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________________ २५२ जैनहितैषी [ भाग १३ अर्थ-फल, दही, दूध, शक्कर, आदिके समान मांसमें भी जीव नहीं है, अतएव उसकी इच्छा करने और भक्षण करनेमें कोई पाप नहीं है। मजं ण वज्जणिज्जं दवदव्वं जहजलं तहा एदं। इदि लाए घोसित्ता पवट्टियं सव्वसावजं ॥९॥ मद्यं न वर्जनीयं द्रवद्रव्यं यथा जलं तथा एतत् । इति लोके घोषयित्वा प्रवर्तितं सर्वसावा ॥९॥ अर्थ-जिस प्रकार जल एक द्रव द्रव्य अर्थात् तरल या बहनेवाला पदार्थ है उसी प्रकार शराब है, वह त्याज्य नहीं है । इस प्रकारकी घोषणा करके उसने संसारमें सम्पूर्ण पापकर्मकी परिपाटी चलाई। अण्णो करेदि कम्मं अण्णो तं भुंजदीदि सिद्धतं । परि कप्पिऊण तणं वसिकिच्चा णिरयमुववण्णो ॥ १० ॥ __ अन्यः करोति कर्म अन्यस्तद्भुनक्तीति सिद्धान्तम् । परिकल्पयित्वा नूनं वशीकृत्य नरकमुपपन्नः ॥ १० ॥ . अर्थ-एक पाप करता है और दूसरा उसका फल भोगता है, इस तरहके सिद्धान्तकी कल्पना करके और उससे लोगोंको वशमें करके या अपने अनुयायी बनाकर वह मरा और नरकमें गया। (इसमें बौद्धके क्षाणिकवादकी ओर इशारा किया गया है । जब संसारकी सभी वस्तुयं क्षणस्थायी हैं, तब जीव भी क्षणस्थायी ठहरेगा और ऐसी अवस्थामें एक मनुष्यके शरीरमें रहनेवाला जीव जो पाप करेगा उसका फल वही जीव नहीं, किन्तु उसके स्थान पर आनेवाला दूसरा जीव भोगेगा।) श्वेताम्बरमतकी उत्पत्ति । छत्तीसे वरिस सए विक्कमरायस्स मरणपत्तस्स। सोरहे वलहीए उप्पण्णो सेवडो संघो ॥११॥ पत्रिंशत्सु वर्षशते विक्रमराजस्य मरणप्राप्तस्य । सौराष्ट्र वल्लभ्यां उत्पन्नः सितपटः संघः ॥ ११ ॥ अर्थ-विक्रमादित्यकी मृत्युके १३६ वर्ष बाद सौराष्ट्र देशके वल्लभीपुरमं श्वेताम्बर संघ उत्पन्न हुआ। १ गुजरातके पूर्व में भागा नगरके निकट यह प्राचीन शहर बसा हुआ था। बहुत समृद्धशाली था। ईस्वी सन् ६४० में चीनी यात्री हुएनसंगने इसका उल्लेख किया है । उस समयतक यह भाबाद था । काठियाबाड़का 'बला' नामक ग्राम जहाँ है, कोई कोई कहते हैं कि वहीं पर यह बसा हुआ था। खेताम्बर सूत्रोंका सम्पादन भी यहीं हुभा था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522833
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size4 MB
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