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________________ ..२२२ जनहितैषी भाग १३] जल्दी और साफ अपनी मातृभाषामें बोलता है ! योग-चिकित्सा । इस लिए जिस किसी भी गुणकी शिक्षा बच्चेको दनी हो उसे बाल्यावस्थामें ही देनी चाहिए। (ले-श्रीयुत पं० माधवलाल शर्मा।) उस अवस्था में बच्चा बिलकल अपनी माके आधीन । होता है। उस समय उसको चाहे जो काम भूमिका। सिखाया जा सकता है। परमात्मस्वरूपमनुष्यतनुधारी दिव्यमूर्तियो ! ____ कुछ बातें बहुत ही छोटी ख्याल की जाती "तुम जानते हो कि तुम सर्व शक्तिमान हो, हैं, परंतु उनसे भी असावधान कभी नहीं होना तुम अपने केवल एक संकल्पके बलसे जो चाहो चाहिए। उनके परिणाम बहुत बड़े होते हैं। सो कर सकते हो । तुम बलवान, स्वस्थ और बोटी छोटी बातोसे ही बच्चोंकी आदत पक्की तेजस्वी होनेके प्रकृत अधिकारी हो। तुम एमा होती है । एक माताने केवल लाड़ प्यारके कार.. क्यों कहते हो कि में वृद्ध हूं, निर्बल हूँ, दुःखी ण अपने बच्चेको शरारतसे मना नहीं किया और इस कारण उसे छोड़ दिया कि बात हल्कीसी हूँ। यह निर्बलता छोड़ दो और आज ही काय. हे । एक बुद्धिमान पुरुषने उससे कहा कि रताको लात मारकर उसे हृदयसे बाहर कर दो। निसंदेह बात छोटीसी है, परंतु छोटी इसी क्षणसे अपनी कायरता और दीनताको - छोटी बातोंसे ही आदत पड़ती है और तिम नमस्कार करो और ओमकारकी गर्जना जा आदत एक बार पड़ जाती है फिर उसका करके कह दो कि मैं सतस्वरूप हूँ-बलवान छूटना बहुत कठिन हो जाता है। इस लिए हूँ-अपने शरीरका स्वामी हूँ और मैं अपने बच्चसे जो काम कराना चाहते हो अथवा जिस शरीरको जैसा चाहूँ वैसा बनानेमें समर्थ हूँ। प्रकारका व्यवहार उससे करते हो उसके दि. यमें पहलेसे यह सोच लो कि उसले कमी आद. ___ हाँ, यथार्थमें ही तुभ समर्थ हो । तुम कहोगे तके पड़नेकी सम्भावना है। जिन कामोंसे या कि मैं अज्ञानी हूँ, मेरी इच्छाशक्ति निर्बल है, जिन बालोंसे बुरी आदतोंके पड़ने की सम्भावना मेरा चित्त अस्थिर है; परंतु मै कह सकता हूँ कि हो, उन्हें बालकोंसे नहीं कराना चाहिए। यह तुम्हारा केवल भ्रम है-केवल प्रलाप है। ___ बच्चोंके साथ व्यवहार करनेसे पहले इस - जागो, उठो और मोहनिद्राको त्याग दो। अपने बातको देख लेना चाहिए कि उनका स्वभाव कैसा मूल स्वरूपका विचार करो। तुम बलवान हो, हैं। कुछ बच्चोंका स्वभाव नर्म होता है । उनसे , स्वतंत्र हो । अपने मनमें से सब तरहकी शंकाओंको काम लेना आसान होता है। ऐसे बच्चोंके साथ निर्मूल कर डालो । 'यदि मै ऐसा होता तो बड़े प्रमसे व्यवहार करना चाहिए । कुछ बच्चोंमें इस वाक्यके ' यदि ' और 'तो' ये शब्द ही तुम्हारे सामर्थ्यको ठंडा कर देते हैं, तुम्हें बलहठ अधिक होती है, उनसे दृढतापूर्वक व्यवहार करना चाहिए । कुछ बच्चोंमें आलस होता है उनके । हीन बना देते हैं और अधिकारभ्रष्ट कर देते हैं। लिए उत्तेजनाकी जरूरत है। यद्यपि बच्चोंका अब कब तक दु:खी रहोगे ? तुम कहोगे स्वभाव माता पिताके स्वभाव के अनुकूल होता कि हम दुःखसे तो उकता गये हैं, परंतु उसमे है तथापि माताको उचित है कि वह बच्चोंकी मचि मुक्त होनेका उपाय क्या है ? हम कहते हैं कि और प्रकृतिको देखती रहे और उन्हींके अनुसार उपाय स्वयं तुम्हारे हाथहीमें है। तुम स्वाधीन उनके साथ व्यवहार करती रहे। हो, तुमको कोई बाँध या छोड़ नहीं सकता । यदि तुम अपनी स्वाभाविक शक्तियोंको उपयोग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522833
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size4 MB
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