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________________ । PustaniusmasteeuideutastostumerateJaslestanAsadassistearstoneMISLANDastanatomer -- सुगंधी धूप। इस धूपको नित्य व्यवहार कीजिये । हरेक पूजा अनुकुष्ठान आदि पवित्र अवसरोंपर इसे व्यवहार करके देखिये । है इसकी सुगंधी मनको मोहित करती है । सब तरहकी खराब हुँ हवाको दूर कर स्वास्थ्यप्रद वायु प्रदान करती है । एक वार व्यवहार करनेसे फिर आप बाजारी धूप कभी नहीं खरीदेंगे। यह धूप ज्यादह दिन पड़ी रहनेसे खराब नहीं होती है। ई २५ तोलेका बक्स मूल्य सिर्फ १) डॉकमहसूल )। छोटी डिब्बीका -), नमूना मुप्त । हु मिलनेका पता-कपूरचन्द जैन, किनारी बाजार आगरा। 430 andecu8080PunaulouTUUUURaditadiuouteutatussasuuuuuuuuuSUBAStaviraitadiuestudies.com Rulesiasti - ห आढ़तका काम । बंबईसे हरकिस्मका माल मँगानेका सुभीता। हमारे यहां से बंबईका हरकिस्मका माल किफायतके साथ भेजा जाता है। तांबें व पीतलकी है चहरे, सब तरहकी मशीनें, हारमोनियम, ग्रामोफोन, टोपी, बनियान, मोजे, छत्री, जर्मनसिलवर है और अलूमिनियमके बर्तन, सब तरहका साबुन, हरप्रकारके इत्र व सुगन्धी तेल, छोटी बड़ी घड़ियाँ, कटलरी का सब प्रकारका सामान, पेन्सिल कागज, स्याही, हेण्डल, कोरी कापी, है स्लेट, स्याहीसोख, ड्राइंगका सामान, हरप्रकारकी देशी और विलायती दवाइयाँ, काँचकी छोटी बड़ी शीशियोंकी पेटियाँ, हरप्रका का देशी विलायती रेशमी कपड़ा, सुपारी, इलायची, मेवा, है है कपूर आदि सब तरहका किराना, बंबईकी और बाहरकी हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी पुस्तकें, जैन हे पुस्तकें, अगरबत्ता, दशांगधूप, केशर, चंदन आदि मंदिरोपयोगी चीजें, तरह तरहकी छोटी बड़ी है रंगीन तसबीरें, अपने कामकी अथवा अपनी दूकानके नामकी मुहरें कार्ड, चिट्ठी, नोटपेपर, है मुहूर्तकी चिट्ठीयाँ (कंकुपत्रिका) आदि । हरकिस्मका माल होशयारीके साथ वी. पी. से रवाना किया जाता है। एक बार व्यवहार करके देखिये।आपको किसी तरहका धोका न होगा । हमारा सुरमा और नमकसुलेमानी अवश्य मॅगाइहुए । बहुत बढिया हैं। पता-पूरणचंद नन्हेलाल जैन । co जैन-ग्रन्थ-रत्नाकर कार्यालय, हीराबाग, पो० गिरगांव, बम्बई। •អ្នកលក់ ឡូតរូតខ្លួនអ្នក นองตนขึ้นเนิรนานนนนน Presearsdasteeutastushastrikesidiarikestaurusteedsarita s ke Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522833
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size4 MB
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