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________________ जैन हितैषी [भाग १३ 'सुवर्णके पात्रमें कुत्तेका खीर खाना' नामक कि नहीं, यदि आये तो वे कौन कौनसे स्वप्न स्वमका फल लिखा है कि ' आंगे राजसभाओंमें थे और उनका क्या क्या फल किसके द्वारा कुलिंगियोंकी पूजा होगी।' यह फल ऊपर कहा गया है । श्वेताम्बर जैनोंके यहाँ भी चंद्रउद्धृत किये हुए भद्रबाहुचरित्र और राजावली गुप्तके १६ स्वप्न माने जाते हैं, ऐसा जैन कथे दोनोंहीके फलोंसे स्पष्ट भिन्न तथा विलक्षण संज्झायमाला' आदि दो गुजराती पुस्तकों पर जान पड़ता है। इसी प्रकार और भी स्वप्नोंका से जाना जाता है । परन्तु अभीतक इस सम्बधमें फल जानना। मुझे उनका कोई मूल प्रामाणिक ग्रंथ उपलब्ध __पाठकोंको यह जानकर जरूर आश्चर्य होगा कि नहीं हुआ। इस लिए यहाँपर श्वेताम्बर-स्वप्नोंउक्त तीनों ग्रंथों में स्वप्नोंका यह सब फल श्रीभद्र- का उल्लेख छोड़ा जाता है; तो भी इतना जरूर बाहु श्रुतकेवलीका बतलाया हुआ कहा जाता है ! सूचित कर देना होगा कि उक्त दोनों गुजराती परन्तु तीनों ग्रन्थोंका कथन परस्पर एक दूसरेके पुस्तकोंका फलकथन भी, परस्पर समान न विरुद्ध होनेसे कोई भी बुद्धिमान यह स्वीकार होकर, बहुत कुछ अंशोंमें एक दूसरेसे भिन्न है; करनेके लिए तय्यार नहीं हो सकता कि स्वप्नोंका और तिसपर भी तुर्रा यह है कि दोनोंके ही (यह सब फल श्रीभद्रबाहु श्रुतकेवलीका कहा रचयिता अपने अपने कथनको भद्रबाहु श्रुतकेवलीहुआ है । अवश्य ही इस कथनमें ग्रंथकर्ताओंका का कहा हुआ बतलाते हैं । अस्तु । मतिकौशल शामिल है । उन्होंने देश, काल तथा अब यहाँ पाठकोंपर एक बात और प्रगट की समाजकी परिस्थितियोंके प्रभावसे प्रभावित होकर जाती है और वह भरत चक्रवर्तीके स्वप्नोंकी बात और किसी खास उद्देश्यको अपने हृदयमें रखकर है । श्रीजिनसेनाचार्यप्रणीत आदिपुराणमें भरत ही वास्तविक घटनाओंमें कुछ फेरफार किया है। चक्रवर्तीको भी १६ स्वप्नोंका आना लिया अथवा यों कहना चाहिए कि उन्हें इस विषयका हैं, जिनमेंसे १ हाथीके कन्धेपर बैठा हुआ 'सत्य इतिहास नहीं मिला; यह सब रचना, बन्दर, २ भूतींका नृत्य, ३ मध्यमें सखा और प्रमादवश, दन्तकथाओं आदिके आधारपर की किनारोंपर प्रचुर जलसे भरा हुआ सरोवर, ५ गई हैं। और इसीसे यह सब गोलमाल हआ धूलसं धूसरित रत्नराशि और ५ आदर सत्काहै । परन्तु कुछ भी हो, इसमें सन्देह नहीं कि रसे पूजित कुत्तेका नैवेद्य भक्षण, ये पांच स्वर सपा जो लोग चरित्रग्रंथों पर पूर्ण श्रद्धा रखते हैं, उनके भा प्रायः वही हैं जिनका उल्लेख भद्रबाहुचरित्रम अक्षर-अक्षरको सत्य मानते हैं और उन्हें पाया : पाया जाता है । आदिपुराणके ४१ व पर्वमें साक्षात् जिनवाणी समझते हैं-कहते हैं कि इन पाचा * इन पाँचों स्वप्नोंका फल क्रमशः इस प्रकार वर्णन 'आचार्योने अपनी तरफसे एक शब्द भी नहीं किया है:-- मिलाया- उनके लिए तीनों ग्रंथोंका यह सब १ इस पुस्तकके द्वितीय भागमें नयविजयका कथन अवश्य ही चिन्ताजनक होगा और उनके बनाया हुआ 'सोल सुपननी सज्लाय' नामका विव क्षित पाठ है। दूसरी पुस्तक या पाठका नाम 'चंद्रहृदयोंमें यह शंका उत्पन्न किये बिना नहीं गुप्त राजाने सोल सुपन' है, जिसे जयमल नामके रहेगा कि वास्तवमें महाराजा चंद्रगुप्तको इस किसी कविने बनाया है । यह पुस्तक हमें हस्तलिखित प्रकारके भविष्य-सूचक कोई स्वप्न आयेथे या प्राप्त हुई है । पुस्तकके अन्तमें कवि लिखता है कि १ सुवर्णभाजने पायसं भुंजानः श्वानः मैंने इसे 'व्यवहार सूत्रकी चूलिका' के अनुसार राजसभायां कुलिंगपूजां द्योतयन्ति । बनाया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522833
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size4 MB
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