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________________ जैनहितेषी [ भाग १३ पूरन कश्यपके विषयमें लिखा है कि यह एक म्लेच्छ स्त्रीके गर्भसे उत्पन्न हुआ था। कश्यप इसका नाम था। इस जन्मसे पहले यह ९९ जन्म धारण कर चुका था । वर्तमान जन्ममें इसने शतजन्म पूर्ण किये थे, इस कारण इसको लोग 'पूरण-कश्यप' कहने लगे थे। इसके स्वामीने इसे द्वारपालक काम सोंपा था; परन्तु इसे वह पसन्द न आया और यह नगरसे भागकर एक वनमें रहने लगा । एव बार कुछ चोरोंने आकर इसके कपड़ेलत्ते छीन लिये, पर इसने कपड़ोंकी परवा न की, यह नग्न ही रह लगा। उसके बाद यह अपनेको पूरण कश्यप बुद्धके नामसे प्रकट करने लगा और कहने लगा कि मैं सर्वज्ञ हूँ । एक दिन जब यह नगरमें गया, तो लोग इसे वस्त्र देने लगे; परन्तु इसने इंकार कर दिया और कहा-" वस्त्र लज्जानिवारणके लिए पहने जाते हैं और लज्जा पापका फल है । मैं अर्हत हूँ, मैं समस्त पापोंसे मुक्त हूँ, अतएव मैं लज्जासे अतीत हूँ।” लोगोंने कश्यपकी उकिको ठीक मान ली और उन्होंने उसकी यथाविधि पूजा की। उनमें से ५०० मनुष्य उसके शिष्य हो गये । सारे जम्बू. द्वीपमें यह घोषित हो गया कि वह बुद्ध है और उसके बहुतसे शिष्य हैं; परन्तु बौद्ध कहते हैं कि वह अवीचिनामक नरकका निवासी हआ । सत्तपिटकके दीघनिकाय नामक भागके अन्तर्गत — सामनओ फलसुत्त ' में लिखा है कि पूरण कश्यप कहता था-' असत्कर्म करनेसे कोई पाप नहीं होता और सत्कर्म करनेसे कोई पुण्य नहीं होता ! किये हुए कर्मोंका फल भविष्यत्कालमें मिलता है, इसका कोई प्रमाण नहीं है ।' मस्करि गोशालका वर्णन श्वेताम्बर ग्रन्थों में विस्तारसे मिलता है । वे इसे मंखलि गोशाल कहते हैं ! श्वेताम्वरमुत्र ‘उवासकदसांग के मतसे वह श्रावस्तीके अन्तर्गत शरवणके समीप उत्पन्न हुआ था। उसके पिताको लोग 'मंखलि' कहा करते थे। पिता अपने हाथके चित्र दिखलाकर अपनी जीविका चलाता था। माताका नाम · भद्र।' था। एक दिन ये दोनों भ्रमण करते करते शरवणके निकट आये और कोई स्थान न मिलनेसे वर्षाके कारण एक ब्राह्मणकी गोशालामें जाकर ठहर गये । वहाँ भद्राने एक पुत्रको जन्म दिया और उसका नाम स्थानके नामके अनुसार गोशाला रक्खा गया। प्राप्तवयस्क होनेपर गोशाला भिक्षावृत्तिसे अपना निर्वाह करने लगा। इसी समय भगवान महावीरने भी ३० वर्षकी अवस्थामें जिनदीक्षा धारण की । ' मलिन्द-प्रश्न' नामक बौद्ध ग्रन्थमें लिखा है---" सम्राट मलिन्दने गोशालासे पूछा--"अच्छे बुरे कर्म हैं या नहीं? अच्छे बुरे कर्मों का फल भी मिलता है या नहीं ?" गोशालाने उत्तर दिया--" हे सम्राट, अच्छे बुरे कर्म भी नहीं हैं और उनके फल भी कुछ नहीं हैं । " बौद्ध कथाओंके अनुसार मंखलि गोशाल पर उसका मालिक एक गलतीके कारण बहुत ही अप्रसन्न हुआ था। जब उसने भागनेकी चेष्टा की तब मालिकने जोरसे उसके वस्त्र खींच लिये और वह नंगा ही भाग गया। इसके बाद वह साधु हो गया और अपनेको 'बुद्ध' कहके प्रसिद्ध करने लगा। उसके हजारों शिष्य हो गये । बौद्ध कहते हैं कि वह मरकर अवीचि नगरमें गया । उसके मतसे समस्त प्राणी विनाकारण ही अच्छे बुरे होते हैं। संसारमें शक्तिसामर्थ्य आदि पदार्थ नहीं हैं । जीव अपने अदृष्ट के प्रभावसे यहाँ वहाँ संचार करते हैं । उन्हें जो सुख दुख भोगना पड़ते हैं, वे सब उनके अदृष्ट पर निर्भर हैं । १४ लाख प्रधान जन्म, ५०० प्रकारके सम्पूर्ण और असम्पूर्ण कर्म, ६२ प्रकारके जीवनपथ, ८ प्रकारकी जन्मकी तहे, ४९०० प्रकारके कम, ४९०० भ्रमण करनेवाले संन्यासी, ३ हजार नरक और ८४ लाख काल हैं। इन कालोंके भीतर पण्डित और मूर्ख सबके कष्टोंका अन्त हो जाता है । ज्ञानी और पण्हित कर्मके हाथसे छुटकारा नहीं पा सकते। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522833
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size4 MB
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