम्बईवासियोंने आपका जुलूस अन्यतम सभासदी आदि अनेक प्रतिष्ठित पदोंनिकाला था। जिन्होंने वह जलस देखा है, वे कहते पर अपनी योग्यता, सज्जनता, सरलता, और हैं कि सात दिनमें आठ जलस निकलनेकी भमि सत्यप्रियतासे प्रेरित होकर जो असाधारण कार्य बम्बईमें वैसा जुलूस अबतक नहीं निकला। किये हैं, वे भारतके इतिहासमें जहाँ स्वर्णाक्षरों में दादाभाई देशके सच्चे दादा (पितामह ) लिखे रहेंगे वहाँ भारतीयोंकी बड़े आदर और और भाई थे । आपका जीवन बडा सादा गौरवकी चीज होंगे। . या। शुरू जवानीमें आप रातको सोते समय यही कारण है कि दादा भाईकी मृत्यु पर थोड़ी सी शराब पिया करते थे। एकदिन घरमें आज भारतमें शोककी गहरी घटा छाई हुई है। शराब न थी, आप कलवारकी दूकान पर शराब उनकी अरथीके साथ बम्बईमें ७५००० से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522833
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size4 MB
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